पाकिस्तान दुनिया की इकलौती जगह है, जहां गांधी को एहमियत नहीं दी जाती. सबसे ऊंचे सरकारी महकमों से लेकर किसी छोटे-मोटे पत्रकार तक, सब गांधी को पाखंडी मानते हैं. ऐसा शख्स, जो कि भारत की आजादी के बाद वहां रहने वाले मुसलमानों के ऊपर हिंदुओं का राज कायम करना चाहता था.
पाकिस्तान ने अपनी इतिहास की किताबों में गांधी को जगह दी है. हिंदुओं के नेता के तौर पर. हिंदुत्व में गहरी आस्था रखने वाला. हिंदुओं का समर्थक. बंटवारे के लिए जिम्मेदार. अल्लाह के कानून की जगह हिंदुओं के कानून वाला देश बनाने का पक्षधर. ऐसा देश, जहां मुसलमानों को अछूत समझा जाता. जहां अंग्रेजों की गुलामी खत्म होने के बाद मुसलमानों को हिंदुओं का गुलाम बनना पड़ता. मुसलमानों की सच्ची आजादी का विरोधी. ऐसी आजादी का विरोधी, जहां मुसलमानों पर केवल मुसलमान ही राज करते. पाकिस्तानी इतिहास में गांधी को ऐसे ही ‘खलनायक’ की जगह दी गई है. जिन्होंने इतिहास के नाम पर केवल ऐसी ही कोर्स की किताबें पढ़ी हैं वहां, वो गांधी को ऐसे ही जानते हैं.
1934 में गांधी कराची गए. इसी विक्टोरिया गार्डन में उनका भव्य स्वागत हुआ. उनके प्रति सम्मान दिखाते हुए इस जगह का नाम बदलकर महात्मा गांधी गार्डन रख दिया. बंटवारे के बाद पाकिस्तान में जगहों और चीजों के नाम बदलने की रवायत शुरू हुई. ये शुरुआत तो भारत में भी हुई, हो रही है. पाकिस्तान में ये रोग पहले आया. इतिहास बदलना उसके हाथ में नहीं. सो वर्तमान बदलकर खुश हो रहा था. इसी कड़ी में गांधी गार्डन का नाम बदलकर कराची जुलॉजिकल गार्डन्स कर दिया गया.
गांधी जी की इस देन को भी भूल गए पाकिस्तानी:-
हत्या से ठीक पहले गांधी ने मुसलमानों की हिफाजत के सवाल पर ही अन्न-जल त्यागा था. जब दोनों देशों की सरकारें आजादी का जश्न मना रही थीं, तब गांधी नोआखाली में हिंदू-मुस्लिम नफरत खत्म करने के लिए गलियां नाप रहे थे. 1947 में शुरुआत से लेकर अब तक पाकिस्तान में गांधी की आधिकारिक पहचान ऐसी ही बनी हुई है
महात्मा गांधी के कहने पर भारत ने पाकिस्तान को ऐसे वक्त 55 करोड़ रुपए का भुगतान किया था, जब उसे सख्त जरूरत था
आजादी के समय भारत के खजाने में 40 खरब रुपए थे. उसमें से पाकिस्तान को कामचलाऊ एडवांस के रूप में 20 करोड़ रुपए दिए गए थे। समझौते के अनुसार, अभी पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपए का और भुगतान होना था। तब तक कश्मीर को लेकर पाकिस्तान की फितरत सामने आ चुकी थी.
भारत ने कहा कि जब तक कश्मीर समस्या नहीं सुलझ जाती, तब तक ये 55 करोड़ रुपए नहीं दिए जाएंगे, वरना पाकिस्तान इस रकम से हथियार खरीदेगा और भारत के खिलाफ ही इस्तेमाल करेगा.
गांधीजी को जब पता चला कि नेहरू और पटेल ने पाकिस्तान का 55 करोड़ का भुगतान रोक दिया है तो वे बहुत नाराज हुए. उन्होंने दोनों नेताओं से कहा, पाकिस्तान को उसके हक वाला पैसा तुरंत दे दिया जाए, नहीं तो मुझे कुछ करना पड़ेगा. नेहरू-पटेल ने बापू को पूरी स्थिति बताई, लेकिन बापू तो बापू ठहरे.
गांधी ने 13 जनवरी 1948 को उपवास शुरू कर दिया. उनकी स्थिति लगातार बिगड़ती गई. तब लोगों में गांधी के प्रति गुस्सा भी फूट पड़ा था कि आखिर वे पाकिस्तान के हक की बात क्यों कर रहे हैं? उनके खिलाफ मार्च भी निकले. नेहरू-पटेल समेत पूरी कैबिनेट गांधी की इस हठ के खिलाफ थी, लेकिन कोई कुछ नहीं कर पा रहा था.उपवास के तीसरे दिन गांधी की स्थिति बहुत बिगड़ गई.
आखिरकार सरकार को झुकना पड़ा.15 जनवरी 1948 को सरकार की ओर से घोषणा की गई कि पाकिस्तान के 55 करोड़ रुपए जारी करने के आदेश दे दिए गए.
