संसार की महान विभूतियां किसी एक देश अथवा जाति की नहीं होती है। यद्यपि वह एक देश और जाति में जन्म लेती है परंतु उनके क्रिया कलाप समस्त मानव जाती को प्रभावित करते हैं और वे सभी की श्रद्धा का पात्र बनती है। ‘नर की सेवा’ ही नारायण की सच्ची सेवा है | इस आदर्श को मानकर चलने वाली ममतामई मां की मूर्ति मदर टेरेसा उन महान व्यक्तियों में से है जिन पर समस्त मानव जाति को गर्व है। नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने वाली तीसरी भारतीय नागरिक मदर टेरेसा आज विश्व भर में वंदनीय बनी हुई है।
मदर टेरेसा का जीवनः
मदर टेरेसा के जीवन का प्रारंभिक नाम आगनेस गोंवसा बेयायू था। इनका जन्म 27 अगस्त 1910 को यूगोस्लाविया के स्कोपले नामक स्थान पर हुआ था। उनके माता - पिता अल्वानियम जाति के थे। 12 वर्ष की अवस्था में भी उन्होंने निश्चय कर लिया कि वह एक सन्यासिनी का जीवन बितायेंगी। 18 वर्ष की अवस्था में नन बनने के इरादे से मदर टेरेसा आयरलैंड के लोरेटो ननों के केंद्र में शामिल हुई। वहाँ से उन्हें भारत जाने का संदेश मिला। सन 1929 में कोलकाता आयीं और वहां के लोरेटो एंटैली स्कूल की अध्यापिका बनीं। 16 - वीं शताब्दी में संत टेरेसा के नाम से मशहूर हुई अपना नाम उन्होंने टेरेसा रख लिया।
मदर टेरेसा गरीबों की मदद करनी शुरु कीः
मदर टेरेसा अक्सर कहा करती थी – “ एक दिन मैंने सपने में देखा कि मैं स्वर्ग के द्वार पर खड़ी हूं और सेंट पीटर मुझसे कह रहे है कि- लौट जाओ धरती पर, यहां कोई गंदी बस्ती नहीं है।” सन 1946 सितंबर 10 को टेरेसा एक बार रेल से दार्जिलिंग जा रही थीं। उस समय कोलकाता की गलियों में रहनेवाले गरीबों की दयनीय दशा देखकर उनकी हालत पर टेरेसा का दिल पिघल गया। तभी उन्होंने निर्णय लिया कि मुझे स्कूल की नौकरी छोड़कर गरीबों की मदद करनी होगी।
पुरस्कार एवं सम्मानः
सन 1950 में उन्होंने मिशनरीज ऑफ चैरिटी की स्थापना की। सन 1952 में उन्होंने “निर्मल हृदय” नाम से अपना पहला केंद्र शुरू किया और आज उनकी यह संस्था 120 देशों में काम कर रही है। वह 169 शिक्षण संस्थाओं, 1369 उपचार केंद्रों और 755 आश्रयगृहों का संचालन करती है। कुष्ठ रोगियों के लिए शांति गृह की स्थापना की है।
मदर टेरेसा का कहना है कि - सेवा का कार्य एक अत्यंत कठिन कार्य है और इसके लिए पूर्ण समर्पण की आवश्यकता है।
हमेशा अपनी मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी के वेश - नीली किनारेवाली सफेद साड़ी में रहनेवाली यह कृशकाय, मृदुभाषी महिला दुनिया भर में करुणा की सबसे जीवंत प्रतीक थी। मदर टेरेसा का दूसरा नाम निस्वार्थ सेवा है। वह इस पर अटल विश्वास रखती थी कि दूसरों को प्यार करने से भगवान की कृपा हम पर पड़ती है। स्नेहमयी माता, करुणा मूर्ति, विश्वमाता मदर टेरेसा का देहांत दिनांक 5 सितंबर 1997 को हुआ।
अनाथ बच्चों की, निस्सहाय महिलाओं की रक्षा करनेवाली मदर टेरेसा जैसी मनीषी को खोकर भारत ही नहीं, सारी दुनिया गहरी निराशा में डूब गई। मदर टेरेसा ने बूढ़ो, लाचारों की सेवा, बीमार, बदहाल औरतों की साज-संभाल, अनाथ, अपाहिज बच्चों के जीवन में नई रोशनी पहुंचाने में ही अपनी युवावस्था से लेकर आखरी सांस तक अपना जीवन बिताया।
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