नमस्कार रोहन जी, आपका सवाल बहुत सही है | मुझे ऐसा लगता है इच्छा मृत्यु की अनुमति होनी चाहिए इसलिए क्योकि जब सम्मान से जीने का अधिकार रखा जाता है तो सम्मान से मरने का भी होना चाहिए | इच्छा मृत्यु उस इंसान के लिए एक सम्मान की बात होगी जो किसी पर बोझ नहीं बनना चाहते |
कौमा जैसी स्थिति में रहने वाले लोग जो आधे मरे हुए ही होते है , जिसके जीवन की सभी आस खत्म हो चुकी हों, लाइलाज बीमारी से पीड़ित व्यक्ति को उसके परिजनों की सहमति से एक शांत मौत दी जाए, इन्हीं मुद्दों पर मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू हुई थी | हालांकि केंद्र सरकार ने इच्छा मृत्यु का विरोध किया था |
इच्छा मृत्यु को लेकर दाखिल याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने सवाल उठाया कि क्या किसी व्यक्ति को उसकी मर्जी के खिलाफ कृत्रिम सपोर्ट सिस्टम पर जीने को मजूबर कर सकते हैं ? सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा कि आजकल मध्यम वर्ग में वृद्ध लोगों को बोझ समझा जाता है ऐसे में इच्छा मृत्यु में कई दिक्कते हैं |
सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने ये भी सवाल उठाया कि जब सम्मान से जीने को अधिकार माना जाता है तो क्यों न सम्मान के साथ मरने को भी माना जाए |सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक ऐतिहासिक फैसले में निष्क्रिय इच्छामृत्यु (passive euthanasia) को इजाजत दे दी | कोर्ट ने कहा कि मनुष्य को गरिमा के साथ मरने का अधिकार है | यह फैसला कानून और नैतिकता के बीच कई वर्षों की कशमकश के बाद आया |
इच्छामृत्यु के दो प्रकार हैं जिनमें से पहला सक्रिय इच्छामृत्यु ( एक्टिव यूथेनेशिया) है और दूसरा निष्क्रिय इच्छामृत्यु (पेसिव यूथेनेशिया)है |
इन दोनों में बहुत अंतर है | सक्रिय इच्छामृत्यु वह है जिसमें चिकित्सा पेशेवर, या कोई अन्य व्यक्ति कुछ जानबूझकर ऐसा करते हैं जो मरीज के मरने का कारण बनता है | निष्क्रिय इच्छामृत्यु (Passive euthanasia) तब होती है जब गंभीर लाइलाज बीमारी से ग्रस्त रोगी के लिए मौत के अलावा और कोई विकल्प शेष नहीं रह जाता और मरीज की मर्जी से से ही उसे मौत दी जाती है |