महाभारत अधर्म पर धर्म की जीत का एक वृत्तांत है। जिसमे चंद्रवंशियों के वंशजो के दो परिवारो कौरव और पाण्डव के बीच एक भीषण युद्ध होता है। और इस युद्ध में एक ओर कौरवो के 100 भाई वहीं दूसरी और पांच पांडव भाई युद्ध करते हैं। इस युद्ध में पांडवों की जीत होती है और कौरवों की हार। पांडवों की जीत इसलिए होती है क्योंकि वह धर्म के अनुसार अपना जीवन जीते हैं। वही कौरव अधर्मी होते हैं। महाभारत को धर्मयुद्ध कहा जाता है, क्योंकि यह सत्य और धर्म की रक्षा के लिए लड़ा गया था। भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग को कुरुक्षेत्र से महाभारत के समय के तलवार औऱ भाले आदि प्राप्त हुए है। कुरुक्षेत्र वर्तमान समय में हरियाणा में स्थित है।महाभारत का युद्ध एक भीषण युद्ध था जिसमें हजारों की संख्या में लोग वीरगति को प्राप्त हुए थे। परंतु यह प्रश्न हर किसी के मन में उठता है कि महाभारत का युद्ध आखिर हुआ क्यों था। इस युद्ध के होने के बहुत से कारण थे। और इन्हीं कारणों में से एक कारण था धृतराष्ट्र का जन्मजात अंधा होना। जब धृतराष्ट्र का जन्म हुआ तो वह जन्म से ही अंधा था। जिस कारण उसके भाई पांडु को राजा बनाया गया। जिस वजह से धृतराष्ट्र अपने भाई से बहुत ईर्ष्या करता था। धृतराष्ट्र के 100 पुत्र थे। जिनमें दुर्योधन सबसे बड़ा था। वह भी अपने पिता के समान पांडवों से नफरत करता था। पाण्डु के 5 पुत्र थे। जो युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव थे। परंतु यह पांचों पुत्र पांडु के नहीं थे। अपितु पांडु की पत्नियों को देवताओं द्वारा वरदान में दिए गए थे। क्योंकि पांडु को एक ऋषि द्वारा श्राप दिया गया था की वह जब भी अपनी पत्नी के साथ सम्भोग करेगा तो उसी समय उसकी मौत हो जायगी। इसलिए पांडु अपना राजपाठ छोड़ अपनी पत्नियों के संग वन में रहने लगे। और 16 साल तक ब्रह्मचारी रहे। यही देवताओं के वरदान स्वरुप पांडु को पांच पुत्र की प्राप्ति हुई। पांडु की गैर मौजूदगी में धृतराष्ट्र राजा बने। और पांडवों की अनुपस्थिति में जब उनके पुत्र बड़े हुए तो उन्होंने अपने बड़े पुत्र दुर्योधन को युवराज बना दिया। शकुनि के कहने पर दुर्योधन ने अपने बचपन से लेकर युवावस्था तक कई षडयंत्र पांडवों को मारने के लिए रचे। परन्तु हर बार वो विफल रहा। लेकिन पाण्डवों ने वापस वन से आकर उन्होंने अपना हक मांगा। तो धृतराष्ट्र ने खण्डहर रुपी खाण्डव वन उन्हें दे दिया। परंतु पांडवों ने इसे भी खुशी-खुशी स्वीकार कर लिया। और श्रीकृष्ण की सहायता से इन्द्रप्रस्थ का निर्माण किया। पाण्डवों के पराक्रम से तो हर कोई अवगत है। उन्होंने अपने पराक्रम से विश्वविजय होकर रत्न एवं धन एकत्रित किया। परंतु कौरवों से उनकी यह विजय देखी नहीं गई। और उन्होंने शकुनि के साथ मिलकर चौसर के खेल में पांडवों को छ्ल से हरा दिया। औऱ इस खेल मे पहले पांडव आपना राजपाठ हार गए फिर वो अपनी पत्नी द्रौपदी को भी हार गए। कौरवो ने भरी सभा में पांडवों की पत्नी द्रौपदी का वस्त्र हरण कर उन्हें अपमानित कर दिया।औऱ यह एक औऱ कारण बना महाभारत के भीषण युद्ध का। चौसर के खेल में हार जाने के बाद उन्हें कौरवों के द्वारा 12 वर्ष का वनवास और 1 वर्ष का अज्ञातवास दिया गया। और इन वर्षों में वनों में रहकर पांडवों ने बहुत कुछ सहा। और आखिरकार बहुत दिन आ गया, पांडवों ने 12 वर्ष का वनवास और 1 वर्ष के अज्ञातवास की अवधि पूरी कर ली।
तब पाण्डवों का संदेसा कुरुराज्य सभा में श्रीकृष्ण के द्वारा लाया गया। और श्रीकृष्ण ने पांडवों का शांतिदूत बनकर दुर्योधन से पाण्डवों को केवल पाँच गाँव देने की बात कही। परन्तु दुर्योधन ने पाण्डवों को कुछ भी देने से इंकार कर दिया। और अंत में पाण्डवों को युद्ध करना पड़ा।