नवरात्रे अब समाप्ति कि और बढ़ रहे है | जैसा कि सभी जानते है माता कि नौ रूप है और इन नौ दिनों मे उनका पूजन विधान अलग अलग है | जैसे कि आज सातवां नवरात्रा है और आज कि दिन माता कालरात्रि का पूजन होता है | माँ कालरात्रि इनको इनके काले रंग कि वजह से कहा जाता है |
मां कालरात्रि का शरीर रात के काले अंधकार की तरह हैं। इनके बाल बिखरे हुए हैं तथा इनके गले में विधुत की माला है। इनके चार हाथ है जिसमें इन्होंने एक हाथ में कटार तथा एक हाथ में लोहे कांटा धारण किया हुआ है। इसके अलावा इनके दो हाथ वरमुद्रा और अभय मुद्रा में है। इनके तीन नेत्र है तथा इनके श्वास से अग्नि निकलती है। माता कालरात्रि का वाहन गर्दभ (गधा) है। इनको शुंभकारी भी कहा जाता है।
कालरात्रि का जन्म असुरों के राजा रक्तबीज का वध करने के लिए देवी दुर्गा ने अपने तेज से किया था। पौराणिक कथा के अनुसार दैत्य शुंभ-निशुंभ और रक्तबीज ने तीनों लोकों में हाहाकार मचा रखा था। इससे चिंतित होकर सभी देवतागण शिव जी के पास गए। शिव जी ने देवी पार्वती से राक्षसों का वध कर अपने भक्तों की रक्षा करने को कहा। शिव जी की बात मानकर पार्वती जी ने दुर्गा का रूप धारण किया तथा शुंभ-निशुंभ का वध कर दिया।
परंतु जैसे ही दुर्गा जी ने रक्तबीज को मारा उसके शरीर से निकले रक्त से लाखों रक्तबीज उत्पन्न हो गए। इसे देख दुर्गा जी ने अपने तेज से कालरात्रि को उत्पन्न किया। इसके बाद जब दुर्गा जी ने रक्तबीज को मारा तो उसके शरीर से निकलने वाले रक्त को कालरात्रि ने अपने मुख में भर लिया और सबका गला काटते हुए रक्तबीज का वध कर दिया।
माँ कलरात्रि के गुस्से को शांत करने के लिए स्वयं भगवान् शिव को आना पड़ा |