1.शराब पर 70% कोरोना टैक्स
2. मजदूरों से रेलवे द्वारा 15% किराया की वसूली
3. पेट्रोल और डीजल के दामों में बढ़ोतरी
पहले शराब पर राज्य की सरकारें 70 फ़ीसदी टैक्स लगा देती है यानी कि जो शराब 100 रुपए की होगी वह आपको 170 रू में मिलेगी. वह भी उस समय में जब पहले से लोग मुश्किलों का सामना कर रहे हैं. उनको और अतिरिक्त बोझ दे दिया गया है.
दूसरा प्रवासी मजदूरों से रेलवे द्वारा टिकट का 15% रुपया वसूला जा रहा है समझ से बाहर है कि ऐसे समय में रेलवे को मात्र 15% रुपए वसूल कर क्या हासिल हो जाएगा.वह मजदूर तो खुद पहले से ही पैसों की तंगी का सामना कर रहे हैं इसमें मान लिजिए 100 रुपए की टिकट है. यात्री को टिकट का 15% यानी 15 रू देना है.
तीसरा अपने आपको गरीबों का मसीहा कहने वाली बीजेपी सरकार डीजल पेट्रोल पर उत्पाद शुल्क और बढ़ा देती है. वह भी ऐसे समय में जब लोग पहले से ही आर्थिक तंगी का सामना कर रहे हैं कच्चे तेल की कीमतें कम हो गई हैं सबको यह उम्मीद थी कि अब तेल की कीमतों में भी भारी गिरावट देखने को मिलेगी मगर सरकार ने कसम खा रखी है कि वह नागरिकों से ही वसूलेगी.
मेरा सवाल इतना है कि जब सरकार देश के तमाम घोटाले बाजों का रुपया माफ कर दे रही है तो लोगों से ही अत्याचार क्यों हो रही है. कोरोना की वजह से लोग पहले से ही तंगी झेल रहे हैं. भारत के लोग पहले ही बेबस हैं ऊपर से सरकार तरह-तरह के टैक्स लगाकर लोगों को और ज्यादा बेबस कर रही हैं. जब रिजर्व बैंक ने घोटालेबाजों के 68 हजार करोड रुपए का कर्ज माफ कर दिया तो लोगों से टैक्स फालतू को क्यों वसुला जा रहा है.जिनमें मुख्य नीरव मोदी मेहुल चौकसी के 8,048 करोड़, जतिन मेहता के 6,038 करोड़, विजय माल्या के 1,943 करोड़ रुपए माफ करके क्या संदेश देने की कोशिश की जा रही है.
मगर एक बात तो समझाइए आखिर लोगों से ही क्यों वसूली का खेल खेला जा रहा है. पहले से ही लोग पैसों की तंगी से जूझ रहे हैं ऊपर से और ज्यादा तंगी देकर लोगों को सरकार मुश्किल में डाल रही हैं. ऐसे समय में सरकार को जितना हो सके नागरिकों को राहत प्रदान करने वाली योजनाओ पर ध्यान देना चाहिए.
