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ज्ञान अर्जित करने की अपेक्षा उसे अधिक क्रियात्मक रूप देने के लिए कार्य-गोष्ठियों में अध्यापकों को अवसर मिलता है और उन्हें दैनिक समस्याओं का प्रयोगात्मक हल भी मिलता है | इनका कार्य क्षेत्र स्कूल की समस्याओं का आलोचनात्मक अध्ययन करना है जिन्हें हम कार्य गोष्टी कहते हैं|
उनका मुख्य कार्य-
रविंद्र नाथ टैगोर का विचार है कि-
“वास्तव में एक अध्यापक उस समय तक नहीं पढ़ा सकता है, जब तक वह नहीं सीखता है | एक दिया दूसरे दीए को तभी जला सकता है जब वह असल (स्वयं) में जल रहा है।“
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