प्रवासी मजदूरों को तमाम दिक्कतों का सामना क्रोना वायरस की घड़ी में करना पडा है,चाहे वह पैसों की तंगी से जूझना हो, राशन की परेशानी,मकान मालिक को किराया देने की नौबत, चमड़ी को जला देने वाली गर्मी में पैदल चलने की नौबत, ट्रेनों द्वारा किसी दूसरे राज्य में ले जाकर छोड़ने की नई खबरें भी अब सामने आ रही है.हर परिस्थितियों में इन मजदूरों को ही क्रोना वायरस से लड़ना पड़ा है,आप सोच रहे होंगे मजदूरों ने कोरोना वायरस से कब लड़ाई की आखिर जो मजदूर इस वायरस के समय में इतनी दिक्कत सह रहें हैं,तो वह कोरोना से लड़ाई ही तो कर रहे हैं. आपकी नजर में क्रोना योद्धा अलग है मेरी नजर में कोरोना योद्धा वास्तव में मजदूर हैं......
प्रवासी मजदूरों को अब ट्रेनों द्वारा अपने गंतव्य स्थान पहुंचाने की बजाय किसी और राज्य में पहुंचा दिया जा रहा है. जो कि अब एक बहुत बड़ी समस्या बन चुकी हैं. ट्रेनों का नाम स्पेशल श्रमिक ट्रेन है. ट्रेनों के नाम से ऐसा लगता है जैसे ये ट्रेनें बहुत ही सुपर फास्ट होंगी क्योंकि ट्रेनों के साथ श्रमिक के साथ स्पेशल भी लगा है.साथ ही स्पेशल नाम इस्तेमाल करके रेलवे श्रमिकों से कुछ एक्स्ट्रा (50) रुपये भी वसूल रहा हैं.
गुजरात के सूरत से 16 मई को बिहार के सीवान आ रही दो ट्रेनें तो अपना रास्ता ही भटक गईं.एक ओडिशा के राउरकेला, तो दूसरी कर्नाटक के बेंगलुरू पहुंच गई. वाराणसी रेल मंडल ने जब छानबीन की तो पता चला कि इन ट्रेनों को 18 मई को सीवान पहुंच जाना था. लेकिन यह 9 दिन बाद सोमवार 25 मई तक सीवान पहुंच पाईं. इसके अलावा एक अन्य ट्रेन जयपुर-पटना-भागलपुर श्रमिक स्पेशल ट्रेन रास्ता भटककर पटना के बजाय गया जंक्शन पहुंच गई.
हैरान करने वाली बात यह है कि ट्रेन के ड्राइवर रास्ता भूल जा रहे हैं क्या उनकी आंखों में पट्टी बांधी गई है जो स्टेशन भी नहीं देख पा रहे है किसी दूसरे राज्य पर ले जाकर छोड़ दे रहे हैं आखिर कंट्रोल रूम क्या कर रहा है. इतना पैसा सरकार खर्च करती है मगर ट्रेनें दूसरे राज्य से अलग राज्य में पहुंच जा रही है.यह तो बहुत बड़ा शोध का विषय बन चुका है देखा जाए सरकार मजदूरों का शोषण होते देख कर ही खुश हैं.
