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Marketing Manager (Nestle) | पोस्ट किया | ज्योतिष


केतु ग्रह की उत्पत्ति कैसे हुई?


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Blogger | पोस्ट किया


केतु ग्रह एक रहस्यमयी ग्रह है, क्योंकि इस ग्रह का अपना कोई वास्तविक रूप नहीं होता| केतु ग्रह को पापी ग्रह की संज्ञा दी गई है| इस ग्रह को किसी भी राशी का स्वामी नहीं कहा जा सकता क्योंकि इस ग्रह को किसी की स्वामित्व प्राप्त नहीं है| परन्तु इसके बाद भी हमारे जीवन को प्रत्यक्ष रूप में प्रभावित करता है| क्योंकि सभी राशियों में केतु ग्रह समय के अनुसार अपने स्थान को बदलता रहता है|


Letsdiskuss (इमेज -गूगल)


-आइये जानते हैं कि केतु ग्रह की उतपत्ति कैसे हुई:


पौराणिक कथा के अनुसार समुद्र मंथन के समय जो अमृत निकला, और उस अमृत को जब भगवान विष्णु, मोहिनी रूप धारण कर के अमृत बांट रहे थे तो स्वरभानु नामक एक राक्षस अपना स्वरुप बदलकर देवताओं की पंक्ति में बैठ गया और उसने अमृत पी लिया|


परन्तु सूर्य और चंद्र देव ने उसको पहचान लिए जिसके बाद भगवान विष्णु ने क्रोध में आकर उसका गला सुदर्शन चक्र से उसके धड से अलग कर दिया| क्योंकि वह अमृत पी चूका था तो उसकी मृत्यु नहीं हुई, परन्तु वह जीवित भी नहीं था| लेकिन उसका सिर राहु कहलाया और धड़ केतु बन गया, जो आगे चलकर ग्रहों में परिवर्तित हो गया|


-ज्योतिष शास्त्र में केतु ग्रह का स्थान:


ज्योतिष शास्त्र के अनुसार केतु ग्रह अशुभ ग्रह माना जाता है| जिनकी राशी में केतु का समावेश होता है उन व्यक्ति को कई तरह की परेशानी हो सकती है| केतु ग्रह, राहू के साथ मिलकर किसी भी भी कुंडली में कालसर्प दोष का निर्माण करते हैं| जिनके लग्न में केतु होता है, वह व्यक्ति वैराग्य जीवन की ओर प्रेरित होते है|


केतु को मजबूत करने के उपाय:


भगवान गणेश की अराधना करें|


दो रंग वाले कुत्ते को रोटी दें|


ज्योतिष में राशी के अनुसार रत्न और रुद्राक्ष धारण करें|


केतु यंत्र की आराधना करें इससे केतु ग्रह आपके जीवन में कोई नुकसान नहीं पहुंचता|



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