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उत्तराखंड अपनी सभ्यता और संस्कृति के कारण पूरी दुनिया भर में मशहूर है। सिर्फ सभ्यता संस्कृति ही नहीं बल्कि उत्तराखंड का खान-पान और रहन -सहन भी भारत के अन्य राज्यों के मुकाबले काफी भिन्न है और अगर बात खानपान की हो तो यहां अनेकों प्रकार के खान पान मौज़ूद है जिनके बारे में शायद ही हर कोई जानता हो, क्योंकि पहाड़ों में पाए जाने वाली सब्जियां व फल ऊंचे पर्वतीय इलाकों में या घने जंगलों में पाए जाते हैं । आज हम बात करेंगे उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के खान पान के बारे में। आज के इस लेख में हम बात करने वाले हैं कि उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों के लोग खाने में क्या खाते हैं।
1)बिच्छू घास की सब्जी
बिच्छू पहाड़ों में होने वाली एक प्रकार की घास है जिसका अक्सर माता -पिता अपने बच्चों को सजा देने के लिए किया करते हैं। बिच्छू घास को छूते ही करंट सा लगने लगता है और शरीर के जिस भाग पर यह लगाया जाए उस भाग पर काफी देर तक तेज झनझनाहट महसूस होती है, इसीलिए पहाड़ो में इसका खास का इस्तेमाल माता-पिता अपने बच्चों की गलती में उन्हें सजा देने के लिए करते हैं। लेकिन आपको शायद जानकर हैरानी होगी कि इस बिच्छू घास की सब्जी भी खाई जाती है, यह पहाड़ों की एक प्रसिद्ध सब्जी है और जो काफी स्वादिष्ट भी होती है। बिच्छू घास की सब्जी बनाने के लिए सबसे पहले बिच्छू घास को तोड़कर रख लिया जाता है उसके बाद इसे गर्म पानी में उबालकर रखा जाता है , उसके बाद उबले हुए पानी में से बिच्छू को निकालकर फिर उसका सारा रस निचोड़ा जाता है और फ़िर बिच्छू घास की सब्जी बनाई जाती है जो खाने में काफी ज्यादा स्वादिष्ट होती है।
2) भट की चुड़कानी
भट एक प्रकार की पहाड़ी दाल है, पहाड़ों में अधिकांश लोग भट की दाल की खेती करते हैं। इस दाल का रंग काला होता है और यह भट की दाल खाने में भी बेहद स्वादिष्ट होती है। भट की दाल बनाने के लिए सबसे पहले भट को गरम तवे में रखकर आग में भुना जाता है और उसके बाद इसकी दाल अन्य दालों की तरह ही बनाई जाती है और फिर इसका खाने में इस्तेमाल होता है। भट की दाल को बनाने से पहले इसे गर्म तवे में भुना जाता है इसीलिए इस डिस को भट्ट की चुड़कानी कहते हैं।
3) क्वैराल की कल्ली
पहाड़ी सब्जियों में क्वैराल की कल्ली की सब्जी बहुत ज्यादा प्रसिद्ध है। क्वैराल ऊंचे पहाड़ों में पाए जाने वाला एक वृक्ष है यह अधिकतर जंगलो में पाया जाता है। क्वैराल के पेड़ों में जो फूल होते हैं फूल को आकर लेने से पहले ही उसकी कल्ली को तोड़ लिया जाता है और उसकी सब्जी बनाई जाती है। क्वैराल की कल्ली को तोड़कर पहले गर्म पानी में उबाला जाता है और उसके बाद पानी में से कल्ली को बाहर निकालकर कल्ली को निचोड़ा जाता है और फिर उसके बाद उसकी सब्जी तैयार होती है।
4) जंगली मशरूम (च्यु)की सब्जी
वैसे तो मशरूम आसानी से मार्केट में मिल जाता है, लेकिन पहाड़ों में होने वाला मशरूम मार्केट में मिलने वाले मशरूम से काफी अलग होता है। पहाड़ों में पाए जाने वाले मशरूम को यहां की आम बोलचाल में च्युँ कहाँ जाता है।पहाड़ों में मशरूम अक्सर जंगलों में पाया जाता है। मशरूम की कई प्रकार की प्रजातियां जंगलों में पाई जाती है जिनमें से कुछ मशरूम खाने लायक तो कुछ मशरुम विषैले भी होते हैं। जो मशरूम विषैले होते हैं उनका रंग हल्का लाल होता है और जिस मशरूम को खाया जाता है वह हल्का सा भूरे और अंदर से सफेद रंग का होता है। पहाड़ों में मिलने वाला जंगली मशरूम की खासियत हैं कि यह मार्केट में नहीं मिलता जिसका कारण जानकर आप भी चौंक जाएंगे। पहाड़ों में जब-ज़ब जोरो की बिजली कड़कती है तब -तब जंगलों में मशरूम जमीन से बाहर निकलता है, जिसे पहाड़ों में च्युँ फूटना कहते हैं। बिजली कड़कने के बाद लोग मशरूम को जंगल में जाकर लाते हैं, और फिर उसके बाद इसकी सब्जी बनाई जाती है, मैं यह दावे के साथ कह सकता हूं कि अगर आपने एक बार च्युँ की सब्जी खा ली तो आप इसे जिंदगी भर नही भूल सकते।
5)लिमुड़े की सब्जी
लिमुड़ा पहाड़ों के जंगलों में होने वाली एक प्रकार की सब्जी है जो अधिकांश तौर पर जल स्रोतों के आसपास होते हैं। यह सब्जी जब ज्यादा बारिश होती है तभीजंगलों में होती है और अक्सर बरसातों के दौरान तो कुछ ज्यादा ही जंगलों में देखने को मिलती है। लिमुड़े को पहाड़ों में अलग-अलग स्थानों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है। लिमुड़े की सब्जी बहुत ही स्वादिष्ट सब्जी है जिसे बाकी हरी सब्जियों की तरह ही बनाया जाता है।
6)पिनालू,गडरी सब्जी
पहाड़ों में अधिकांश लोग खेतों में पिनालू लगाते हैं, यह एक चौड़े पत्तों के आकार का पौधा है जिसकी जड़ में आलू की तरह पिनालु होता है, और ठीक इसी तरह की एक और सब्जी जिसका नाम गडरी होता है। इसे आलू की तरह उबालकर फिर उसके बाद उसकी सब्जी बनाई जाती है। लेकिन इसमें एक खासियत यह होती है कि इसे उबले हुए आलू की तरह नहीं खाया जा सकता, अक्सर हम लोग उबले हुए आलू को खा लेते जिससे हमें कोई नुकसान नहीं होता, लेकिन यदि आपने पिनालू और गडरी को उबालकर उसके बाद इसे छीलकर खाने की कोशिश की तो इससे आपके गले में अजीब सा महसूस होने लगेगा, जिसे पहाड़ो में आम बोलचाल में कोकेल लगना कहते है। लेकिन अगर सही तरह से इसकी सब्जी बनाई जाए तो यह बहुत ही स्वादिष्ट सब्जी होती है।
7) गेठी की सब्जी
गेठी बेल में लगने वाली एक प्रकार की पहाड़ी सब्जी है, यह अक्सर आलू के बराबर ही होती है लेकिन इसका रंग हल्का काला होता है। पहाड़ों में इसकी सब्जी बनाई जाती है लेकिन इसके अलावा इसे ज्यादातर गर्म राख में रखकर पकाया जाता है उसके बाद इसे खाया जाता है इसे अक्सर सर्दियों के मौसम में खाया जाता है इसके अलावा पहाड़ों में आलू को भी ज़्यादातर ऐसे ही खाया जाता है।
8) रामकरेली
जिस प्रकार करेला बेल में लगता है ठीक उसी प्रकार रामकरेली भी बेल में लगने वाली एक प्रकार की सब्जी है। रामकरेली एक छोटे से आकार की सब्जी है जिसका रंग हरा होता है और जिसके चारों और छोटे- छोटे कांटे होते हैं लेकिन यह कांटे इतने ज्यादा नुकसानदायक नहीं होते हैं। रामकरेली को फोड़ने पर इसके अंदर काले रंग के बीज़ भी होते हैं। इसे भी अन्य हरी सब्जियों की तरह ही पकाया जाता है।
8)कैरू सब्जी
कैरू की सब्जी अक्सर जल स्रोतों के वहां पर देखने को मिलती है। यह जमीन पर उगने वाला एक जंगली पौधा है, जिसके तने से ऊपर के भाग को सब्जी के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। कैरू की सब्जी बनाने के लिए इसे पहले गर्म पानी में उबाल लिया जाता है उसके बाद इसकी बालियों को काट कर भिंडी की तरह इसकी सब्जी बनाई जाती है, कैरू की सब्जी खाने में काफी ज्यादा स्वादिष्ट होती है।
9)सगिन का साग
सगिन एक पेड़ होता है जिसमें सर्दियों के मौसम में गुलाबी रंग के छोटे -छोटे फूल खिलते हैं और इन फूलों को पहाड़ों में सब्जी के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। और इसकी सब्जी काफी लाजवाब होती है। सगिन का पेड़ पहाड़ों में अधिक ऊंचाई वाले स्थानों पर पाया जाता है।
10) बेड़ू की सब्जी
बेड़ू एक प्रकार का फल है जो पेड़ पर लगता है। पहाड़ों में अक्सर बेड़ू का पेड़ जंगलों के अलावा लोगों के घरों के आसपास भी पाया जाता है। बेड़ू के फल जब कच्चे होते हैं तब उन्हें तोड़कर उसकी सब्जी बनाई जाती है। इसके अलावा जब बेड़ू के फल पक जाते हैं तब उसे वैसे ही खाया जाता है। बेड़ू के वृक्ष के बारे में एक और बात आपको बता देना चाहता हूं कि जब हरेले का त्यौहार होता है,( हरेला एक पहाड़ी पर्व है ) हरेले से 11दिन पहले बेड़ू के पत्तों को तोड़कर फिर उसके बाद उन पत्तों की पांच पुड़िया बनाई जाती है और फिर उसके बाद उन पुड़िया के अंदर मिट्टी भरकर उसमें पांच प्रकार के अनाज बोए जाते हैं उसके बाद उसे घर के एक कोने में रखा जाता है और उसे घर के कोने में रखकर उसे 11 दिनों तक ढका जाता है और हर रोज उसे पानी दिया जाता है।11 दिनों बाद अनाज़ उन पांच पुड़ियों में जमकर बढ़ा हो जाता है और उसके बाद हरेले के त्यौहार के दिन उसे काटा जाता है।
दोस्तों उम्मीद करते हैं कि आपको उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के खानपान से जुड़ी हुई यह जानकारी जरूर पसंद आई होगी।पहाड़ों में आपका स्वागत है।धन्यवाद