धन तेरस त्यौहार के बारें में सभी जानते हैं | धन तेरस दिवाली के 2 दिन पहले होती है | धन तेरस के दिन धन की पूजा होती है, और इस दिन कुछ नया सामान खरीदा जाता है | इस दिन सामान खरीदना बहुत ही शुभ होता है | धन तेरस के सम्बंधित एक कहानी प्रचलित है | जिसके बारें में कोई नहीं जानता |
धन तेरस में प्रचलित कहानी :-
धन तेरस कार्तिक के कृष्णा पक्ष की त्रयोदशी अर्थात 13 तिथि को आता है | राजा बलि के भय से सभी बहुत परेशान थे | देवताओं को भय से मुक्ति दिलाने के लिए भगवान विष्णु राजा बलि के यज्ञ में वामन अवतार लेकर यज्ञ में पहुँच गए |
शुक्राचार्य ने वामन अवतार लिए हुए भगवान विष्णु को पहचान लिया और राजा बलि से कहा कि यह वामन आपसे कुछ भी मांग करें आप उनको न कह देना | यह वामन अवतार के रूप में भगवान विष्णु जी हैं, जो की तुमसे तुम्हारा सब कुछ छीनने आये हैं, और ये सब कुछ देवता को दे देंगे |
राजा बलि ने अपने गुरु शुक्राचार्य की बात नहीं मानी और राजा बलि अपने अहंकार के चलते वामन देवता को उनके कहे अनुसार 3 पग भूमि मांगी | जैसे ही राजा बलि अपने कमंडल से जल अपने हाथ में संकल्प लेते उससे पहले ही शुक्राचार्य कमंडल के अंदर छोटे रूप में चले गए और उन्होंने बहार जल निकलने का मार्ग रोक दिया |
भगवान विष्णु ने अपने हाथों में रखी कुशा को कमंडल के अंदर डाला जिससे शुक्राचार्य की एक आँख फुट गई | इसके बाद राजा बलि ने वामन देवता को तीन पग भूमि देने का संकल्प दिया | जैसे ही राजा बलि ने वामन देवता को संकल्प दिया उसके बाद वामन देवता अपने मूल रूप में आये और उनके 2 पैरों ने सारा ब्रह्माण्ड नाप लिया | अब तीन पग का संकल्प था तो तीसरा पग कहा रखा जाएं तो राजा बलि ने तीसरा पैर अपने सिर पर रखवा दिया |
इस दिन देवतों को सारा उनका सारा धन वापस मिला इसलिए धन तेरस इस उपलक्ष्य में मनाया जाता है |
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