Delhi Press | पोस्ट किया
कहते हैं राजनीति में हमेशा के लिए न कोई दोस्त होता है न ही दुश्मन। यह तो एक ऐसा खेल हैं जहां अपना फायदा नुकसान देख कर चालें चली जाती है। इसका बेहतरीन नमूना हम यूपी के उपचुनाव और बाद में कर्नाटक विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद देख चुके हैं। याद दिलाने के लिए बता दें कि यूपी में जहां सपा-बसपा जैसे धुर विरोधी एक दूसरे का साथ देने आ गए वहीं कर्नाटक में चुनावी रैलियों के दौरान एक दूसरे को पानी पी पी कर कोसने वाले जनता दल सेक्युलर और कांग्रेस ने बीजेपी को सरकार बनाने से रोकने के लिए हाथ मिला लिया।
अब ऐसा ही एक बार फिर मध्यप्रदेश में देखने को मिल सकता है। जहां कांग्रेस दलित वोटरों को रिझाने और पाने के लिए मायावती की पार्टी बसपा से गठबंधन कर सकती है। इस गठबंधन का आधार कर्नाटक की सफलता को माना जा रहा है। मीडिया में आ रही खबरों के मुताबिक बातचीत अंतिम दौर में है और जल्द ही इस गठबंधन का ऐलान किया जा सकता है।
यह तो नतीजों के बाद की बात है कि कांग्रेस को इस गठबंधन से कितना फायदा होगा लेकिन इतना तय है कि बीजेपी के खिलाफ माने जा रहे दलित वोटर बसपा को राज्य में एक बड़ी पार्टी के रूप में स्थापित कर सकते हैं। जोड़ तोड़ की इस राजनीति में दलित वोट इसलिए अहम हैं क्योंकि मध्यप्रदेश के 90 फीसदी हिन्दू वोटरों में इनकी संख्या बहुत ज्यादा है। इसके अलावा कांग्रेस-बसपा के साथ आने से अल्पसंख्यक वोटरों को भी रिझाने की तैयारी है। बाकी देखना होगा कि इस नए गठबंधन का आगाज अपने अंजाम तक कब पहुंचता है और कितना सफल हो पाता है।
0 टिप्पणी