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चलिए आज हम आपको बताते हैं कि रामसेतु असली है या नहीं इसकी पूरी जानकारी देंगे।
धार्मिक ग्रंथो के मुताबिक त्रेता युग में भारत और लंका के बीच एक पुल बनाया गया था। जिसे रामसेतु के नाम से जाना जाता है। मैं आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि इस पल में प्रयोग होने वाले पत्थर आज भी पानी में तैरते हुए दिखाई देते हैं।
चलिए जानते हैं कि रामसेतु की सच्चाई क्या है:-
धार्मिक ग्रंथो में बताया गया है की लंका पहुंचने के लिए श्री राम की सेवा को समुद्र पर 100 योजन लंबा और संयोजन चौड़ा सेतु बनाना पड़ा था। जिसे बनाने के लिए नल और नील के साथ हजारों बंदरों की सेना ने भी पहले दिन 14 योजन तक पत्थर फेक, दूसरे दिन 20 योजन पत्थर फेक, तीसरे दिन 21 योजन, और चौथे दिन 22 योजन और फिर पांचवें दिन 23 योजन का काम पूरा किया गया। इस प्रकार संयोजन का काम 5 दिन में पूरा हो गया था।
इस प्रकार इस पुल की सहायता से राम अपने खास लोगों और बंदरी सेवा के साथ लंका पहुंचे थे।
हैरानी की बात यह है कि ऐसे तैरते हुए पत्थर आज भी ही रामेश्वरम में देखे जाते हैं।
पत्थरों पर आपको भगवान राम का नाम लिखा हुआ मिलेगा:-
बताया जाता है कि जब पुल बनाने के लिए पत्थरों को पानी में फेंका जाता था तो उसमें राम का नाम लिखकर पानी में फेंकने से पत्थर पानी में डूबता नहीं थे।
मैं आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि श्रीलंका की मुसलमान ने इसे आदमपुर कहना शुरू किया था, इसके बाद ईसाई लोग इसे एडम ब्रिज कहने लगे।
आज भी भारत और श्रीलंका के बीच रामसेतु अलग-अलग आठ टापू के रूप में सबूत के रूप में मौजूद हैं और पानी में तैरते हुए पत्थर आज भी राम कथा के गवाही देते हैं।
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