हम जिस समय में रह रहे हैं अर्थात वर्तमान, इसी को कलयुग कहा जाता है | महाभारत के अंत से प्रारम्भ हुए काल को अथवा युग को कलयुग कहा जाता है | कलयुग के विषय में भगवतगीता में भी वर्णन किया गया है, जिसमे श्रीकृष्ण कुरुक्षेत्र में अर्जुन को कलयुग के बारे में बताते हैं | भगवतगीता के अनुसार कुरुक्षेत्र में अर्जुन अपने ही भाइयों (कौरवों ) से युद्ध करने से कतरा रहे थे जिसपर श्रीकृष्ण ने उन्हें कलयुग के विषय में समझाया था |
महाभारत के अनुसार कलयुग के विषय में जब पांडवो ने श्रीकृष्ण से यह पूछा था कि कलयुग क्या है, तो श्रीकृष्ण ने पांडवो को जंगल जाने कि लिए कहा और यह भी बताया की वापस आकर उन्होंने क्या क्या देखा, लौटकर उसका वर्णन करें |
पांडवो अर्थात युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल व सहदेव ने जो देखा वह आकर श्रीकृष्ण को बताया | उन्होंने देखा की एक चिड़िया जिसके पंखो पर वेदो कि पंक्तिया हैं और वह एक व्यक्ति का मांस खा रही हैं, दो सूंड वाला हाथी है, छह सात कुए हैं जिसमे केवल एक कुआ खाली है, एक माँ अपने नवजात शिशु को इतना सहला रही है की वह लहू लुहान हो चूका है और एक बड़े पत्थर की शिला लुढ़कती हुई गिर रही है जो किसी पेड़ कि तने से न रुक स्की परन्तु एक छोटे से पौधे से रुक गयी | इन सभी आश्चर्यचकित चीज़ो को सुनकर श्रीकृष्ण ने कलयुग की परिभाषा दी |
श्रीकृष्ण ने कहा ली कलयुग में संत परमात्मा कहे जाने वाले व्यक्ति भी लोगो को खायँगे अर्थात संत कि भेष में वह दरिंदे होंगे, दो सूंड वाला हाथी अर्थात दो चेहरों वाले व्यक्ति होंगे जो आपके सामने अच्छा बनकर आप ही का शोषण करेंगे, कुए से अभिप्राय है की व्यक्ति अपने लोभ में इतना पागल हो जायगा की वह किसी भूखे को जल तक प्रदान नहीं करेगा, माता पिता अपने शिशु को इतना प्यार देंगे की वह अपने आप से कुछ करने लायक ही नहीं रहेगा तथा धन या किसी प्रकार का सुख आपको शांत नही कर सकेगा केवल आपका अंतर्मन और छोटी छोटी ख़ुशी ही होंगी जो आपको मुक्ति प्रदान करेंगी |
इस प्रकार श्रीकृष्ण ने कलयुग की परिभाषा दी थी, जो आज सत्य ही सिद्ध हुई है |