दूध और औषधि का मिश्रण शरीर में ज्यादा असरदार होता है और इसका प्रभाव बहुत जल्द दिखने लगता है।
आयुर्वेद के लेख चरक संहिता में दूध और अश्वगंधा को साथ लेने की बात कही गयी है। इस लेख में ‘कार्य कारण सिद्धांत’ के नाम से इस बारे में जानकारी दी गयी है।
आयुर्वेद में कहा गया है, ‘सर्वदा सर्व भावनाम सामन्यम वृद्धि कारनाम।’ इसका अर्थ है कि शरीर में यदि किसी पदार्थ की मात्रा बढ़ रही है, तो उससे सम्बंधित बाहरी पदार्थों की भी मात्रा बढ़ रही है।
अश्वगंधा और दूध में ऐसी ही विशेषतायें हैं।
अश्वगंधा और दूध दोनों ही ओजस को पोषकता पहुंचाते हैं। दोनों एक दूसरे को ऊर्जा देते हैं।
जब कोई व्यक्ति इन्हें साथ लेता है, तब उसके शरीर में मौजूद कोई भी रोग दूर हो जाता है। इनका मिश्रण तीनों दोष में भी सहायक है।
इन्हीं कारणों से अश्वगंधा को दूध के साथ लिए जाने की सलाह दी जाती है।
टीबी जैसी बिमारी में अश्वगंधा और दूध साथ लेने से आराम मिलता है।
अश्वगंधा और दूध साथ लेने से शरीर हष्ट पुष्ट बनता है।
आयुर्वेद के साधु सुश्रुत ने कहा था कि अश्वगंधा को दूध के साथ लेने से वत्त दोष में आराम मिलता है।
अश्गंधा के पाउडर का सेवन सीमित मात्रा में ही करना चाहिए। आयुर्वेद के अनुसार रोजाना एक या दो चम्मच (3-6 ग्राम) ही पर्याप्त है। आमतौर पर इसे पानी में उबालकर सेवन किया जाता है या फिर आप दूध में मिलाकर इसका काढ़ा बना ले और फिर पियें
दो चम्मच अश्गंधा की जड़ लें।
इसे तीन कप उबलते हुए पानी में डालें।
लगभग 15 मिनट तक इसे उबालें।
अब आंच बंद कर दें और मिश्रण को छान लें।
अब रोजाना एक चौथाई कप इसका सेवन करें।
-अश्वगंधा लीफ एक्सट्रेक्ट :
एक चम्मच अश्वगंधा रूट या पत्तियों के पाउडर से लगभग 300 मिलीग्राम कंसन्ट्रेटेड एक्सट्रेक्ट बनाएं। अश्वगंधा पर कई शोधों से यह निष्कर्ष निकला गया है कि रोजाना 600-1200 मिलीग्राम अश्वगंधा एक्सट्रेक्ट का सेवन करना सही रहता है।
अगर आप सीमित मात्रा में अश्वगंधा का सेवन करें तो इससे कोई भी साइड इफ़ेक्ट नहीं होता है। अगर आप ज़रूरत सेज्यादा इसका सेवन करे हैं तो इससे एसिडिटी, अल्सर, स्किन रैशेज और एंग्जायटी का खतरा हो सकता है। गर्भवती महिलायें, हाइपरटेंशन और लीवर से जुड़े रोगों के मरीजों को इसका सेवन बिना डॉक्टर की सलाह के नहीं करना चाहिए।