मजदूरों की कोई नहीं सुन रहा मगर अदालतों ने दिखा दिया कि वह हमेशा नागरिकों के लिए उनके साथ खड़े हैं.शीर्ष अदालत ने देश भर में फंसे प्रवासी श्रमिकों की दुर्दशा पर सुओ मोटो लिया था. 19 उच्च न्यायालयों ने मदजूरों की दुर्दशा को लेकर कई राज्य सरकारों को फटकार लगाते हुए निर्देश दिये हैं. इन निर्देशों में मजदूरों को खाने-पीने की वस्तुएं उपलब्ध करवाना, और उनको निशुल्क यात्रा करवाने के आदेश है....
वर्तमान में, कोरोना वायरस से संबंधित जनहित याचिकाएँ इलाहाबाद, आंध्र प्रदेश, बॉम्बे, कलकत्ता, दिल्ली, गौहाटी, हिमाचल प्रदेश, गुजरात, झारखंड, कर्नाटक, केरल, मद्रास, मणिपुर, मेघालय, पटना, उड़ीसा, सिक्किम, तेलंगाना और उत्तराखंड के उच्च न्यायालयों में सुनी जा रही हैं.
कुछ उच्च न्यायालय ने खुद मामलो का संज्ञान लिया है इनमें बॉम्बे, दिल्ली, आंध्र प्रदेश और पटना ने मजदूरों की हो रही दुर्दशा पर स्वत: संज्ञान लिया है.
ताजुक की बात यह है कि केंद्र सरकार की ओर से सालिसिटर जनरल (केंद्र सरकार का वकील) तुषार मेहता ने हस्तक्षेप अर्जी दाखिल करने वाले लोगों को सुने जाने का विरोध करते हुए कहा कि कोर्ट को राजनीतिक मंच नहीं बनने दिया जाना चाहिए.जिन लोगों ने हस्तक्षेप अर्जी दाखिल की है और मजदूरों की समस्या पर कोर्ट में बहस करना चाहते हैं उनसे पहले पूछा जाए कि उन्होंने इस दिशा में क्या किया है. यहां पर केंद्र के वकील तुषार मेहता ने उल्टा उन लोगों को ही फटकार लगाई है जो लोग इस वक्त हो रही मजदूरों की दुर्दशा पर कोर्ट में सुनवाई के लिए अर्जी दाखिल कर रहे हैं. क्या मेहता को यह नहीं दिख रहा जो मजदूरों की दुर्दशा हुई पड़ी है पैदल घर इतनी गर्मी में जा रहे हैं.कोर्ट संज्ञान नहीं लेगी तो कौन लेगा. यहां पर केंद्र सरकार के वकील खुद सरकार की नाकामियों को छुपाने के लिए उल्टा उन लोगों पर ही बरस रहे जो लोग इस मामले में कोर्ट में अर्जी दाखिल कर रहे हैं.