सच की राह में चलना कठिन नहीं है लेकिन वो उतना सरल भी नहीं है. सच बोलने की बात करे तो सबसे पहला ध्यान राजा हरिश्चंद्र का आता है जिन्हे जीवन में कितनी कठिन से कठिन परीक्षाओ का सामना करना पड़ा पर उन्होंने सच का साथ कभी नहीं छोड़ा.
आज के समय
किसी भी कही गयी बात को, सुनी गयी बात को या फिर देखि गयी बात, दृश्य को ज्यो का त्यों कह देना स्वीकार कर लेना सच माना जाता है. किन्तु जहा थोड़ा ठहर कर विचार कर के सिचुएशन को समझ कर अपनी बात को रखना ज्यादा सही होता है.
सच बोलने वाले व्यक्ति के जीवन और उसके व्यक्तित्व में अनेक परिवर्तन गुण देखने को मिलते है..
१. सच बोलने वाला व्यक्ति निडर होता है. और उसकी आवाज में बातो में आत्मविश्वास छलकता है.
२. लोग ऐसे व्यक्ति के बातो पर और उस पर भरोसा करते है क्योकि वो झूठ नहीं बोलता है.
३. सच बोलने वाला व्यक्ति जीवन में खुश रहता है और जीवन में किसी प्रकार का तनाव नहीं लेता है.
४. सच बोलने वाला व्यक्ति जीवन को आनंद के साथ जीता है उसे किसी प्रकार की चिंता नहीं होती है.
५. व्यक्ति का मन शांत होता है जिस करना उसका स्वाभाव भी शांत होता है.
६. सच बोलने से व्यक्ति को आत्मिक सुख की भी प्राप्ति होती है.
किन्तु आज के समय में यदि हम ध्यान से देखे तो झूठ के महत्व को भी कम नहीं किया जा सकता है जबकि वो किसी की जिंदगी और मौत से जुड़ा हो तो, एक डॉक्टर एक झूठ से मरते हुए व्यक्ति को बचा लेता है, बच्चे को एकदम से गिर जाने पर गहरी चोट लग जाने पर कई बार हम कहते है "नहीं बेटा कुछ नहीं हुआ, अरे तू तो कितना बहादुर है रोया तक नहीं" मन से हारे व्यक्ति को कई बार उसे उठाने के लिए झूठ बोलना पड़ता है,
वही सच की बात करे तो अदालत इसका अपवाद है.
एक छोटी सी कहानी से....
स्कूल से अपने घर आकर और स्कूल से मिले हुए हुए पेपर को अपनी माँ से देते हुए वह बच्चा बोला की “माँ मेरे शिक्षक ने मुझे यह पत्र दिया है और कहा है की इसे केवल अपनी माँ को ही देना, बताओ माँ आखिर इसमें ऐसा क्या लिखा है मुझे जानने की बड़ी उत्सुकता है”
तब पेपर को पढ़ते हुए माँ की आखे रुक गयी और गाला भर गया इसके बाद भी तेज आवाज़ में पत्र पढ़ते हुए बोली “आपका बेटा बहुत ही प्रतिभाशाली है यह विद्यालय उसकी प्रतिभा के आगे बहुत छोटा है और उसे और बेहतर शिक्षा देने के लिए हमारे पास इतने काबिल शिक्षक नही है इसलिए आप उसे खुद पढाये या हमारे स्कूल से भी अच्छे स्कूल में पढने को भेजे” ये सब सुनने के बाद वह बच्चा अपने आप पर गर्व करने लगा और माँ के देखरेख में अपनी पढाई करने लगा.
लेकिन माँ के मृत्यु के कई सालो बाद वह एक महान वैज्ञानिक बन गया और एक दिन अपने कमरे की सफाई कर रहा था तो उसे अलमारी में रखा हुआ वह पत्र मिला जिसे उसने खोला और पढने लगा उसमे लिखा था की “आपका बेटा मानसिक रूप से बीमार है जिससे उसकी आगे की पढाई इस स्कूल में नही हो सकती है इसलिए उसे अब स्कूल से निकाला जा रहा है” इसे पढ़ते ही वह भावुक हो गया और फिर उसने अपनी डायरी में लिखा की “थॉमस अल्वा एडिसन तो एक मानसिक रूप से बीमार बच्चा था लेकिन उसकी माँ ने अपने बेटे को सदी का सबसे प्रतिभाशाली व्यक्ति बना दिया”
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