दहेज एक ऐसा शब्द है जो एक कलंक की तरह हमारा पीछा करता है अगर दहेज को हम कलंकित शब्द की परिभाषा देंगे तो इसमें बिल्कुल भी बुरा नहीं होगा. भारत में दहेज एक तरह की डील जैसी होती है ऐसा लगता है जैसे लोग लड़की से शादी नहीं कर रहे हैं लड़की से मिलने वाले पैसों से शादी कर रहे हैं. और लोगों को मनचाहा दहेज ना मिले तो वह कई तरह के अपराध भी कर देते हैं कई बार यह भी सुनने को मिलता है कि अगर बहुत ज्यादा दहेज लेकर नहीं आती है तो सांस उसको बहुत प्रताड़ित करती है यहां तक कि उसका पति और उसके साथ दोनों मिलकर उस को मौत के घाट उतार देते हैं कई बार तो ऐसी भी खबरें मीडिया में सामने आती है कि भेजना मिलने की वजह से पति और सास ने उस को आग के हवाले कर दिया.
दहेज से हमें बहुत फर्क पड़ता है हम खुद की नजरों में गिर जाते हैं ऐसा लगता है जैसे हमें खरीदा गया है अगर हम लड़की को बोलते हैं और वह यह बात सुना देती है कि दहेज भी तो बहुत दिया है तो कोई क्या कर लेगा उस समय जो मन में आत्मग्लानि होगी उससे हम कैसे बन सकते हैं देश से हमें एक फर्क यह भी पड़ता है कि अगर कोई पिता अपनी बेटी की शादी नहीं कर पाता है वह वजह से तो उसके गुनहगार हम होते हैं वह कर्जा लेता है और अपना खेत बेचकर लड़की की शादी करता है और लड़कों वालों को दहेज देता है तो इसके गुनेगार हम हैं. बाद में जब लड़की लड़कों वाले के घर में आ जाती है और उसको प्रताड़ित किया जाता है दुख दिया जाता है और वह रोती गाती रहती है तो उसके गुनहगार हम खुद हैं ऐसा भेज लेकर क्या करोगे जिसमें केवल दुख ही दुख हो किसी की ली हुई संपत्ति से हम कितनी देर तो खुश रह सकते हैं हमारे पास खुद के भी हाथ पैर हैं कमा कर भी बहुत कुछ कर सकते हैं. एक मजबूर पिता कई बार फांसी लगा लेता है क्योंकि वह अपनी लड़कियों की शादी नहीं कर पाता तो इसके जिम्मेदार हम खुद हैं एक पिता कि जब 3 से 5 लड़कियां हो जाते हैं और वह भगवान को कोसता है कि उसकी इतनी बेटियों क्यों हुई उसको बेटा मिलना चाहिए क्योंकि उसको इस बात की परेशानी होती है कि वह इतनी बेटियों की शादी कैसे करेगा और दहेज कहां से लाकर देगा अगर वह पिता इस बातों को सोचता है तो इसके जिम्मेदार हम खुद हैं इन सभी परेशानी में अगर वह कितना फांसी लगाकर अपनी जान दे देता है तो हम इंसानों से बुरा कोई भी नहीं हो सकता क्योंकि हमने उस पिता को मजबूर किया है फांसी लगाने के लिए नहीं तो वह पिता कभी भी यह भी नहीं सोचेगा कि भगवान ने उसको इतनी बेटियां क्यों होती है वह सुख शांति से अपनी बेटियों को पा लेगा मगर ऐसा नहीं हो पाता है.
दहेज की वजह से हम अपनी इंसानियत को भूल जाते हैं हम भूल जाते हैं कि वह लड़की जिसकी शादी हुई है वह भी किसी की बेटी है किसी की बहन है मगर इस बात को बिल्कुल भी नहीं सोचते हैं दहेज लेते वक्त मुंह फाड़कर दहेज मांगा जाता है ऐसा लगता है जैसे कभी जिंदगी में पैसा ही नहीं उस इंसान के पास होता है जिस इंसान ने शादी करनी होती है.
सरकारी नौकरी वालों की तो बात ही अलग है जिसमें देश वैसा चलता है जैसे एक बहुत बड़ी बिजनेस डील चल रही है सरकारी नौकरी वाले दहेज के समय में अधिकतर हो ज्यादा तो करने हो जाते हैं ज्यादा दहेज चाहिए होता है. ऐसा अक्सर यूपी और बिहार उत्तर पूर्व इलाकों में ज्यादा देखने को मिलता है अगर किसी को सरकारी नौकरी मिल जाती है तो वह अपने आप को भगवान समझ लेता है और जो लड़की वाले होते हैं वह पहले से ही फिक्स कर लेते हैं कि सरकारी नौकरी लड़का चाहिए और उस लड़के को जितना भी दहेज देंगे चाहे कर्जा मांग कर देंगे या अपना खेत बेच कर देंगे प्रदेश सरकारी नौकरी वाले को जरूर देंगे.
ताकि हमारी लड़की बहुत खुश रहे मगर उसके बाद उल्टा ही होता है जब लड़की को प्रताड़ना सहनी पड़ती है अपने ससुराल जाकर तब वह देश बिल्कुल भी काम नहीं आता है वास्तव में देखा जाए तो दहेज शब्द ही हटा देना चाहिए क्योंकि यह शब्द प्रताड़ना का दूसरा रूप है देश की वजह से हर साल कई मौतें होती हैं कई बहुएं आग लगाकर खुद ही मर जाती हैं किसी को तो उसके ससुराल वाले ही मार देते हैं तो ऐसा दहेज लेने से क्या फायदा जिसमें इंसान ही मर जा रहा है.
अगर दहेज का मतलब सीधे शब्दों में निकालना भी जाए तो यही निकलना चाहिए कि जिस पिता की जितनी औकात है मैं अपनी मर्जी से जो अपने दामाद को दे दे उसे ही स्वीकार किया जाए और उसे ही देर कहा जाए तो बिल्कुल भी गलत नहीं होगा मगर दहेज का शब्द या बोलता हो चुका है मगर देखा जाए तो दहेज एक बदनाम शब्द है जिसने समाज को तोड़ने का काम किया है एक पिता को मजबूर करने का काम किया है एक बेटी को बेटी भी नहीं उसको एक प्रकार का हिंसा का सामने करने पर मजबूर किया है जिसका सारा श्रेय देश को जाता है और जो दहेज लेता है उस पर जाता है दहेज नहीं लेना चाहिए क्योंकि डेज लेने से कोई कमी नहीं हो जाता है और ना ही वह दहेज लेकर बहुत ज्यादा समय तक खुश रह पाता है इसलिए जो किसी को मिल जाए उसी में खुश रहे तो ज्यादा अच्छा है जो अपने मन से दे उसमें ज्यादा खुशी होनी चाहिए ना कि मुंह फाड़ कर कहा जाए हमको लाखों रुपए चाहिए कार चाहिए फलाना ढिमकाना समझ से बाहर है.