विश्व की दो महाशक्तियों -रूस और अमेरिका के बीच दुश्मनी का रिश्ता आज का नहीं काफी पुराना हो चुका है। 90 के दशक में सोवियत संघ का नृतत्वक हिस्सा रहते हुए भी दोनों के बीच दुनिया में वर्चस्व को लेकर शीत युद्ध चरम पर रहा| मौजूदा दौर में यह दोनों देश घोषित दुश्मन तो नहीं किन्तु घोर प्रतिद्वंदी ज़रूर है जिनके बीच रिश्ता दुश्मनी का ही है|

लड़ाई सिर्फ़ एक-दूसरे से श्रेष्ठ दिखाने की जंग के लिए होती है। अभी तक रक्षा हथियारों के व्यापार ज्यादातर अमेरिका के साथ किए जाते थे परन्तु समूचे विश्व के ज्यादातर देशों ने अमेरिका की बजाय रूस को वरीयता दी है, जिसके चलते अमेरिका एक बार फिर तिलमिला-सा गया है।
इस दुश्मनी के बीज का रोपण दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान दोनों देशों के मध्य हुए शीत युद्ध से ही हो चुका है। अब वो बीज पेड़ का आकार लेता जा रहा है। दोनों देशों की राजनीति शक्ति प्रधान है, जहां दोनों न सिर्फ़ शक्ति प्रदर्शन से एक-दूसरे को चुनौती देते हैं साथ ही अंतर्राष्ट्रीय राजनीति को भी बड़े स्तर पर प्रभावित करते हैं। ये दुश्मनी साम्यवाद के खिलाफ़ पूंजीवाद के वर्चस्व की लड़ाई है।
वर्तमान दौर में दोनों के बीच दुश्मनी का दौर फिर से शीत दौर वाले स्तर तक जा पहुँचा जब सीरिया में सैन्य दखल करते हुए रूस ने सीरियन सरकार के साथ उप्रदवियों के ऊपर कथित केमिकल अटैक करवाया और उसी के दुष्परिणाम स्वरुप अमेरिका ने बदला निकालने के लिए इसे ठोस वजह बनाते रूस पर आर्थिक प्रतिबन्ध लगाकर उसकी अर्थव्यस्था को चोट पहुँचाया|
रूस द्वारा सीरिया में हुए शिया बनाम सुन्नी के गृहयुद्ध जैसे हालातों में हस्तक्षेप करना उसकी कूटनीति का ही परिचायक है तो वहीं अमेरिका द्वारा वहां हमला किया जाना पूंजीवाद का शक्ति प्रदर्शन। दोनों वर्चस्व की लड़ाई हमेशा से लड़ते आए हैं।
दोनों महाशक्तियां अपने-अपने स्तर पर विश्व की राजनीति को बदलने की होड़ में लगे रहते हैं लेकिन कोई भी देश युद्ध की धमकी देने में बेहतरी समझता क्योंकि हर कोई जानता है कि लड़ाई हुई तो नुक्सान उसी का होना तय है| इसलिए रुसी राष्ट्रपति व्लादमीर पुतिन से दोस्ती दोबारा स्थापित कर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने रिश्तो को दोबारा स्थापित करने की पहल पेश की है जिसका पुतिन ने भी स्वागत किया है|