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वित्त-मंत्री निर्मला सीतारमण ने 1 फरवरी, मंगलवार के दिन सत्र 2022-23 के लिये देश का आम बजट पेश करते हुये कहा कि सरकार विकास और गरीबों की भलाई को लेकर प्रतिबद्ध है। यह उनके द्वारा वित्त-मंत्री के रूप में पेश किया जाने वाला यह चौथा आम बजट है। इससे पहले सोमवार को आर्थिक-सर्वे ज़ारी किया गया था। जिसमें इस साल के लिये जीडीपी वृद्धि दर का अनुमान 9.27 प्रतिशत रखा गया है।
बजट में 2025-26 तक राजस्व घाटा जीडीपी के 4.5 फीसदी तक सीमित करने की बात की गई है। जबकि ज़ारी वर्ष 2022-23 के लिये यह 6.4 फीसदी रहने का अनुमान है। जिसे संशोधित करके राजस्व घाटा बजट का 6.9 प्रतिशत रहने का अनुमान किया गया है। इस वित्तीय वर्ष 2022-23 में कुल खर्च 39.45 ट्रिलियन रूपये रहने का अंदाज़ा बजट में लगाया गया है।
वित्त-मंत्री ने टाटा के पास एअर-इंडिया का स्वामित्व वापस जाने और एसआईसी का आईपीओ जल्द लाये जाने क सरकार की बड़ी उपलब्धि बताया। उन्होंने बताया कि भारत की अर्थव्यवस्था में वृद्धि दर का अनुमान नौ प्रतिशत से भी अधिक है।
वित्त मंत्री ने यह बजट पेश करते हुये कहा कि उनकी सरकार समावेशी विकास के पथ पर आगे बढ़ रही है। वित्त मंत्री ने कहा कि इस साल भारत की अर्थव्यवस्था में वृद्धि दर का अनुमान 9 फ़ीसदी से भी ऊपर है और यह दुनिया की सभी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं से ज़्यादा है।
इस बजट में जेम्स और ज्वेलरी, पॉलिश्ड हीरे और मेंथा ऑयल जैसी कई चीजों पर कस्टम-ड्यूटी घटा दी गई है। जिससे कपड़े व चमड़े के समान, विदेशी मशीनें, गहने और ज्यूलरी, जूते-चप्पल, मोबाइल चार्जर और पैकिंग के डिब्बे वगैरह चीजें सस्ती होंगी। दूसरी तरफ कस्टम-ड्यूटी बढ़ने के चलते कैपिटल गुड्स, इमीटेशन ज्वैलरी, छाते और बिना ब्लेंडिंग वाले ईंधन महंगे होंगे।
महंगी होने वाली चीजों में एथेनॉल, लाउडस्पीकर्स, ईयरफोन और हेडफोन, स्मार्ट मीटर, सोलर सेल, सोलर मॉड्यूल और एक्सरे-मशीन जैसी चीजें भी शामिल हैं। सरकार का कहना है कि पीएलआई योजना के तहत इन चीजों के घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देना है। इसीलिये इन वस्तुओं पर कस्टम-ड्यूटी यानी सीमा-शुल्क बढ़ा दिया गया है।
वित्त-मंत्री ने बजट में इंफ्रास्ट्रक्चर पर खास ध्यान दिया है। और सबके लिये कुछ न कुछ रक्खा है। जैसे --
बजट (2022-23) में किसानों के लिये क्या --
करदाताओं के लिये बजट --
शिक्षा क्षेत्र के लिये --
रक्षा क्षेत्र के लिये --
खेलों को बढ़ावा --
रेलवे --
डिजिटल इंडिया --
इस तरह देखा जाये तो बजट में समाज के लगभग हर वर्ग के लिये कुछ न कुछ दिखता है।
पर इसकी आलोचना इस बात को लेकर की जा सकती है कि
इस बजट 2022-23 में महंगाई और बेरोजगारी पर फोकस बिलकुल नहीं किया गया। जो आज देश की सबसे ज्वलंत समस्या बन चुकी है। क्योंकि बेरोजगारी के साथ अगर हमारी अर्थव्यवस्था समृद्ध होती दिखती भी है तो यह वास्तव में केवल कुछेक लोगों की समृद्धि ही होती है।
दरअसल रोजगारविहीन विकास का सीधा सा मतलब है कि अमीर लोग और अमीर होते जा रहे हैं और लोगों के बीच गरीबी-अमीरी की खाइयां बढ़ती जा रही हैं। यानी आय की असमानता बढ़ती जा रही है। जिसे तमाम जाने-माने अर्थशास्त्री आज के भारत की मूल आर्थिक समस्या बता चुके हैं। आंकड़ों पर नज़र डालें तो आज भारत की समग्र आय के 75 फीसदी हिस्से पर चोटी के महज़ 10 फीसदी लोग काबिज हैं। जबकि निम्न आयवर्ग की साठ फ़ीसदी आबादी के हिस्से में राष्ट्रीय आय का कुल पांच प्रतिशत के लगभग ही आता है।
महंगाई की मार भी समाज का यही निचला तबका झेलता है। उच्च आयवर्ग वालों पर उसका कोई असर नहीं पड़ता। बल्कि अक्सर तो महंगाई को और बढ़ाने में उनका भी हाथ होता है। हालांकि सरकार द्वारा निम्न आयवर्ग के लिये मुफ़्त राशन वगैरह योजनायें लाकर उन्हें राहत देने की कवायद चल रही है। पर हालात को देखते हुये ये नाकाफी है। इसलिये सरकार को खासतौर पर बजट में इन समस्याओं पर जरूर ध्यान देना चाहिये।
देश का बजट यूं तो आने वाले साल के आय-व्यय का अनुमानित लेखा-जोखा ही होता है। पर यह देश के आर्थिक विकास की दशा-दिशा भी तय करता है। कुछ विशेष वर्षों में आये बजट ने देश की आर्थिक धारा ही बदल दी। जैसे 1991-92 का बजट, जिसने देश में दशकों से चली आ रही नेहरूवादी सोच को तिलांजलि देकर उदारवाद और एक खुली अर्थव्यवस्था के लिये द्वार खोले। कुल मिलाकर देखा जाये तो हर बजट हमें कुछ न कुछ ख़ास देकर जाता है। जरूरत होती है सरकार में बैठे लोगों की नीयत और इच्छा-शक्ति की। फिलहाल सरकार के साथ सहयोग करते हुये हमें इस बजट का स्वागत करना चाहिये।