नमस्कार रोहन जी ,बड़ा ही खूबसूरत सवाल पूछा है आपने ,मानव स्वभाव यही है | जो दिल को अच्छा लगे वो सही चाहे उसमे कई बुराइयां हो और जो दिल को अच्छा न लगे वो कितना भी सही हो पर वो अच्छा नहीं लग सकता |
मानव स्वाभाव ऐसा ही होता है जब हम किसी को पसंद नहीं करते तो हमे उसमे सिर्फ बुराई ही नज़र आती है | क्योकि जब हमे कोई पसंद नहीं होता तो हम उसके बारे मे बुरा ही सोचते है सिर्फ उसकी गलती ही देखते है | चाह कर भी हम उसकी अच्छे नहीं देखते | इसलिए नहीं क्योकि हम देखते नहीं बल्कि इसलिए क्योकि हम देखना नहीं चाहते | ये बात सिर्फ दूसरों पर नहीं खुद पर भी लागू होती है | ये खुद पर भी होती है |
जब हम खुद को भी पसंद नहीं करते तो खुद से जुडी कोई चीज या कोई भी बात हमे पसंद नहीं आती | और जब खुद से प्यार करने लगते है तो सब कुछ अच्छा लगता है | यही मानव स्वभाव है| जब हमे कोई इंसान पसंद नहीं होता तो हम उसमे सिर्फ बुराई ही ढूंढ़ते है उसमे हमे कोई अच्छे नज़र नहीं आती | हम दिल मे ये मानकर बैठ जाते है के ये इंसान गलत है और ये कभी सही हो ही नहीं सकता | क्योकि हम उसको सही नहीं देखना चाहते |
जैसे की एक कहानी मे बताया गया है -"किसी के पास ऐसा कुत्ता था जो बहुत तेज भाग सकता था,उसमे इंसानो की तरह सोचने और समझने की शक्ति थी,वो किसी भी काम को अपने तेज दिमाग से सही करता था | एक जानवर मे इतनी खूबी ये मानने वाली बात है सभी को पर कमी निकलने वाले या गलती निकालने वाले लोग किसी पर भी गलती निकल सकते है | इस जानवर की इतनी खूबी के बाद भी कोई कहता है कि काश आपका कुत्ता पानी मे तैर सकता "
तो इस बात का सार ये है के आप चाहे कुछ भी कर लो जब तक अपनी अवधारणा बदलोगे नहीं तब तक कुछ नहीं हो सकता | मानव जब तक अपनी सोच नहीं बदलेगा वो खुद बदल नहीं सकता | सबसे पहले खुद को समझना सीखो तभी दुसरो के बारे मे विचार कायम कर सकते है |