ठीक से याद नहीं पर शायद में उस समय मैं १२ क्लास में था. हमारे यहाँ उस समय आस पास के क्षेत्र में, लोगो में ऐसी अफवाह थी की कुछ लोग यहाँ आये हुए है और बच्चे उठाकर ले जा रहे है. बच्चो का अपहरण हो रहा है. ये खबर के कारण लोगो में डर, भय का वातावरण बना हुआ था.
उसी समय हमारे सरकारी स्कूल में कुछ लोग बहार से आये हुए थे मुंबई से जिसमे १ महिला ३लोग मुंबई से और एक सर जो हमारे ही जिले से थे. क्लास में आकर उन्होंने बताया की हम आपके शहर से कुछ दुरी पर रानगिर में एडवेंचर कैंप का आयोजन करने जा रहे है जो भी बच्चा इस कैंप में पार्टिसिपेट करना चाहता है वो आ सकता है. यह आपके शहर में इस तरह का पहला ऐसा कैंप है जहा आप लोगो को बहुत कुछ सीखने को मिलेगा जैसे पहाड़ो से रस्सी के सहारे उतरना, रस्सी के सहारे पहाड़ो पर चढ़ाना, रस्सी के सहारे नदी पर करना, फायरिंग, कैंप फायर और भी बहुत कुछ जैसा आपने डिस्कवरी चैनल में देखा होगा. तो आपमें से कौन कौन स्टूडेंट पार्टिसिपेट करना चाहता है यहाँ आकर अपना नाम लिखा लें ऐसा कहकर वो मेम अपनी चेयर में बैठ गयी पर क्लास से कोई नहीं उठा न ही किसी ने कुछ कहा.
इतने में मुंबई से आयी उस मेम ने बड़ी निराशा से हम सब की और देखते हुए श्री राजेश रैकवार जी जो हमारे ही क्षेत्र से थे से कहा सर अब आप ही कुछ कहे...
देखिये बच्चो "जीवन में ऐसा अवसर बार बार नहीं मिलता है.. में जनता हूँ आप लोग डरे सहमे से है क्योकि कुछ घटना जो हमारे क्षेत्र में चल रही है उससे में अवगत हु, पर जीवन में अगर कुछ पाना चाहते हो, कुछ बनाना चाहते हो तो तुम्हे आगे आना होगा, पहल करनी होगी, इस डर को अपने जेहन से निकलना होगा ये अवसर दोबारा नहीं आएगा. अंतिम बार में आप सभी से कहता हु की आपमें से जो स्टूडेंट अपने जीवन को बदलना चाहता है, जीवन में जो कुछ करना चाहता है, जो वाकई में आगे बढ़ाना चाहता है केवल वो हाथ उठाये.."
बस सर की ये जोरदार स्पीच उनका बॉडी लैंग्वेज उनका कॉन्फिडेंस उनकी आवाज जैसे दिल में एक जबरजस्त चिंगारी सी लग गयी और जैसे ही वो रुके और पल भर की देरी किया बिना मैंने अपना हाथ उठा दिया बस फिर क्या था मरेगा साला, अब तो ये गया, हाँ हाँ पागल हो गया है ये , पीछे से आवाज आने लगी.
रैकवार सर ने बड़ी गर्मजोशी से मुझे अपने पास बुलाया हाथ मिलाया और मेडम से कहा मेम इस स्टूडेंट का नाम लिखो. और कोई है जो अपना नाम लिखना चाहता है, कोई आगे नहीं आया.
पूरी क्लास में सिर्फ मेने अपना नाम लिखाया उस दिन शनिवार था उन्होंने कहा बेटा ४ दिन का कैंप है कल सुबह ९ बजे गाड़ी आ जाएगी आप अपना पूरा सामान लेकर तैयार होकर स्कूल में ही मिलाना यहाँ से हम आपको पिकप कर लेंगे.
बस फिर क्या था उन लोगो के जाने के बाद मेरे दोस्तों और बाकि सब स्टूडेंट्स ने मुझे खूब डाटा, सुनाया ये क्या किया, क्यों जा रहा है, वो लोग बहार के है उठाकर ले जायेंगे, क्यों हाँ बोल दिया. उन सबमे से मेरी एक बेस्ट फ्रैंड थी जिससे मै अपना बेस्ट फ्रेंड मनाता था पर अजीब बात ये थी की मै उससे बहुत डरता था और कभी बात करने की हिम्मत ही नहीं हुई. डर इतना ज्यादा था की यदि गुस्से में सामने आकर डाट दे तो शायद हार्ट फ़ैल हो जाये. उसने भी मुझे डाटा और समझाया भी पर मेरे अंदर कैंप में जाने की आग लगी थी, पर मै खुश था पहली बार केयर वाली डाट खा कर.
स्कूल से घर आने के बाद मम्मी पापा को बताया इस बारे में तो मम्मी का रिएक्शन गुस्से वाला था और वो नहीं चाहती थी की मै कैंप में जाऊ पर पापा पॉजिटिव थे उन्होंने मेरा हौसला बढ़ाया और कहा तुम जरूर जाओ. अगले दिन सुबह जब जाने के लिये जैसे ही मम्मी के पैर पड़ने के लिये जैसे ही आगे बढ़ा उन्होंने अपना पैर खींच लिया और रोते हुए मुँह घुमा लिया पापा ने कहा बेटा जा रहा है ऐसे नहीं करते. बस उस पल दुःख हुआ फिर भी पापा मेरा सामान साइकिल में लेकर आ गए मुझे छोड़ने स्कूल और कहा अपना ध्यान रखना.
स्कूल में मै अकेला था थोड़ा दुखी था माँ के कारण और अब थोड़ा डर भी लग रहा था पर खुद को समझाया. थोड़ी देर बाद मेरे २ दोस्त आ गए मेरा हाल चाल पूछने और फिर अचानक से वो भी साथ जाने के लिये कहने लगे और फिर उनके मम्मी पापा से पूछने के बाद हम लोग १ से ३ हो गए.
कैंप में पहुंचने पर पता चला ऍम एल बी स्कूल की १५ गर्ल्स और हम सब लोगो को मिलाकर १२ बॉयज थे. पहले दिन ही सबसे चाय नास्ते के बाद हरसिध्दि माई की जय के साथ दिन की शुरुआत हुई. पहले दिन कैंप से कुछ दुरी पर पहाड़ पर गए, वह लगभग २००-२५० फुट ऊंचा था ऊपर से निचे देखने पर लोग चींटी जैसे दिखते थे उतनी ऊपर से अकेले रस्सी के सहारे निचे उतरना था. हे भगवान् हाथ पैर फूलने लगे डर लगाने लगा पर जब मेने मुझसे छोटे ६ साल के बच्चे को अकेले निचे उतारते देखा तो फिर क्या था सारा डर दूर हो गया. पर जब मेरी बारी आयी बहुत डर लग रहा था पर मेम और सर लोगो के बताये इंस्ट्रक्शन और हौसले के कारण कब वो टास्क मेने पूरा कर लिया पता ही नहीं चला. नीचे आने के बाद सीना गर्व से फूल गया.
दूसरे दिन पहाड़ पर चढ़ाना और अन्य कार्यक्रम हुए, तीसरे दिन रस्सी के सहारे लटक कर नदी पर करना और कुछ गेम सिखाये गए चौथे दिन फियरिंग रात में कैंप फायर, मौज मस्ती, बहुत मजा आया. अगले दिन सुबह हम सब लोगो को वापिस लौटना था. सुबह सब लोग खुश भी थे, उदास भी थे और कुछ लोग रो भी रहे थे ये पल सबके लिये बहुत कीमती था. ये मेरे जीवन का पहला अनोखा एक्सपीरियंस था मै कॉन्फिडेंस से भरा था उदास था पर खुश भी था
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दूसरे दिन स्कूल आकर बैठे तो गाला इतना बैठ गया था की आवाज निकल ही नहीं रही थी. जैसे बांस फटा हो. २-३ दिन बोलने में दिक्कत हुई पर जल्द ही ठीक हो गया. स्कूल में सब हसते थे आवाज नहीं निकलती थी. पर एन्जॉय भी बहुत किया.
लाइफ के इस छोटे से इवेंट से मुझे ४ बातें सीखने को मिली पहली बात की दिल की आवाज सुनो दिल झूठ नहीं बोलता है. दूसरी बात जब आप चलना शुरू करते है तो आपको देखकर लोग भी चलने लगते है और तीसरी बात कुछ प्यारे दोस्त हमारे आसपास होते है जो हमारी बहुत केयर करते है पर वो इस बात को कभी जाहिर नहीं होने देते है. चौथी और सबसे अहम् बात की जीवन में ऐसे लोगो की कमी है जो आपको एस्पायर करे और आपकी पोटेंशिअल से आपको अवगत कराये पर यदि ऐसे लोग आपको अपने जीवन में मिलते है तो प्लीज उन्हें अपने जीवन से जाने न दे.
सीखने के लिये जीवन में बहुत कुछ है, अपने दिल की आवाज सुनिए और आगे बाद बढिये, इस पल को हाथ से मत जाने दीजिये..