बिहार की राजनीति में हलचल कुछ ज्यादा ही तेज है। कभी नीतीश के हमलावर तेवर की वजह से जहां बीजेपी बैकफुट पर नजर आती है तो कभी राजद अपने तल्ख तेवरों से नीतीश की रणनीति और राजनीति को फेल करने की पटकथा लिखता दिखाई दे रहा है। पिछले दो दिनों में कुछ ऐसा हुआ जिसकी न उम्मीद थी न ही जिसका कोई नतीजा निकला।
बिहार की राजनीति में उहापोह और शंका की स्थिति तो पिछले काफी दिनों से बनी हुई है लेकिन इन सब के बीच बस एक बात ही स्पष्ट है कि यह दबाव बनाने की राजनीति से ज्यादा कुछ नही है। नीतीश फिलहाल गठबंधन तोड़ जोखिम लेने के मूड में नही हैं और न ही बीजेपी फिर से राज्य में महागठबंधन जैसे किसी विकल्प के उभरने देने के मूड में है।
मीडिया में आ रही खबरों और विश्वस्त सूत्रों पर यकीन करें तो बीजेपी फिलहाल वेट एंड वाच की स्थिति में है। बीजेपी 2019 से ऐन पहले तक यह देखना चाहती है कि नीतीश की रणनीति अंततः क्या हो सकती है? नफा-नुकसान का आकलन जारी है। इन सब के बीच राजद और कांग्रेस में भी सब कुछ ठीक है यह कहना भी सही नही होगा।
अब आइये बता दें कि हम ऐसा कह क्यों रहे हैं? इसके पीछे कारण है बड़ा राजनीतिक ड्रामा। इस ड्रामे में पहले जहां राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के बड़े बेटे ने फेसबुक पर एक पोस्ट लिख राजनीति से सन्यास की घोषणा की वहीं हंगामा होते ही इसे बीजेपी की चाल और हैकरों का कमाल बता सफाई दे गए। इस दौरान उन्होंने यह भी कह दिया कि नीतीश चाचा की अब महागठबंधन में नो एंट्री है।
इसके अलावा अब कांग्रेस की बात करें तो कांग्रेस के चार बड़े विधायक नीतीश के समर्थन में खुल कर खड़े हैं। इनमे पूर्व विधानसभा अध्यक्ष और कहलगांव से विधायक सदानंद सिंह का नाम काफी बड़ा है। ऐसे में कांग्रेस विधायकों का आलाकमान के हिदायत के बावजूद विरोध का बिगुल बजाना जहां नीतीश के लिए किसी खुशखबरी से कम नही वहीं बीजेपी की परेशानी का सबब तो बन ही सकता है। ऐसे में अब देखना है कि इन सब घटनाक्रम का अंजाम क्या होता है?