-तत्त्वमसि- इसका अर्थ क्या है?

image

| Updated on March 15, 2020 | Education

-तत्त्वमसि- इसका अर्थ क्या है?

1 Answers
2,819 views
P

@princesen5202 | Posted on March 15, 2020

तत्त्वमसि (तत् त्वम् असि) भारत के शास्त्रों व उपनिषदों में वर्णित महावाक्यों में से एक है, जिसका शाब्दिक अर्थ है, वह तुम ही हो। वह दूर नहीं है, बहुत पास है, पास से भी ज्यादा पास है। तेरा होना ही वही है।

सृष्टि के जन्म से पूर्व, द्वैत के अस्तित्त्व से रहित, नाम और रूप से रहित, एक मात्र सत्य-स्वरूप, अद्वितीय 'ब्रह्म' ही था। वही ब्रह्म आज भी विद्यमान है। वह शरीर और इन्द्रियों में रहते हुए भी, उनसे परे है। आत्मा में उसका अंश मात्र है। उसी से उसका अनुभव होता है, किन्तु वह अंश परमात्मा नहीं है। वह उससे दूर है। वह सम्पूर्ण जगत में प्रतिभासित होते हुए भी उससे दूर है।

यह मंत्र द्वारका धाम या शारदा मठ का भी महावाक्य है, जो कि पश्चिम दिशा में स्थित भारत के चार धामों में से एक है।

महावाक्य का अर्थ होता है?
अगर इस एक वाक्य को ही अनुसरण करते हुए अपनी जीवन की परम स्थिति का अनुसंधान कर लें, तो आपका यह जीवन सफलता पूर्वक निर्वाह हो जाएगा। इसलिए इसको महावाक्य कहते हैं।

तत्वमसि:-
गदर के दिनों में अठारह सौ सत्तावन में एक संन्यासी को कुछ अंग्रेजों ने भाला भोंक कर मार डाला था। वह संन्यासी पंद्रह वर्षों से मौन था। पंद्रह वर्षों से मौन था, जब उसने मौन लिया था तो उसने कहा था कि कभी जरूरत होगी तो बोलूंगा। फिर पंद्रह वर्ष तक कोई जरूरत न पड़ी और वह नहीं बोला। अंग्रेजों की एक छावनी के पास से वह निकलता था। उन्होंने यह समझ कर कि कोई भेदिया, कोई जासूस, कोई सी. आई. डी. रात अंधेरी थी और वह वहां से निकल रहा था। वह था अपनी मौज का आदमी। कहां रात थी उसे, कहां दिन था। जब आंख खुल जाती थी तो दिन था, जब आंख बंद हो जाती थी तो रात थी।

वह निकल रहा था छावनी के पास से। उसको पहरेदारों ने रोक लिया और पूछने लगे. कौन हो तुम? तो वह हंसने लगा। वह हंसने लगा। उसकी हंसी देख कर वे पहरेदार संदिग्ध हुए। पूछने लगे जोर से कि बोलो, कौन हो तुम? लेकिन वह तो था मौन। बोलता क्या? और अगर बोलता भी होता तो भी क्या बोलता? कौन हैं आप? तब भी तो सन्नाटा छा जाता।

तो वह हंसने लगा, लेकिन उसकी हंसी को तो गलत समझा गया। हंसी को हमेशा ही गलत समझा जाता है। उन्होंने उसे घेर लिया और कहा बोलो, अन्यथा मार डालेंगे। तो वह और हंसने लगा। उसे और जोर से हंसी आई, क्योंकि वे मारने की धमकी दे रहे थे। लेकिन मारेंगे किसको! वहां कोई हो तो मर जाए! वह और भी हंसने लगा तो उन्होंने भाले उसकी छाती में भोंक दिए। मरते क्षण में उसने सिर्फ एक शब्द बोला था। शायद जरूरत आ गई थी इसलिए। उसने उपनिषदों का एक शब्द बोला। उसने कहा ‘तत्वमसि।’ और मर गया। उसने कहा तुम वही हो, दैट आर्ट दाउ, तत्वमसि, तुम वही हो। वही जो है, और मर गया। तुम वही हो जो मैं हूं तुम वही हो जो है। जिस दिन पता चलता है कि मैं नहीं हूं उसी दिन पता चलता है कि सभी कुछ मैं हूं। जब तक मैं हूं तब तक सब और मेरे बीच एक फासला है। जिस दिन मैं नहीं हूं जिस दिन लहर नहीं है उस दिन पड़ोस की लहर और दूर की लहर सब वही हो गई। सारा सागर वही हो गया। जरूरत आ गई थी तो उसने कहा था, तुम भी वही हो।
Loading image...
0 Comments