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Content writer | पोस्ट किया |


मैं बेटी हूँ इस धरती का बोझ नहीं | main beti hu bojh nahi | daughters are not curse

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वैसे तो संसार में पत्थर को देवी कह कर पूजा जाता है, पर बेटियों को उनके जन्म से पहले कोख में मार दिया जाता है | संस्कार बदल रहे है, विचार बदल रहे है कहने को हर दिन यह समाज नयी प्रगति कीओर बढ़ रहा है लेकिन हमारे समाज में बेटियों के प्रति आज भी भेद भाव और बोझ जैसी भावनाओं ने लोगों के दिमाग में घर कर रखा है |


मैं बेटी हूँ इस धरती का बोझ नहीं | main  beti  hu  bojh  nahi | daughters  are  not  curse  (courtesy-BCOpenTextbooks)

आज भी कई ऐसे घर है जहाँ जश्न सिर्फ बेटों के पैदा होने पर मनाया जाता है, और गलती से अगर बेटी हुई तो मातम मनाया जाता है | ये बेटियों के प्रति कौन सी सोच है जो हमें भेद - भाव पर मज़बूर कर देती है, जो हमें बेटी और बेटा होने में अंतर करना सीखाती है | साल 2011 में राजस्थान के झुंझुनू इलाके में जहाँ लड़कियों की संख्यां 837 थी वही लड़कों की संख्यां 1000 के पार थी, यह अंतर रूढ़िवादी सोच का है या फिर बेटियों को बोझ समझने का | कहने को तो हम ऐसे कलयुग में जी रहे है जहाँ लड़कियों को लड़कों के सामान बराबर अधिकार दिए हुए है की वह जैसे चाहे रहे, आगे बढ़ें और स्कूल जायें, लेकिन यह सभीबातें कहने और सुनने तक ही सीमित है , भारत जैसे देश में आज भी लड़कियों के स्कूल जाने पर पाबंदियां लगाई जाती है उन्हें बोझ बताया जाता है, क्योंकि हमारे समाज की जंग खायी सोच का कहना है एक लड़की पढ़ लिख कर क्या करेगी जब उसे एक दिन शादी कर के मात्र खाना पकाना है और अपना घर संभालना है |


(courtesy-TooYoungToWed)



बेटियों और बेटों में अंतर कोई नयी बात नहीं है, और इस समाज को समझा पाना की बेटियां भार नहीं आभार होती है बहुत मुश्किल है ये सोच में लगे वो कीड़े है जिनकी जड़ ना जाने कब से हमें जकड़ती हुई आ रही है |

जो लोग बेटियों को अभिशाप समझते है उनके लिए यह बात समझना बहुत जरुरी है की वर्तमान काल में कोई भी ऐसा काम नहीं है जो बेटियां न कर पाएं और एक बेटा कर लें, यहाँ तक की समाज में कई ऐसी महिलाएं है जिन्होंने बदलते हमारे समाज में अपने दम पर अपना नाम बनाया और अपने पूरे परिवार का नाम रोशन किया जिनमें से कुछ नाम है |



(courtesy-kcgmcedu)

1- कल्पना चावला

भले ही आज कल्पना चावला हमारे बीच न हो लेकिन कल्पना चावला का जन्म भारत देश के हरियाणा राज्य में हुआ था जहा आज भी जहा लडको की अपेक्षा लडकियों की जनसख्या ना के बराबर होती है , लेकिन जब भी कल्पना चावला आकाश की तरफ देखती थी तो वह मन ही मन अन्तरिक्ष की सैर करने की कल्पना करती थी, और कल्पना चावला की इन उड़ानों को पहली बार 1995 में पंख लगा जब वे अमेरिका | USA के नासा में अन्तरिक्ष कोर में शामिल की गयी | भला ऐसी महान बेटी को कोई भुला सकता है कभी |

(courtesy-India Today)


2- साक्षी मलिक

डीटीसी में बस कंडक्टर का काम करने वाले सुखबीर मलिक की बेटी साक्षी मलिक जिनका जन्म 3 सितम्बर 1992 को हुआ है हाल में 2016 में समाप्त हुए रियो ओलम्पिक खेल में भारत की तरफ से प्रवेश करने वाली पहली भारतीय महिला बनी जिन्होनें देश के लिए भारत के लिए ओलम्पिक में कास्य पदक जीता और पूरे देश का नाम रोशन किया |


(courtesy-hindisportskeeda)


3- एमसी मैरीकॉम

मैरीकॉम का जन्म 1 मार्च 1983 को मणिपुर में एक बहुत ही गरीब किसान परिवार में हुआ था, लेकिन मैरीकॉम अपनी मेहनत और सफलता के दम पर वह पहली भारतीय मुक्केबाज बनी जिन्होनें साल 2012 के ओलम्पिक खेल में कास्य पदक जीता, और इतना ही नहीं बल्कि मैरीकॉम 5 बार विश्व मुक्केबाजी में फाइनल विजेता रह चुकी है, मैरीकॉम की उपलब्धी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है उन्हें भारत के सर्वोच्च खेल सम्मान राजीव गाँधी खेल रत्न पुरस्कार से भी नवाजा जा चुका है |


(courtesy-The Asian Age)

4- चंदा कोचर

शायद ही कोई ऐसा क्षेत्र होगा जहाँ बेटियों ने अपने हुनर से नाम रोशन न किया हो, ऐसा ही एक नाम है चंदा कोचर जहाँ एक जगह घर से बेटियों को अकेले निकलने नहीं दिया जाता वही दूसरी तरफ चंदा कोचर वह बेटी बनी जो आईसीआईसीआई बैंक के प्रबंध निदेशक (CEO) है, और उनकी उपलब्धी इसी बात से लगाया जा सकता है साल 2009 में फोर्ब्स की 100 शक्तिशाली महिलाओ में चंदा कोचर 20वे स्थान पर आती है |

अगर इन सभी के माता - पिता भी इन सभी लड़कियों को बोझ समझते और जन्म से पहले मार देते या फिर अपने सपनो को पूरा करने का एक मौक़ा नहीं देते तो उन्हें कैसे पता चलता की बेटियां कितनी हसीं होती है, और उन्हें भी अपने सपनो को पूरा करने का पूरा हक़ है | उम्मीद है हर व्यक्ति इस बात को समझेगा बेटियां पाप नहीं प्यार होती है वह अभिशाप नहीं ईश्वर का वरदान होती है |


(courtesy-Amar Ujala)


" बेटियां परायी नही ये दो परिवारों का प्यार है

बेटियाँ बोझ नही ये उस स्वर्ग का द्वार है

जिसे हम मजबूर समझते है हर वक़्त

वो बेटी मजबूरी नही धारधार तलवार है

बेटियां माँ की जान होती है

बेटीयाँ पिता का सम्मान होती है

जो जानती हो हर दुख को भी सुख में बदलना

बेटीयाँ उस माँ का वरदान होती है

बेटीयाँ सच की प्रमाण होती है

बेटियाँ घर का अभिमान होती है

इनकी इज्जत करना सीखो क्योंकि

ये सिर्फ लड़की नही उस देवी समान होती है " |

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