आरक्षण
संविधान निर्माताओं ने बड़ी ही सूझबूझ एवं अपनी दूरदर्शिता का परिचय देते हुए संविधान की प्रस्तावना में ही सभी नागरिकों को सामान आधिकार देने की बात कही है , चाहे वह सामाजिक आधार हो , राजनीतिक आधार हो या फिर आर्थिक आधार ! वैसे भी हम सभी जानते है कि न्याय की बात तब तक सार्थक नहीं हो सकती जब तक उसका आधार समानता ना हो क्योंकि समानता ही न्याय का मेरुदंड है ! कभी यहाँ दूध की नदिया बहती थी , शेर और बकरी एक ही घाट पर पानी पीते थे जैसी उपमा लगभग हम सभी ने अपने देश के बारे में सुना ही है परन्तु इन सब के बीच हमें उन कडवे सच से भी दो-चार होना ही पड़ेगा जिन्होंने भारतीय समाज को अपनी कालिमा से महिमामंडित किया है ! जहां एक तरफ हमने अनेकों सभ्यताओं के आक्रमणों को करार जबाब देकर या तो उन्हें वापस भगा दिया अथवा उन्हें अपने में ही सम्मिलित कर लिया, परन्तु हम हार गए अपनी ही विभिन्न कुरीतियों जैसे बाल विवाह , सती प्रथा , छुआछूत से ! अब इसे हम हिंदुस्तान का दुर्भाग्य ना कहे तो भला इसे और कौन सी संज्ञा दें ! सबसे ज्यादा अगर भारतीय समाज का दोहन किसी कुरीति से हुआ है तो वह है छुआछूत ! यह भारतीय समाज का ऐसा कलंक है कि जब तक इसकी तह में जाकर इसका उन्मूलन ना किया जाय इसका उन्मूलन संभव ही नहीं है ! छत्रपति शिवाजी महाराज का ब्राह्मणों ने इसलिए राजतिलक नहीं किया क्योंकि वो एक क्षत्रिये नहीं थे , भीम राव अम्बेडकर अपनी पत्नी रमाबाई की अंतिम इच्छा जो एक बार पंढरपुर के मंदिर के दर्शन को जाना चाहती थी ना पूरा कर सके क्योंकि वो ऊँचे कुल के नहीं थे ! इन दो वाकयों से हम समाज में सुरसा की भांति पनपी छुआछूत जैसी कुरीति की पराकाष्ठा का अंदाजा लगा सकते है ! एक बहुत ही प्रसिद्ध सामाजिक चिन्तक बाला साहब देवरस ने यहाँ तक कह दिया कि ” अगर छुआछूत पाप नहीं तो पाप कुछ भी नहीं ” ! जिस देश के बहुसंख्यक लोगों के इष्ट देव ने निषाद को गले से लगाया हो , जटायु का अपने हाथों से अंतिम संस्कार किया हो , शबरी के जूठे बेर बड़े ही चाव से खाए हो , और तो और अहिल्या का ना केवल उद्धार किया अपितु उन्हें समाज में जगह भी दिलवाई , फिर भी ऐसे उत्कृष्ट समाज में कुरीतियों ने जन्म ले लिया और समाज को खोखला कर दिया ! इसी छुआछूत की प्रथा ने संविधान निर्माताओं के लिए समाज के एक वर्ग के नागरिक अधिकारों के हनन को मिली तत्कालीन सामाजिक मान्यता ने आरक्षण का मार्ग प्रशस्त किया
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