कई हजार वर्षों के तप करने के बाद पार्वती ने शिवजी को पाया,मगर शिवजी को पाने के लिए पार्वती को कई दिक्कतों का सामना करना पड़ा. शिवजी के साथ करोड़ों अरबो लोगों की आस्था जुड़ी हुई है| मगर आपको जानकर हैरानी होगी जब शिवजी दुलहा बन कर शादी के लिए जाते हैं| तब पार्वती की मां शिवजी की वेश भुषा देखकर दंग रह जाती है| वह कहती हैं कि मेरी बेटी पार्वती इतनी सुंदर है और दूल्हा का वेशभूषा राक्षस की तरह है| शिवजी को अपनी सुंदरी पुत्री के योग्य ना मानकर पार्वती की माता रोने लगती हैं| बहुत समझाने पर पार्वती के माता पिता शादी के लिए राजी होते हैं| शिवजी का विवाह कैसे हुआ यह एक बहुत ही रोचक कथा है| तुलसीदास द्वारा रचित श्री रामचरितमानस के बालकांड में शिवजी और पार्वती के विवाह के बारे में बताया गया है
बालकांड के पृष्ठ नंबर 70 से 80 में शिव जी और माता पार्वती की शादी की पूरी कथा बताई गई है|
शिवजी के पास सप्त ऋषि आते हैं.शिवजी बहुत प्रेम वचन से सप्त ऋषियों बोलते हैं आप पार्वती के पास जाइए और उनके प्रेम की परीक्षा लीजिए.जब ऋषि पार्वती के पास जाते हैं तो उनको देखकर लगता है कि यह कोई मूर्ति है क्योंकि वह कई हजार सालों से शिवजी को पति के रुप में पाने के लिए तपस्या कर रही होती हैं| ऋषि मुनि पार्वती को कहते हैं "हे पार्वती सुनो तुम किस लिए भारी तप कर रही हो किसकी आराधना कर रही हो और क्या चाहती हो, हमसे सच्चा भेद कहो
पार्वती कहती है बात कहते हुए संकोच होता है मेरी मूर्खता सुनकर आप लोग हसेंगे, हे मुनियों मेरी मूर्खता तो देखो कि मैं शिवजी को ही अपना पति बनाना चाहती हूं| पार्वती की परीक्षा लेते हुए सप्त ऋषि बड़ी चतुराई से कहते हैं "हे पार्वती जो सवभाव से उदासीन गुणहीन,निर्लज्ज, बुरे वेश वाला मुंडमालाधारी, कुल्हीहिन, नंगा और सांपों को धारण करने वाला है. तुम ऐसे से शादी करोगी
यह सुनकर पार्वती हंसकर कहती हैं नारद जी ने मुझे जो वचन कहे हैं कि तुम्हारी शादी शिवजी से होगी.मैं वह वचन नहीं छोडूंगी चाहे घर बसे अथवा उजड़े इससे मैं नहीं डरती. करोड़ों जन्मों तक मेरी यही हट है कि या तो शिवजी को पति बनाऊंगी नहीं तो कुंवारे ही रहूंगी मैं अपना हट नहीं छोडूंगी चाहे शिव जी आप ही आकर सौ बार कहे.
शिव जी द्वारा शादी के लिए तैयार होना|
सब देवता ने कई प्रकार के वाहन और विमान सजाने लगे, कल्याण प्रद सुमंगल होने लगे अप्सराएं गाने लगे शिव जी के गण शिव जी का श्रृंगार करने लगे सांपों की माला, वस्त्र के स्थान में बाघमबर ओढ़ा. शिवजी के मस्तक पर चंद्रमा, सिर पर सुंदर गंगा जी ,तीन नेत्र ,गले में सांप कंठ में विष छाती पर मुंडो की माला थी. हाथों में त्रिशूल और डमरू लिए बैल पर चढ़कर शिवजी चलें,बाजे बजने लगे शिवजी को देख सभी देवता मुस्कुराने लगे
विष्णु और ब्रह्मा सब देवता गण अपने-अपने वाहनों पर चढ़कर बरात को चले , देवताओं की मंडली सब प्रकार से अनूठी थी पर दूल्हे के समान बरात नहीं सजी. तब विष्णु भगवान ने सब देवताओं को बुलाकर हंसकर कहा सब लोग अलग-अलग अपने अपने दल के साथ चलो, कोई बिना मुखा का था किसी के बहुत मुख् थे. कोई बिना हाथ पैर का कोई बहुत हाथ पाव वाला था कोई बहुत ही आंखों वाला कोई बिना आंखों वाला, गधा , कुत्ता, सूअर और सियार के मुख्य वाले बाराती बने हुए थे.भूत,प्रेत, पिशाच, राक्षस का समूह साथ में था जिसका वर्णन नहीं किया जा सकता. बड़े मौजी सब भूत गन्न थे और गीत गाने लगे वे अद्भुत बचन बोलते थे जैसा दूल्हा था वैसे ही बरात बन गई
शिवजी की वेशभूषा को देखकर नगर में भगदड़ मच जाना|
पार्वती की नगरी में सब लोग नगर को इस तरह सजाए हुए थे जो देखता वह देखता ही रह जा रहा था. सभी नगर वासी बरात का इंतजार कर रहे होते हैं.नगर के समीप जब बारात आई तब नगर में खलबली मच गई देवताओं की सेना देखकर सब लोग प्रसन्न हुए और हरि भगवान को देख कर बहुत सुखी हुए
जब शिवजी के समाज को देखने लगे तब तक सभी नगर वासी डरकर इधर-उधर भागने लगे.कांपते हुए बालक अपने मां के पास गये ओर बोले 'क्या कहें कहा नहीं जाता" यह यमराज की सेना है या बरात "दूल्हा पागल सा बैल पर सवार है"सांप और भस्म उसके गहने हैं. शरीर पर भस्म, सांप और मुंडमाला भूषण धारण किए,नंगा, जटाधारी, भयंकर रूप और भूत-प्रेत राक्षस भयानक मुख वाले सभी दूल्हे के साथ है
पार्वती की मां नैना द्वारा पार्वती को शादी नहीं करने के लिए समझाना
शिवजी जनवासे को चले गए पार्वती की माता नैना के मन में भारी दुख हुआ और उन्होंने पार्वती को अपने पास बुला कर बड़े प्रेम से गोद में बिठाकर अपने नीलकमल के समान नेत्र में आंसू भरके कहा जिस ब्रह्मा ने तुमको एेसा रूप दिया है उस मुरख ने वर को इतना भयंकर और बावला क्यों बनाया जो फल कल्पवृक्ष में लगना चाहिए वह जबरदस्ती बबूल में लगा दिया.पार्वती की मां नैना आगे कहती हैं मैं तुम्हें लेकर पहाड़ से गिर पडु,अग्नि में जल मरु, अथवा समुंदर में डूब मरुं, चाहे घर उजड़ जाए.मैं अपने जीते जी इस वर से तुम्हारे विवाह नहीं करूंगी
पार्वती द्वारा अपनी मां नैना को समझाना
मां को व्याकुल देखकर पार्वती बहुत मीठे स्वर से बोलती हैं. विधाता ने जो रच रखा है वह टलता नहीं ऐसा समझकर सोच मत करो.मेरे भाग्य में जो बावला पति लिखा है तो किसी को दोष क्यों लगाया जाए.
नारद जी द्वारा पार्वती के पूर्व जन्म की कथा सुनाना
नारद जी ने पूर्व जन्म की कथा सुनाकर सबको समझाया.मेरा सत्वचन सुनो तुम्हारी कन्या भवानी जगत माता है.पहले इन्होंने दक्ष के घर जन्म लिया था वहां सुंदर शरीर धारी सती हुई. वहां भी सती का विवाह शिवजी के साथ हुआ था.
शादी का संपन्न होना
स्त्री पुरुष बालक युवा वृद्ध और नगर के सब लोग बहुत प्रसन्न हुए नगर में मंगल गीत फिर से होने लगे सब ने सोने के घड़े सजाएं.भोजन करके सब ने हाथ मुह धोआ और जलपान किया तब जहां जिसका वास था वहां सब बाराती चले गए पार्वती के पिता हिमाचल ने बड़े प्रेम के साथ अपनी बेटी को शिवजी के साथ विदा कर दिया जब शिवजी कैलाश पर आ गए तब सब देवता अपने अपने लोक चले गए इस तरह शिवजी और पार्वती का विवाह संपन्न हुआ.