हमारे देश भारत की प्रादेशिक राजनीति में कई ऐसे नेता हुए है जिन्हें भगवान समान दर्जा मिला रत के राज्य बिहार की राजनीति लेकिन उनका कार्य-चरित्र उससे मेल नहीं खा पाया| बिहार राज्य की राजनीति में ऐसे ही सूरमा है राष्ट्रीय जनता दल (राजद) अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव जो कि 1990 से लेकर 2005 तक प्रदेश के मुखिया रहे|
15 सालो तक सत्ता में रहने के दौरान लालू स्वयं भी चारा घोटाले में जेल गए लेकिन पत्नी राबड़ी देवी को सीएम पद पर बैठाकर जेल से सरकार चलवाई और लालू प्रसाद यादव के राज में बिहार में "जंगलराज" स्थापित हो जाने की कुख्याती प्रचलित हो गई जो की आंकड़ों व तत्यो पर परखी जाए तो सही साबित होती है और यह कहने या समझने को ज़रूर ज़ोर देती है कि क्यों बिहारियों को लालू प्रसाद यादव पर शर्म आती होगी|
अर्थव्यवस्था - 1985 में बिहार की प्रति व्यक्ति आय देश की कुल प्रति व्यक्ति आय का 59 % प्रतिशत था लेकिन 2005 में लालू यादव के गद्दी छोड़ने के वक़्त वह मात्र 26 प्रतिशत रह चुका था| बिहार एक मात्र ऐसा राज्य रहा जहाँ शहरीकरण घटा| 1981 में जहाँ शहरी आबादी 13 प्रतिशत थी तो वहीँ 2001 के सेन्सस में वह 10% प्रतिशत पर गिर गया|
जातिवाद - बिहार में जातिवाद का सबसे नकारात्मक संयोजन करने वाले लालू यादव ही रहे ही जिन्होंने यादव +मुस्लिम कार्ड खेला और पूरे तंत्र अन्य समाजों के ऊपर इन्हे तर्ज़ी देकर शेषो का दमन किया|
अपराध -इसी जातिवाद से उत्पन्न हुआ अपराध का ऐसा सिलसिला जिसे लोग आज भी शहर -गाँव में महसूस करते नज़र आ जायेंगे| मोहम्मद शाहबुद्दीन हो या पप्पू यादव जैसे अपराधी राजनेताओं के उदाहरण,प्रदेश में जिस तरह क्राइम का स्तर बढ़ा वह प्रमाणित है| चोरी ,अपहरण,हत्या ,बलात्कार जैसे अनगिनत अपराधों की सूचांक में बिहार राज्य देश के टॉप 3 राज्यों में डेढ़ दशक तक बना रहा|
घोटाले-अंत में जिसके कारण लालू यादव की सरकार का पाप का घड़ा भरकर टूट गया वह साबित कर देता है कि वाकई वह क्यों सस्ता से बेदखल हो चले|
चारा घोटाला, आईआरटीसी घोटाला हो , ट्रेज़री घोटाला या पेंशन घोटाला| लिस्ट इतनी बढ़ी है कि आप खुद ही उन्हें भ्रष्ट कह देंगे| उन्हें स्वयं रांची की सीबीआई कोर्ट ने चाईबासा ट्रेज़री केस में दोषी करार देते हुए उनकी सांसद सदस्यता रद्द कर दी थी जिसके बाद उन पर 10 साल तक चुनाव न लड़ पाने का प्रतिबन्ध लगा| फिलहाल स्वास्थ से जूझते सज़ायाफ्ता लालू यादव हमेशा ही अपने अनोखे अंदाज़, हँसी भरे व्यंगनात्मक भाषणों और एक सड़क पर जनता से जुड़ने वाले नेता के तौर पर जाने जायेंगे वह भी मुख्यत: ग्रामीण लोगों के लिए जहाँ वह भगवान की तरह पूजे जाते है लेकिन एक शहरी जागरूक बिहारी उन्हें शर्मनाक ही मानता है|