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Kanchan Sharma

Content Writer | पोस्ट किया | News-Current-Topics


भक्ति या अन्धविश्वाश……………………

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हम सभी देवी देवताओ की इतनी भक्ति करते हैं ,फिर भी दुखी हैं | अक्सर हम यही सोचते हैं कि हम दुखी क्यों हैं ? और हमारे साथ ही ऐसा क्यों होता हैं ? पर हम ये नहीं जानते कि दुनिया में और लोग भी रहते हैं | जो शायद हमसे भी ज्यादा तकलीफ में हैं ,और एक सबसे महत्वपूर्ण बात हम खुद से दुखी हैं न की भगवान से,परन्तु हम इस बात को समझ नहीं पाते और बेवजह ही भगवान् को दोष देते रहते हैं | ये बात सभी जानते हैं कि हम भगवान् को याद कब करते हैं | हम भगवान् को याद सिर्फ तब करते हैं जब हम दुखी होते हैं बल्कि तब नहीं करते जब हम खुश होते हैं या सुखी होते हैं |

जब हम भगवान् को अपने दुःख में ही याद करते हैं तो ये कहना तो साफ़-साफ़ गलत हैं कि हम सभी देवी देवताओ की इतनी भक्ति करते हैं ,फिर भी दुखी क्यों है ? देखिये न जबहम उनको याद ही दुःख में करते हैं तो हमारे दुःख कि वजह वो कैसे हुए हम खुद हुए ही हुए दुःख की वजह |

ये ज़िंदगी काफी मुश्किल चुनौतियों से भरी हुए हैं ,सिर्फ आपकी या मेरी ही नहीं सभी की और क्या आपने या कभी हमने ये सोचा हैं ? कि भगवान ने सिर्फ हमें ही क्यों चुना परेशानियों के लिए ,हम कभी इन बातों को नहीं सोचते क्योकि हम बस परेशान रहते हैं और उसके कारन दुःखी रहते हैं | अगर नहीं सोचा तो सोचिये के भगवान् ने सिर्फ आपको ही इसलिए चुना क्योंकि भगवान् जनता हैं कि आप में क्षमता हैं हर परेशानी झेलने कि,एक आप ही हो जिसके साथ वो हमेशा रह सकता हैं | क्योकि तमाम दुःखों के बावजूद भी आप परेशानियों से बाहर आ ही जाते हैं | इसलिए क्योकि भगवान हमेशा आपके साथ हैं |

तो हमे जरूरत हैं कि हम सिर्फ भगवान कि आराधना करे वो भी निस्वार्थ भाव से न की दिखावे से और जरूरत पर | क्योंकि अगर हम भगवान् को सिर्फ जरूरत पर याद करते हैं तो इससे उनके भक्तों की तो नहीं मगर आपकी भक्ति की उम्र जरूर कम हो जाएगी |

कुछ लोग भगवान् को बहुत मानते हैं और कुछ लोग भगवान् को बिलकुल नहीं मानते | जो लोग भगवान् को मानते हैं उन्हें हमारे हिन्दू धर्म में आस्तिक कहते हैं और जो लोग भगवान् को नहीं मानते उन्हें नास्तिक कहा जाता हैं | कुछ लोग तो पूजा पाठ में इतना विश्वाश करते हैं कि वो कुछ हद के बाद अन्धविश्वाश में बदल जाता हैं |

जब भगवान् की भक्ति विश्वाश से अंधविश्वास में बदल जाये तब सिर्फ विनाश ही होता हैं | इसलिए कहा जाता हैं कि भगवान् को मानो परन्तु उसकी भी अपनी एक सीमा होनी चाहिए | अगर विश्वाश अन्धविश्वाश में बदल जाये तो इंसान के लिए जानलेवा भी हो सकता हैं |

भक्ति या अन्धविश्वाश……………………

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