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ashutosh singh

teacher | पोस्ट किया |


अरब देशों ने ओटोमन के खिलाफ विद्रोह क्यों किया?


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university.nakul@gmail.com | पोस्ट किया


अरब देशों द्वारा ओटोमन साम्राज्य के खिलाफ किए गए विद्रोह के पीछे कई ऐतिहासिक, राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक कारण थे। यह विद्रोह मुख्य रूप से अरब विद्रोह (1916-1918) के रूप में जाना जाता है, जिसे प्रथम विश्व युद्ध के दौरान ओटोमन साम्राज्य के खिलाफ चलाया गया था। यह विद्रोह अरब राष्ट्रवाद, ब्रिटिश समर्थन और ओटोमन प्रशासन की नीतियों का परिणाम था। इस विस्तृत लेख में, हम अरब विद्रोह के प्रमुख कारणों को समझेंगे और यह विश्लेषण करेंगे कि कैसे यह घटना इतिहास के महत्वपूर्ण मोड़ में बदल गई।

 

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ओटोमन साम्राज्य और अरब क्षेत्र पर उसका शासन

ओटोमन साम्राज्य ने 14वीं शताब्दी से लेकर 20वीं शताब्दी तक पश्चिम एशिया, उत्तरी अफ्रीका और यूरोप के एक बड़े हिस्से पर शासन किया। इस साम्राज्य के अधीन अरब क्षेत्र में सीरिया, इराक, पवित्र इस्लामी स्थलों (मक्का और मदीना), यमन और फिलिस्तीन शामिल थे।

 

हालांकि ओटोमन साम्राज्य प्रारंभिक वर्षों में एक मजबूत केंद्रित सत्ता के रूप में कार्य करता था, लेकिन 19वीं और 20वीं शताब्दी में इसका प्रशासन कमजोर होने लगा, और अरब राष्ट्रवाद बढ़ने लगा। अरब समुदायों ने धीरे-धीरे अपनी स्वतंत्रता की मांग शुरू कर दी।

 

अरब विद्रोह के प्रमुख कारण


1. अरब राष्ट्रवाद का उदय

19वीं शताब्दी के अंत और 20वीं शताब्दी की शुरुआत में, अरबों के बीच राष्ट्रवादी विचारधाराएँ फैलने लगीं। अरब नेता यह महसूस करने लगे कि ओटोमन साम्राज्य उनकी पहचान, भाषा और संस्कृति को दबा रहा है। अरबों को लगता था कि ओटोमन प्रशासन तुर्कों का पक्ष लेता है और अरबों को सत्ता से दूर रखता है। इस असंतोष ने एक राष्ट्रवादी आंदोलन को जन्म दिया जिसने अंततः विद्रोह की ओर अग्रसर किया।

 

2. ओटोमन प्रशासन की कठोर नीतियाँ

ओटोमन साम्राज्य ने अरबों पर कठोर प्रशासन लागू किया था, जिसमें भारी कर वसूली, सैनिक भर्ती और राजनीतिक उत्पीड़न शामिल थे। ओटोमन प्रशासन का नेतृत्व सुल्तान महमूद द्वितीय और बाद में अब्दुल हमीद द्वितीय ने किया, जिनकी नीतियाँ कठोर और नियंत्रित थीं।

 

विशेष रूप से, प्रथम विश्व युद्ध के दौरान अरबों को ओटोमन सेना में जबरन भर्ती किया गया, जिससे उनके असंतोष और बढ़ गया। ओटोमन सरकार ने राष्ट्रवादियों को कुचलने के लिए कई अरब नेताओं को गिरफ्तार किया और मौत की सजा दी, जिससे जनता में विद्रोह की भावना बढ़ी।

 

3. ब्रिटिश समर्थन और लॉरेंस ऑफ अरबिया का प्रभाव

ब्रिटिश साम्राज्य, जो प्रथम विश्व युद्ध के दौरान ओटोमन साम्राज्य का विरोध कर रहा था, ने अरबों को विद्रोह करने के लिए प्रोत्साहित किया। ब्रिटिशों ने अरबों को समर्थन देने का वादा किया और अरब नेताओं से यह कहकर समझौते किए कि विद्रोह सफल होने पर उन्हें स्वतंत्रता मिलेगी।

 

ब्रिटिश एजेंट टी.ई. लॉरेंस (लॉरेंस ऑफ अरबिया) ने अरब नेताओं को संगठित करने और ओटोमन सेना के खिलाफ छापामार युद्ध करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। लॉरेंस की रणनीति से अरब विद्रोह को मजबूती मिली, और उन्होंने महत्वपूर्ण ओटोमन ठिकानों पर हमले किए।

 

4. मक्का के शासक शेरिफ हुसैन की भूमिका

अरब विद्रोह की शुरुआत शेरिफ हुसैन इब्न अली, जो मक्का के शासक थे, के नेतृत्व में हुई। हुसैन को विश्वास था कि यदि अरब ओटोमन शासन से स्वतंत्रता प्राप्त कर लेते हैं, तो वे एक स्वायत्त अरब राज्य स्थापित कर सकते हैं।

 

1916 में, हुसैन-मैकमोहन समझौता हुआ, जिसमें ब्रिटिशों ने हुसैन से यह वादा किया कि यदि वे ओटोमन के खिलाफ विद्रोह करते हैं, तो युद्ध समाप्त होने के बाद अरबों को स्वतंत्रता मिलेगी। हालांकि, बाद में ब्रिटिशों ने सायक्स-पिको समझौते (1916) के तहत फ्रांस के साथ अरब क्षेत्रों को विभाजित करने का निर्णय लिया, जिससे अरबों को धोखा महसूस हुआ।

 

5. प्रथम विश्व युद्ध का प्रभाव

प्रथम विश्व युद्ध ने ओटोमन साम्राज्य को कमजोर कर दिया था। युद्ध के दौरान, अरबों को यह अवसर मिला कि वे ओटोमन शासन के खिलाफ विद्रोह करें। युद्ध की वजह से ओटोमन सेना कमजोर पड़ रही थी, और इसकी आर्थिक स्थिति भी खराब हो रही थी। इस मौके का लाभ उठाकर अरबों ने विद्रोह किया।

 

अरब विद्रोह और उसका परिणाम


1. रणनीतिक युद्ध और ओटोमन सेनाओं की हार

विद्रोह के दौरान अरबों ने महत्वपूर्ण ओटोमन ठिकानों पर हमले किए:

 

  • मक्का और जेद्दा (1916): अरब सेना ने इन शहरों को ओटोमन नियंत्रण से मुक्त किया।

  • अक़ाबा (1917): लॉरेंस और अरब सेना ने एक महत्वपूर्ण समुद्री बंदरगाह पर कब्ज़ा किया।

  • दमिश्क (1918): विद्रोहियों ने ओटोमन सेना को दमिश्क से बाहर खदेड़ दिया और अपनी विजय की घोषणा की।

 

2. ओटोमन साम्राज्य का पतन

प्रथम विश्व युद्ध के अंत तक, ओटोमन साम्राज्य पूरी तरह कमजोर हो गया था। 1922 में सुल्तान का पद समाप्त कर दिया गया, और तुर्की गणराज्य का गठन हुआ। इसके साथ ही, अरब क्षेत्र ओटोमन शासन से मुक्त हो गया।

 

3. अरब स्वतंत्रता और पश्चिमी शक्तियों का हस्तक्षेप

हालांकि अरबों को ओटोमन से आजादी मिली, लेकिन उन्हें पूर्ण स्वतंत्रता नहीं मिली। ब्रिटिश और फ्रांसीसी सरकारों ने सायक्स-पिको समझौते के अनुसार अरब क्षेत्र को आपस में बाँट लिया।

 

  • फ्रांस ने सीरिया और लेबनान पर नियंत्रण कर लिया।

  • ब्रिटिशों ने इराक, फिलिस्तीन और जॉर्डन को अपने शासन में ले लिया।

 

यह पश्चिमी शक्तियों का हस्तक्षेप था, जिसने अरबों को उनके पूर्ण राष्ट्रवादी सपनों को साकार करने से रोक दिया।

 

निष्कर्ष

अरबों ने ओटोमन साम्राज्य के खिलाफ विद्रोह इसलिए किया क्योंकि वे स्वतंत्रता चाहते थे, ओटोमन प्रशासन से असंतुष्ट थे, और प्रथम विश्व युद्ध ने उन्हें एक अवसर प्रदान किया। ब्रिटिश समर्थन, अरब राष्ट्रवाद और ओटोमन की कमजोर स्थिति ने इस विद्रोह को सफल बनाया। हालाँकि, इस स्वतंत्रता के बाद अरबों को ब्रिटिश और फ्रांसीसी उपनिवेशवाद का सामना करना पड़ा, जिसने उनकी संप्रभुता को प्रभावित किया।

 

यह विद्रोह आधुनिक अरब राष्ट्रवाद के जन्म में एक महत्वपूर्ण चरण था और आज भी इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना के रूप में देखा जाता है।

 


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