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Prince Sen

Blogger | पोस्ट किया |


छोटी आंत आ गई थी बाहर, तेजी से फैल रहा था संक्रमण, निर्भया को बचाने के लिए झोंक दी थी पूरी ताकत, लेकिन...

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बस की लेजर स्कैनिंग, इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी जैसे एडवांस टेक्नोलॉजी से जांच की गई। जहां विनय के फिंगर प्रिंट के मिले। फिंगर प्रिंट की रिपोर्ट पर कोर्ट ने कहा कि यह साफ तौर पर घटना के वक्त विनय बस में मौजूद था।


निर्भया केस की जिम्मेदारी डीसीपी छाया शर्मा के पास थी। वह तीन दिनों तक घर नहीं गई थीं। छाया शर्मा की टीम का पूरा ध्यान गुनाहगारों को पकड़ने पर था, क्योंकि उन्हें पता था कि थोड़ी सी भी चूक हुई तो मामला हाथ से फिसल जाएगा। अपराधियों को पकड़ने के लिए छाया शर्मा ने 100 पुलिसकर्मियों की अगल-अलग टीमें बनाई गईं। केस के बाद छाया का ट्रांसफर मिजोरम कर दिया गया।


18 दिन में केस की चार्जशीट कोर्ट में सबमिट कर दी गई। सफदरजंग अस्पताल में निर्भया ने मजिस्ट्रेस्ट के सामने तीन बयान दिए, जिसमें उसने केस से जुड़ी अहम जानकारियां मिलीं। पुलिस को इनसे बहुत मदद मिली। 13 दिन बाद जब सिंगापुर के हॉस्पिटल में उसकी मौत हो गई तो इसे पीड़िता का आखिरी बयान माना गया।


हमें पता था कि ऐसी बस दिल्ली के बाहरी इलाके में खड़ी होगी। पूछताछ करते हुए हमने 18 घंटे के अंदर मुख्य आरोपी राम सिंह को पकड़ लिया। वह बस का ड्राइवर था। इसके बाद उसके भाई मुकेश को पकड़ा। बाकी 4 आरोपी भी जल्द ही गिरफ्त में आ गए।


बयान के आधार पर पता चला कि जिस बस में गैंगरेप हुआ है उसके सीटों का रंग लाल और उसपर पीला कवर चढ़ा हुआ है। दिल्ली-एनसीआर में ऐसी बस को बिना नंबर के खोजना आसान नहीं था। पुलिस टीम ने दिल्ली-एनसीआर की ऐसी 300 बसों को शॉर्टलिस्ट किया। वसंतकुंज के सीसीटीवी फुटेज खंगाले गए। सिर्फ एक बस पर यादव नाम लिखा था। उसी के आधार पर पहचान हुई।


दोषियों को सजा दिलाने के लिए यूं तो काफी सबूत और गवाह थे लेकिन पहली बार दुष्कर्म के मामले में आरोपियों, पीड़िता व घायल युवक के खून की जांच के लिए डीएनए टेस्ट कराए गए, जो अदालत में बड़े सबूत बने। आरोपियों के दांतों की जांच भी सफदरजंग अस्पताल में कराई गई, क्योंकि पीड़िता के शरीर पर कई जगह दांत से काटे जाने के निशान थे। फॉरेंसिक जांच के अलावा निर्भया के खून से सने कपड़ों और आरोपियों का मेडिको लीगल केस (एमएलसी) भी अहम सबूत बना।


कुछ इस तरह हुई थी दरिंदगीः निर्भया से दरिंदगी करने वाले आरोपियों ने चेहरे पर दांत से काटा था। छाती और गले पर नाखून से काटने के निशान मिले थे। इतना ही नहीं पेट पर नुकीले हथियार से गंभीर चोट लगा हुआ था। वहीं, इलाज कर रहे डॉक्टरों को प्राइवेट पार्ट्स पर तेज चोट के निशान लोहे की रॉड शरीर के अंदर डाले जाने के जख्म मिले थे। जिसके कारण बच्चेदानी का कुछ हिस्सा प्रभावित हुआ था। वहीं, रॉड की वजह से छोटी आंत पूरी तरह से बाहर आ गई थी। जबकि बड़ी आंत का भी काफी हिस्सा प्रभावित हुआ था।


फांसी के बाद दोषियों के पास थे विकल्पः निर्भया के दोषी फांसी से बचने के लिए कानून के विकल्पों का प्रयोग कर रहे थे। विकल्प खत्म होने के बाद के बाद दोषियों की फांसी का रास्ता साफ हुआ।


तेजी से फैल रहा था संक्रमणः पीड़िता का इलाज करने वाले चिकित्सकों में शामिल डॉ. पीके वर्मा और डॉ. राजकुमार ने बताया था कि उसके पूरे शरीर में संक्रमण फैल गया था। इसको काबू में करना बड़ी चुनौती थी। शुरुआती दौर में संक्रमण को कुछ हद तक काबू भी किया गया, लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया स्थिति बिगड़ती गई।


निर्भया को रिकवर करने के लिए चिकित्सकों ने पूरी ताकत झोंक दी और पांच सर्जरी करने के बाद भी उसके हालत बिगड़ती गई। जिसके बाद निर्भया को 26 दिसंबर की रात एयर एंबुलेंस से सिंगापुर के माउंट एलिजाबेथ अस्पताल भेजा गया। जहां निर्भया जिंदगी और मौत से दो-दो हाथ कर रही थी। लेकिन अंत में मौत के आगे वह जिंदगी की जंग हार गई और 29 दिसंबर को दम तोड़ दिया।


तीन बार मौत से बच चुके हैं दरिंदेः निर्भया के दोषी 3 बार मौत से बच चुके है। कोर्ट ने इससे पहले 3 बार डेथ वारंट जारी किया और दरिंदों के दलील के कारण तीनों बार फांसी पर रोक लगानी पड़ी। दिल्ली के पटियाला कोर्ट ने 7 जनवरी को पहली बार दोषियों को फांसी पर लटकाने के लिए डेथ वारंट जारी किया, जिसमें दोषियों को 21 जनवरी की सुबह 7 बजे फांसी पर लटकाए जाने का आदेश दिया गया। लेकिन दोषियों ने कानूनी दांव पेंच का प्रयोग करते हुए 14 जनवरी को इस आदेश पर रोक लगवा दिया।


दूसरी बार जारी हुआ डेथ वारंटः पहली बार फांसी की तारीख टलने के बाद दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने दूसरी बार डेथ वारंट जारी करते हुए 17 जनवरी को आदेश दिया कि दोषियों को 1 फरवरी की सुबह 6 बजे फांसी दी जाएगी। लेकिन दोषियों ने फिर पैंतरेबाजी करते हुए 31 जनवरी को फांसी को टलवाने में सफल हुए। जिसके बाद कोर्ट 17 फरवरी को आदेश देते हुए 3 मार्च को फांसी पर लटकाने का आदेश दिया। लेकिन दोषी तीसरी बार भी फांसछोटी आंत आ गई थी बाहर, तेजी से फैल रहा था संक्रमण, निर्भया को बचाने के लिए झोंक दी थी पूरी ताकत, लेकिन...


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