इसके दो पहलु है
पहला पहलू
दहेज समाज में एक सामाजिक बुराई है, जिसने अकल्पनीय अत्याचारों और अपराधों को जन्म दिया है और बुराई दहेज ने समाज के सभी वर्गों की महिलाओं की जान ले ली है - चाहे वह गरीब, मध्यम वर्ग या अमीर हो। ... दहेज प्रथा के कारण ही बेटियों को बेटों की तरह महत्व नहीं दिया जाता है।
भारत में दहेज प्रथा उन वस्तुओं, गहनों, नकदी, वाहनों, संपत्तियों को संदर्भित करती है जो चल और अचल दोनों हैं जो दुल्हन का परिवार दूल्हे के परिवार को या उसे शादी की शर्त के रूप में देता है।
दहेज निषेध अधिनियम, भारतीय कानून, 1 मई, 1961 को अधिनियमित किया गया, जिसका उद्देश्य दहेज देने या प्राप्त करने से रोकना था। दहेज निषेध अधिनियम के तहत, दहेज में संपत्ति, सामान या शादी के किसी भी पक्ष द्वारा, किसी भी पक्ष के माता-पिता द्वारा या शादी के संबंध में किसी और द्वारा दी गई धन शामिल है।
अब कोई भी महिला अपने पति के खिलाफ मामला दर्ज करा सकती है जो उसे दहेज के लिए प्रताड़ित करता है
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दूसरा पहलू
जिस तरह मैं एक लड़की को महज काम वाली बाई करने के विचार का विरोध करती हूं, उसी तरह लड़के को महज एटीएम मशीन बनाने के विचार का विरोध करती हूं।
अगर कोई लड़का कमा नहीं रहा है तो लोग उसके शाद के बारे में सोचते ही नहीं अगर दहेज लेना गलत बात है तो आप भी नौकरी पेशा लड़का ढूढ़ना बंद कर दो तब खा जायेगा की दहेज प्रथा गलत है।
मेरा मानना है की ये दोनों बंद होने चाहिए जिससे ये दोनों प्रकार की कुव्यवस्था खत्म हो
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