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यूनेस्को द्वारा शुरू की गई साक्षरता प्रशिक्षणः
देश के सांस्कृतिक राजनीतिक व आर्थिक विकास के लिए साक्षरता एक पूर्व शर्त है। साक्षरता ना केवल एक शक्ति है, वरन यह एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें विकास प्रयासों संबंधित चुनौतियों का सामना करने के लिए लोगों को तैयार किया जा सकता है। व इसके माध्यम से अंतरक्षेत्रीय सहयोग की प्राप्ति भी संभव है। विकासशील देशों में पिछड़ेपन के लिए निरक्षरता मुख्यतः उत्तरदाई रही है। निरक्षर लोगों को साक्षर बनाने में ही वे संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारों का उपयोग नहीं कर लेंगे, वरन उनकी तत्तसंबंधी आवश्यकताएं इससे भी अधिक हैं। शिक्षा को मूल मानवाधिकार माना गया है।
विश्व में निरक्षरता की स्थिति को समझते हुए संयुक्त राष्ट्रीय संघ ने 1990 को अंतरराष्ट्रीय साक्षरता वर्ष के रूप में मनाने की घोषणा की है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति(1986)
प्रौढ़ साक्षरता - नीति में निरक्षरता के उन्मूलन के लिए पूरे राष्ट्र के संकल्प की आवश्यकता पर बल दिया गया है। केंद्रीय व राज्य सरकारें, राजनीतिक दल तथा उनके जन – संगठन, जन - संचार माध्यम तथा शैक्षिक संस्थाएं विभिन्न प्रकार के जन - साक्षरता कार्यक्रमों के प्रति समर्पित होंगे।
यूनेस्को की मान्यता है कि –
20 अप्रैल,1986 को भारत सरकार ने ससंद में राष्ट्रीय शिक्षा नीति का प्रारुप पेश किया। इस नीति के मुख्य मुद्दे इस प्रकार हैः-
किसी देश का शिक्षा स्तर अपने शिक्षकों से ऊँचा नहीं हो सकता सक्ष्य यह है कि देश भर में शिक्षकों को एक जैसा वेतन मिले और एक जैसी उनकी स्थितियाँ हो।
शिक्षकों के राष्ट्रीय संगठन सरकार के साथ मिलकर एक राष्ट्रीय आचार संहिता तैयार करेंगे, और उसके पालन की जिम्मेदारी भी लेंगे।