13 अप्रैल 1919 एक ऐसा दिन था जब मानवता तार-तार हो गई थी । इस दिन ने कई सारी साँसों को एक साथ रोक दिया। ये दिन जलियावाला बाग़ हत्या कांड के लिए जाना जाता है । इस दिन हुए हत्याकांड में कई मासूमों ने अपनी जान गवा दी , कई माँ की कोख उजड़ गई, कई बच्चे अनाथ हो गए , कई सुहागन विधवा हो गई और कई बहनों की राखियां बस उनके भाइयों के इंतज़ार में रह गई।
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पंजाब में स्थित स्वर्ण मंदिर के पास जलिया वाला बाग़ में 13 अप्रैल 1919 को अंग्रेजों द्वारा बनाये गए रॉलेट एक्ट के खिलाफ एक सभा बुलाई गई । रॉलेट एक्ट को काला कानून नाम से सम्बोधित किया गया, जिसके विरोध का नतीजा लोगों को अपनी जान गवा कर देना पड़ा । रॉलेट एक्ट के खिलाफ किये गए सत्य ग्रह आंदोलन के तहत 12 अप्रैल को ब्रिटिश सरकार ने अमृतसर के दो नेताओं चौधरी बुगा मल और महाशा रतन चंद को गिरफ्तार किया गया था जिनके लिए ही यह सभा बुलाई गई थी ।
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जनरल डायर ने जलिया वाला बाग़ के मुख्य द्वार पर अपनी सेना तैनात कर दी और अपने सैनिकों शूट करने का आदेश दे दिया । 10 मिनिट तक लगातार गोलियां चलती रहीं । गोलियों से बचने के लिए कुछ लोगों ने कुएं में छलांग लगाई । वो कुआं आज भी शहीदी कुआं कहलाता है ।
जनरल डायर के इस नरसंहार के फैसले का विरोध किया गया , परन्तु उनके खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की गई । अपनी नौकरी पूरी करने के बाद जनरल डायर अपना जीवन लदंन में बिता रहे थे, परन्तु जलिया वाला बाग़ नरसंहार की ज्वाला अभी तक भारतवासियों के मन में जल रही है। 13 मार्च 1940 जनरल डायर का आखरी दिन था ।
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जलिया वाला हत्याकांड का बदला लेते हुए उधम सिंह ने केक्सटन हॉल में उन्हें गोली मार दी । इस सम्मलेन में आधिकारिक रूप से मरने वालों की संख्या 379 बताई गयी, जबकि पंडित मदन मोहन मालवीय के अनुसार लगभग 1300 लोग मारे गए थे।
आज भी यहां पर उन गोलियों के निशान हैं जो उस वक़्त चलाई गई थी । जलिया वाला बाग़ में शहीद स्मारक बनाया गया जिसको “अग्नि की लौ” नाम दिया गया ।13 अप्रैल 2019 को जलिया वाला बाग़ हत्याकांड को 100 साल पूरे हो गए , पर आज भी इस घटना का दर्द लोग भूलते नहीं है ।
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