अथर्ववेद में क्या बताया गया है

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| Updated on October 9, 2020 | Education

अथर्ववेद में क्या बताया गया है

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@shwetarajput8324 | Posted on October 9, 2020

#चतुर्थ_अथर्ववेद
 
अथर्ववेद की भाषा और स्वरूप के आधार पर ऐसा माना जाता है कि इस वेद की रचना सबसे बाद में हुई थी। अथर्ववेद के दो पाठों, शौनक और पैप्पलद, में संचरित हुए लगभग सभी स्तोत्र ऋग्वेद के स्तोत्रों के छदों में रचित हैं। दोनो वेदों में इसके अतिरिक्त अन्य कोई समानता नहीं है।
 
अथर्ववेद दैनिक जीवन से जुड़े तांत्रिक धार्मिक सरोकारों को व्यक्त करता है, इसका स्वर ऋग्वेद के उस अधिक पुरोहिती स्वर से भिन्न है, जो महान् देवों को महिमामंडित करता है और सोम के प्रभाव में कवियों की उत्प्रेरित दृष्टि का वर्णन करता है।
 
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रचना काल यज्ञों व देवों को अनदेखा करने के कारण वैदिक पुरोहित वर्ग इसे अन्य तीन वेदों के बराबर नहीं मानता था। इसे यह दर्जा बहुत बाद में मिला। इसकी भाषा ऋग्वेद की भाषा की तुलना में स्पष्टतः बाद की है और कई स्थानों पर ब्राह्मण ग्रंथों से मिलती है। अतः इसे लगभग 1000 ई.पू. का माना जा सकता है।
 
इसकी रचना 'अथवर्ण' तथा 'आंगिरस' ऋषियों द्वारा की गयी है। इसीलिए अथर्ववेद को 'अथर्वांगिरस वेद' भी कहा जाता है। इसके अतिरिक्त अथर्ववेद को अन्य नामों से भी जाना जाता है- गोपथ ब्राह्मण में इसे 'अथर्वांगिरस' वेद कहा गया है। ब्रह्म विषय होने के कारण इसे 'ब्रह्मवेद' भी कहा गया है। आयुर्वेद, चिकित्सा, औषधियों आदि के वर्णन होने के कारण 'भैषज्य वेद' भी कहा जाता है । 'पृथ्वीसूक्त' इस वेद का अति महत्त्वपूर्ण सूक्त है। इस कारण इसे 'महीवेद' भी कहते हैं
 
#ॐ_नमों_भगवते_वासुदेवाय
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