महाकाव्य रामचरित्रमानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास जी को किसी भी परिचय की जरुरत नहीं है | उनके बारें में सभी इस बात को बहुत खूब जानते है की उन्होनें जीवन के कठिन क्षणों का कैसे सामना किया और अपनी समस्याओं का हल अपनी रचनाओं में बड़ी ही सहज और सरलता से समझाया ।
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सन् 1500 में उत्तर प्रदेश के राजापुर गाँव में महाकाव्य रामचरित्रमानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास जी का जन्म हुआ। तुलसीदास जी ने अपने जीवन में कई महान ग्रंथों की रचना की, जिनमें रामचरित्रमानस और हनुमान चालीसा अत्यधिक प्रसिद्ध हैं। यह सभी रचनाएँ आज भी समाज में लोगों का मार्गदर्शन करती हैं और आगे भी कई सालों तक युगों युगों लोग इन रचनाओं को याद रखने वाले है | आइये आज हम आपको उनके कुछ राशिद दोहों के बारें में बताते है |
1 दोहा – बिना तेज के पुरुष की अवशि अवज्ञा होय।
आगि बुझे ज्यों राख की आप छुवै सब कोय।
अर्थ – इस दोहे में तुलसीदास जी बताते है की जो लोग अपने चरित्र से तेज़ चालक होते है ऐसे लोगों की सलाह का कोई मतलब नहीं होता है जब कोई महत्व नहीं तो फिर भला उसकी बात मानने का क्या फायदा ठीक वैसे ही जब राख में लगी आग ठंडी हो जाती है तो हर कोई उसे छूने चला जाता हैं।
2 दोहा – तुलसी साथी विपत्ति के विद्या विनय विवेक।
साहस सुकृति सुसत्यव्रत राम भरोसे एक।
अर्थ – इस दोहे में तुलसीदास जी बताते है की हर मुश्किल की घड़ी में मनुष्य का साथ सिर्फ यह सात गुण ही देते है ज्ञान, नम्र व्यवहार, साहस, विवेक, सुकर्म, सत्यता और ईश्वर का नाम।
3 दोहा – राम नाम मनिदीप धरु जीह देहरीं द्वार।
तुलसी भीतर बाहेरहुँ जौं चाहसि उजिआर।
अर्थ – इस दोहे के जरिये तुलसीदास जी बताते है की हे मानव अगर तुम अपने अंदर और बाहर दोनों तरफ उजाला ही उजाला चाहते हो तो अपनी ज़ुबान से राम नाम जपते रहों। कहने का भाव यह है सोते-जागते, उठते-बैठते प्रत्येक कार्य को करते हुए अपने मुख से प्रभु का नाम लेते रहो।