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इसे लेकर कई तरह की मान्यताएं हैं. कुछ लोगों का मानना है कि यह चीन के 'वेट-मार्केट' से आया. चीन में कई जंगली जानवरों का इस्तेमाल खाने और दवाइयों के लिए किया जाता है. कोरोना वायरस वहीं से इंसानों में आया.
उस वक़्त तक चमगादड़ को कोरोना वायरस का मूल स्रोत माना जा रहा था. दलील दी जा रही थी कि चीन के वुहान शहर में 'जानवरों की मंडी' से ये वायरस कुछ इंसानों में पहुंचा और उसके बाद पूरी दुनिया में फैल गया.
इसके बाद एक शोध में कहा गया कि इंसानों में यह वायरस पैंगोलिन से आया है. इसे लेकर एक शोध भी हुआ.
इस शोध में कहा गया कि पैंगोलिन में ऐसे वायरस मिले हैं जो कोरोना वायरस से मेल खाते हैं.
लेकिन ये शोध भी अभी शुरुआती चरण में है. शोधकर्ताओं ने सलाह दी है कि पैंगोलिन पर अतिरिक्त नज़र रखे जाने की ज़रूरत है ताकि कोरोना वायरस के उभरने में उनकी भूमिका और भविष्य में इसांनों में उनके संक्रमण के ख़तरे के बारे में पता लगाने के बारे में समझ बनाई जा सके.
अब जबकि पूरी दुनिया में कोरोना वायरस फैल चुका है तो कुछ लोग इसे 'चीन का ईजाद किया जैविक आक्रमण' भी बता रहे हैं.
अमरीकी राष्ट्रपति ने कई मौक़ों पर कोरोना वायरस को चीनी वायरस या वुहान वायरस कहा है. इस 'कॉन्सपिरेसी-थ्योरी' को हाल के दिनों में और बल मिला है क्योंकि एक ओर जहा दुनिया के ज़्यादातर देश लॉकडाउन में हैं वहीं दो महीने से अलग-थलग पड़ा वुहान अब अपने यहां प्रतिबंधों को हटा रहा है.
सोशल मीडिया पर तो यहां तक कहा जा रहा है कि मौजूदा समय में चीन का वुहान शहर ही सबसे सुरक्षित जगह है जबकि क़रीब तीन महीने पहले यहीं से कोरोना वायरस का जन्म हुआ था.
लेकिन इस 'कॉन्सपिरेसी-थ्योरी' को भी चुनौती दी गई है.
कैलिफ़ोर्निया में जेनेटिक सिक्वेंसेस को लेकर हुए एक में इस बात की संभावना से इनक़ार किया गया है कि इसे प्रयोगशाला में तैयार किया जा सकता था या फिर जेनेटिक इंजीनियरिंग से. इस शोध के साथ ही चीन को लेकर जो 'कॉन्सपिरेसी-थ्योरी' चल रही था उसे भी चुनौती मिलती है.
कोरोना वायरस के बारे में जो एक बात स्पष्ट है वो ये कि यह क्रमिक विकास का नतीजा है.
ऐसे में यह तर्क कहीं अधिक मालूम पड़ता है कि कोरोना वायरस इंसानों में जानवरों से आया.
वैज्ञानिक जो तर्क दे रहे हैं उनके अनुसार, संक्रमित जानवर इंसान के संपर्क में आया और एक व्यक्ति में उससे वो बीमारी आ गई. इसके बाद वाइल्ड लाइफ़ मार्केट के कामगारों में यह फैलने लगी और इसी से वैश्विक संक्रमण का जन्म हुआ.
वैज्ञानिक इस कहानी को साबित करने की कोशिश कर रहे हैं कि कोरोना वायरस जानवरों से फैला. ज़ूलॉजिकल सोसाइटी ऑफ लंदन के प्रोफ़ेसर एंड्र्यू कनिंगम कहते हैं कि घटनाओं की कड़ी जोड़ी जा रही है.
लेकिन सवाल यह है कि हमलोग इसके संक्रमण या फैलने के बारे में कितना जानते हैं? जब वैज्ञानिक नए वायरस को मरीज़ के शरीर में समझ पाएंगे तो चीन के चमगादड़ों या पैंगोलिन को लेकर स्थिति साफ़ हो पाएगी.
लेकिन एक बड़ा सवाल यह भी है कि जानवर किसी इंसान को बीमार कैसे कर सकते हैं?
अगर बीते 50 सालों के आंकड़े देखें तो जानवरों से इंसानों में संक्रमण के मामले बढ़े हैं.
साल 1980 के समय में बड़े वनमानुषों से आया एचआईवी/एड्स संकट, साल 2004-07 में पक्षियों से होना वाला बर्ड फ़्लू और उसके बाद साल 2009 में सूअरों से होने वाला स्वाइन फ़्लू. जानवरों से आए इन सभी संक्रमणों ने पूरी दुनिया को प्रभावित किया.
लेकिन अगर हाल के सालों की बात करें तो 'सार्स' सबसे ख़तरनाक संक्रमण के तौर पर सामने आया है. सिवियर अक्यूट रेस्पाइरेटरी सिंड्रोम यानी सार्स चमगादड़ों से होता है. सिवेट्स से भी. लेकिन अगर चमगादड़ की बात करें तो इबोला संकट को भी भुलाया नहीं जा सकता.
जानवरों से इंसानों को संक्रमण होना कोई नई बात नहीं है. अगर ग़ौर करें तो ज़्याादातर जो नए संक्रमण सामने आए हैं वो वन्य-जीवों से ही इंसानों में फैल हैं.
लेकिन पर्यावरण में हो रहा लगातार और तेज़ परिवर्तन इस संक्रमण की दर को बढ़ा रहा है. हर रोज़ बढ़ते और बदलते शहर और अंतरराष्ट्रीय यात्राएं संक्रमण को बढ़ाने का कारण बन रही हैं. इसकी वजह से संक्रमण की दर कहीं तेज़ हुई है.
लेकिन एक प्रजाति की बीमारी किसी दूसरी प्रजाति में कैसे पहुंच जाती है?
अधिकांश जानवरों में रोगाणुओं की एक कड़ी होती है. उनके शरीर में मौजूद वायरस और बैक्टीरिया बीमारियों के कारण बनते हैं.
इन रोगाणुओं का क्रमिक विकास और जीवित रहने की क्षमता उनके नए होस्ट (जानवरों से ये जिस भी जीवधारी में जाते हैं) पर निर्भर करता है. एक होस्ट से दूसरे होस्ट में जाना इस क्रमिक विकास का ही एक तरीक़ा है.
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