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shweta rajput

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क्यों मनाया जाता है कारगिल विजय दिवस


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1999 के कारगिल युद्ध के दौरान सेना के सैनिकों द्वारा किए गए बलिदान का जश्न मनाने के लिए भारत में कारगिल दिवस मनाया जाता है। यह युद्ध भारत और पाकिस्तान द्वारा जम्मू-कश्मीर के कारगिल सेक्टर में लड़ा गया था और इसे 'ऑपरेशन विजय' नाम दिया गया था। यह 26 जुलाई, 1999 को था, भारतीय सेना ने कारगिल की बर्फीली ऊंचाइयों पर लगभग तीन महीने की लंबी लड़ाई के बाद जीत की घोषणा करते हुए 'ऑपरेशन विजय' की सफल परिणति की घोषणा की थी।

 

भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना के कब्जे वाली चोटियों पर कब्जा कर लिया था और ऊंचाई वाले कारगिल के ऊपर तिरंगा फहराया था। आज जब हम कारगिल युद्ध की 22वीं वर्षगांठ मना रहे हैं, आइए इस ऐतिहासिक घटना के बारे में जानने के लिए कुछ समय निकालें

 

1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद, दोनों पक्ष शायद ही कभी प्रत्यक्ष सशस्त्र संघर्षों में शामिल हुए, भले ही दोनों देशों ने सियाचिन ग्लेशियर को नियंत्रित करने के लिए आस-पास की पर्वत श्रृंखलाओं पर सैन्य चौकियों की स्थापना करके लगातार अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास किया हो। इसके परिणामस्वरूप 80 के दशक में सैन्य हाथापाई हुई थी जो 90 के दशक में बढ़ गई थी। 1998 में भारत और पाकिस्तान दोनों द्वारा किए गए परमाणु परीक्षणों ने इसे और खराब कर दिया। लेकिन जब ऐसा लग रहा था कि सब कुछ खो गया है, तो दोनों देशों ने कश्मीर संघर्ष के शांतिपूर्ण समाधान प्रदान करने के लिए फरवरी '99 में लाहौर घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किए।


उसी वर्ष पाकिस्तानी सशस्त्र बलों के तत्व अपने सैनिकों को नियंत्रण रेखा (या एलओसी) के भारतीय पक्ष में प्रवेश करने के लिए गुप्त रूप से प्रशिक्षण दे रहे थे। उनका उद्देश्य लद्दाख और कश्मीर के बीच की कड़ी को तोड़ना और भारतीय सशस्त्र बलों को सियाचिन ग्लेशियर से हटने के लिए मजबूर करना था।

 

प्रारंभ में भारतीय सशस्त्र बलों को इस घुसपैठ की प्रकृति के बारे में बहुत कम जानकारी थी। यह मानते हुए कि वे जिहादी थे, भारतीय सशस्त्र बलों ने उन्हें कुछ ही दिनों में बेदखल करने की उम्मीद की। हालांकि, बाद में उन्हें एहसास हुआ कि पाकिस्तान की ओर से हमले की पूरी योजना बहुत बड़ी थी और उन्होंने एलओसी पर भी घुसपैठ देखी।

 

भारत सरकार ने ऑपरेशन विजय के साथ आत्मविश्वास से जवाब दिया और उन्होंने लड़ने के लिए लगभग 200,000 भारतीय सैनिकों की भर्ती की।

26 जुलाई 1999 को समाप्त हुए युद्ध को हर साल उसी दिन कारगिल विजय दिवस के नाम से याद किया जाता है और याद किया जाता है। यह दिन प्रत्येक भारतीय के लिए गर्व का क्षण होता है और इस प्रकार पूरे देश में बड़े पैमाने पर मनाया जाता है।

 

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युद्ध

पाकिस्तानी सैनिकों ने खुद को अधिक ऊंचाई पर तैनात किया था, जिससे उन्हें अपने भारतीय समकक्षों पर एक फायदा हुआ क्योंकि वे आसानी से उन पर गोली मार सकते थे। नतीजतन, पाकिस्तान द्वारा दो भारतीय लड़ाकू विमानों को गोली मार दी गई, जबकि ऑपरेशन के दौरान एक और दुर्घटनाग्रस्त हो गया। पाकिस्तान ने अमेरिका से युद्ध में हस्तक्षेप करने को कहा था। जिस पर तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने कहा था कि अगर पाकिस्तान अमेरिकी हस्तक्षेप चाहता है तो उसे नियंत्रण रेखा से हटना होगा। जैसे ही पाकिस्तान ने अपने सैनिकों को वापस बुलाने का काम किया, भारतीय सशस्त्र बलों ने बाकी चौकियों पर हमला कर दिया। 26 जुलाई तक, भारतीय सेना उनमें से आखिरी को वापस जीतने में कामयाब रही थी।

 

हताहतों की संख्या

इस युद्ध के दौरान भारतीय सशस्त्र बलों के कुल 527 सैनिकों ने अपनी जान गंवाई। पाकिस्तान ने 700 आदमियों को खो दिया था।

 

युद्ध के बाद

प्रारंभ में, पाकिस्तान ने संघर्ष में अपनी भूमिका से इनकार किया। इसने यह कहकर अपने रुख का समर्थन किया कि भारत का "कश्मीरी स्वतंत्रता सेनानियों" के साथ आमना-सामना हो रहा है। बाद में, देश ने संघर्ष के लिए अपने सैनिकों को पदक से सम्मानित किया। इससे कारगिल संघर्ष में उनकी संलिप्तता स्पष्ट हो गई।

 

भारत आकर, 26 जुलाई को सेना द्वारा मिशन को सफल घोषित करने के बाद, इस दिन को अब हर साल कारगिल विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है। युद्ध ने देश को आगामी बजट वर्ष में अपने रक्षा खर्च में वृद्धि करने के लिए भी प्रेरित किया।

 

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कारगिल विजय दिवस, जिसे हर साल 26 जुलाई को मनाया जाता है, भारतीय सेना की वीरता और साहस की याद में मनाया जाता है, जिसने 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तान के घुसपैठियों को पराजित किया था। यह दिवस न केवल भारतीय सेना की जीत को सम्मानित करता है, बल्कि उन सैनिकों के बलिदान को भी याद करता है जिन्होंने इस युद्ध में अपनी जान गंवाई। कारगिल विजय दिवस का महत्व न केवल भारतीय सेना के लिए है, बल्कि पूरे देश के लिए गर्व और सम्मान का प्रतीक है।

कारगिल युद्ध की पृष्ठभूमि
कारगिल युद्ध 1999 में भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर के कारगिल जिले में लड़ा गया था। यह संघर्ष भारतीय सेना और पाकिस्तानी सेना के बीच हुआ, जब पाकिस्तान ने कारगिल क्षेत्र में भारतीय सीमा के अंदर अपने सैनिकों और आतंकवादियों को घुसपैठ करवा दिया था। पाकिस्तान ने इस ऑपरेशन को 'ऑपरेशन बद्र' के नाम से चलाया था, जिसका उद्देश्य भारतीय और श्रीनगर-लेह राष्ट्रीय राजमार्ग को काट देना था, जिससे कश्मीर के इस क्षेत्र पर उसका कब्जा हो सके।

 

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पाकिस्तान ने इस ऑपरेशन के दौरान अपने सैनिकों को आतंकवादी के रूप में छिपाकर भारतीय क्षेत्र में भेजा। इन घुसपैठियों ने कारगिल, द्रास, और बटालिक के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में अपनी स्थिति मजबूत कर ली थी। इस समय भारतीय सेना को इन घुसपैठियों के खिलाफ एक कठिन और चुनौतीपूर्ण अभियान चलाना पड़ा, क्योंकि यह क्षेत्र अत्यधिक ऊंचाई पर स्थित था और यहां लड़ाई करना बेहद कठिन था।

भारतीय सेना का साहस
कारगिल युद्ध के दौरान भारतीय सेना ने अत्यंत साहस और दृढ़ता का परिचय दिया। इस युद्ध में भारतीय सेना के जवानों ने अत्यधिक प्रतिकूल परिस्थितियों में लड़ाई लड़ी। कारगिल की ऊंची पहाड़ियों, कड़ी ठंड और दुर्गम इलाकों में भारतीय सैनिकों ने अदम्य साहस का परिचय दिया। उन्होंने न केवल दुश्मन की गोलियों का सामना किया, बल्कि कठिनाईयों के बावजूद अपने मिशन को पूरा करने में सफल रहे।

भारतीय सेना ने 'ऑपरेशन विजय' नामक सैन्य अभियान शुरू किया, जिसका उद्देश्य घुसपैठियों को खदेड़ना और भारतीय क्षेत्र को मुक्त कराना था। इस अभियान में भारतीय वायुसेना और भारतीय नौसेना ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। भारतीय सेना ने अपने अद्वितीय सामरिक कौशल और साहस के बल पर दुश्मन को खदेड़ते हुए कारगिल की ऊंची चोटियों पर कब्जा किया।

युद्ध के नायक
कारगिल युद्ध में कई सैनिकों ने अपनी वीरता और साहस का परिचय दिया, जिनमें कैप्टन विक्रम बत्रा, ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव, कैप्टन अनुज नैय्यर और राइफलमैन संजय कुमार जैसे नाम प्रमुख हैं। कैप्टन विक्रम बत्रा को उनकी वीरता के लिए परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया, जो भारत का सर्वोच्च वीरता पुरस्कार है। कैप्टन बत्रा का प्रसिद्ध कथन "ये दिल मांगे मोर" आज भी लोगों के दिलों में गूंजता है और भारतीय सेना के अदम्य साहस का प्रतीक बना हुआ है।

कारगिल विजय दिवस का महत्व
कारगिल विजय दिवस भारत के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह दिन भारतीय सेना के शौर्य और बलिदान की याद दिलाता है। यह दिन देशवासियों को उन सैनिकों के बलिदान की याद दिलाता है जिन्होंने देश की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। यह दिन न केवल भारतीय सेना के लिए गर्व का विषय है, बल्कि पूरे देश के लिए एक प्रेरणा स्रोत भी है।

कारगिल विजय दिवस पर पूरे देश में विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। सेना के जवानों और अधिकारियों को सम्मानित किया जाता है, और शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है। दिल्ली के इंडिया गेट पर अमर जवान ज्योति के पास विशेष समारोह आयोजित किए जाते हैं, जहां प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, और अन्य गणमान्य व्यक्ति शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।

 

क्यों मनाया जाता है कारगिल विजय दिवस

कारगिल विजय दिवस की शिक्षा
कारगिल विजय दिवस हमें यह सिखाता है कि देश की सुरक्षा के लिए बलिदान और समर्पण की आवश्यकता होती है। यह दिवस युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है, जो उन्हें देशभक्ति और साहस के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता है। यह दिवस हमें यह भी याद दिलाता है कि देश की सीमाओं की रक्षा के लिए सैनिकों का योगदान अमूल्य है, और हमें उनके बलिदान का सम्मान करना चाहिए।

कारगिल युद्ध की विरासत
कारगिल युद्ध ने भारत को यह सिखाया कि देश की सुरक्षा के प्रति कभी भी लापरवाही नहीं बरती जा सकती। इस युद्ध के बाद, भारतीय सेना ने अपनी सुरक्षा व्यवस्था को और मजबूत किया और सीमा पर निगरानी बढ़ाई। कारगिल युद्ध के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच संबंधों में भी तनाव बढ़ गया, जिससे दोनों देशों के बीच शांति वार्ता में भी कठिनाई आई।

निष्कर्ष
कारगिल विजय दिवस भारतीय सेना के साहस, समर्पण, और बलिदान का प्रतीक है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि हमारे सैनिक हमारे देश की सुरक्षा के लिए अपनी जान की परवाह किए बिना लड़ते हैं। कारगिल विजय दिवस हर भारतीय के लिए गर्व का दिन है, और यह हमें यह सिखाता है कि देश की रक्षा के लिए हमें हमेशा सतर्क और तैयार रहना चाहिए।

 


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