ज़िंदगी क्या है जानने के लिए ज़िंदा रहना बहुत जरुरी है , पर आज तक कोई भी रहा तो नहीं - गुलज़ार
60 के दशक से बतौर गीतकार अपना करियर शुरू करने वाले गुलज़ार ने कई बेहतरीन कविताएं और नज़्में लिखी, और वह केवल गीतकार ही नहीं बल्कि कवि, पटकथा लेखक, फ़िल्म निर्देशक भी है| गुलज़ार मात्र एक शख्सियत नहीं है बल्कि ऐसे इंसान है जिन्होंने अपने लेखो के ज़रिये पूरी दुनिया को ज़िंदगी के अलग अलग पहलुओं को समझाने की कोशिश की है | गुलज़ार को फिल्म स्लम्डाग मिलियनेयर के लिए सर्वश्रेष्ठ गीत के लिए ऑस्कर पुरस्कार मिल चुका है। इसी गीत के लिये उन्हे ग्रैमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है।
(कर्टसी-globalmovie)
गुलज़ार का जीवन परिचय -
- गुलज़ार का वास्तविक नाम सम्पूरन सिंह कालरा गुलजार है |
- गुलज़ार का जन्म 18 अगस्त, 1934, दीना, पाकिस्तान में हुआ |
- गुलज़ार भारतीय सिनेमा के प्रशिद्ध गीतकार और डायरेक्टर है |
- गुलज़ार की ख़ास बात यह है की वह शायरी , गज़ले, नज़्मों के अलावा फ्री स्टाइल कविताएं भी लिखते है|
- बचपन से गुलज़ार को शायरी सीखना और अंतराक्षरी खेलना पसंद था |
- गुलज़ार ने 1963 में महान संगीतकार सचिन देव बर्मन के लिए फिल्म बंदिनी में "मोरा गौरा रंग लै ले, मोहे श्याम रंग दै दे" गाने से अपने करियर की शुरूआत की जिसे लता मंगेशकर ने गाया था |
- 1971 में गुलज़ार ने हमको मन की शक्ति देना गीत लिखा , जो उस वक़्त बहुत प्रचलित हुआ |
- 1969 में गुलज़ार के गीत "हमने देखी है उन आँखों की महकती खुशबू " के लिए गुलज़ार को एक नयी पहचान दिलाई , और यह गीत उनके करियर में एक नया मुकाम लाया |
गुलज़ार की लिखी कविताएं -
- देखो, आहिस्ता चलो, और भी आहिस्ता ज़रा,
देखना, सोच-सँभल कर ज़रा पाँव रखना,
ज़ोर से बज न उठे पैरों की आवाज़ कहीं.
काँच के ख़्वाब हैं बिखरे हुए तन्हाई में,
ख़्वाब टूटे न कोई, जाग न जाये देखो,
जाग जायेगा कोई ख़्वाब तो मर जाएगा
- पूरे का पूरा आकाश घुमा कर बाज़ी देखी मैंने
काले घर में सूरज रख के,
तुमने शायद सोचा था, मेरे सब मोहरे पिट जायेंगे,
मैंने एक चिराग़ जला कर,
अपना रस्ता खोल लिया.
तुमने एक समन्दर हाथ में ले कर, मुझ पर ठेल दिया.
मैंने नूह की कश्ती उसके ऊपर रख दी,
काल चला तुमने और मेरी जानिब देखा,
मैंने काल को तोड़ क़े लम्हा-लम्हा जीना सीख लिया.
मेरी ख़ुदी को तुमने चन्द चमत्कारों से मारना चाहा,
मेरे इक प्यादे ने तेरा चाँद का मोहरा मार लिया
मौत की शह दे कर तुमने समझा अब तो मात हुई,
मैंने जिस्म का ख़ोल उतार क़े सौंप दिया,
और रूह बचा ली,
पूरे-का-पूरा आकाश घुमा कर अब तुम देखो बाज़ी
- खिड़की पिछवाड़े को खुलती तो नज़र आता था,
वो अमलतास का इक पेड़, ज़रा दूर, अकेला-सा खड़ा था,
शाखें पंखों की तरह खोले हुए.
एक परिन्दे की तरह,
बरगलाते थे उसे रोज़ परिन्दे आकर,
सब सुनाते थे वि परवाज़ के क़िस्से उसको,
और दिखाते थे उसे उड़ के, क़लाबाज़ियाँ खा के,
बदलियाँ छू के बताते थे, मज़े ठंडी हवा के!
आंधी का हाथ पकड़ कर शायद.
उसने कल उड़ने की कोशिश की थी,
औंधे मुँह बीच-सड़क आके गिरा है|
- अभी न पर्दा गिराओ, ठहरो, कि दास्ताँ आगे और भी है
अभी न पर्दा गिराओ, ठहरो!
अभी तो टूटी है कच्ची मिट्टी, अभी तो बस जिस्म ही गिरे हैं
अभी तो किरदार ही बुझे हैं.
अभी सुलगते हैं रूह के ग़म, अभी धड़कते हैं दर्द दिल के
अभी तो एहसास जी रहा है.
यह लौ बचा लो जो थक के किरदार की हथेली से गिर पड़ी है.
यह लौ बचा लो यहीं से उठेगी जुस्तजू फिर बगूला बनकर,
यहीं से उठेगा कोई किरदार फिर इसी रोशनी को लेकर,
कहीं तो अंजाम-ओ-जुस्तजू के सिरे मिलेंगे,
अभी न पर्दा गिराओ, ठहरो|