हिन्दू धर्म में कई त्यौहार ऐसे है, जिनका अपना ही महत्व है, इसमें से के गोबरधन पूजा भी है | गोबरधन पूजा दिवाली के अगले दिन मनाया जाता है | इस पूजा में गाय की पूजा की जाती है | गोबर्धन पूजा को अन्नकूट पूजा के नाम से भी जाना जाता है | गाय को भी लक्ष्मी का एक रूप माना गया है | जिस तरह दिवाली के दिन लक्ष्मी जी का पूजन शुभ माना गया है, उसी प्रकार दिवाली के अगले दिन गोबर धन पूजा का भी अपना एक महत्त्व है |
गोबर धन पूजा द्वापर युग में शुरू हुई थी | पहले लोग दिवाली के अगले दिन भगवान इंद्र की पूजा करते थे | उसके बाद भगवान कृष्णा ने मथुरा वासियों को भगवान इंद्र की जगह गोबरधन पूजा करने को कहा | भगवान कृष्णा ने कहा हमारी माता गाय है, जिससे हमारा व्यवसाय चलता है | सभी लोगों ने भगवान कृष्णा की बात मान ली और इंद्र की जगह गोबरधन पर्वत की और अपनी गाय की पूजा की |
इंद्र को इस बात से बहुत क्रोध आया और उन्होंने सभी लोगों को डराने के लिए तेज आंधी तूफ़ान और बारिश कर दी, जिसके कारण मथुरा के सभी लोग बहुत डर गए | तब भगवान कृष्णा ने अपनी एक ऊँगली पर गोबरधन पर्वत उठा लिया और सभी लोगों ने उस पर्वत के नीचे शरण ली | इंद्र का तेज बारिश का प्रकोप पूरे सात दिन चला और भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र की सहायता से मथुरा वासियों पर भरी वर्षा का कोई प्रभाव नहीं हुआ |
तब भगवान ब्रह्मा ने इंद्र को इस बात से अवगत करवाया की वो जिससे वर्षा के रूप में लड़ाई कर रहा है, वो और कोई नहीं भगवान विष्णु है | उसके बाद भगवान इंद्र ने वर्षा का प्रकोप शांत किया और भगवान कृष्णा से क्षमा मांगी | उस दिन के बाद से गोबरधन पूजा हिन्दू धर्म में दिवाली के बाद मनाई जाती है |
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