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ओम का नियम (Ohm's Law) विद्युत परिपथों (Electrical Circuits) में वोल्टेज, धारा (Current) और प्रतिरोध (Resistance) के बीच संबंध को दर्शाने वाला एक मौलिक नियम है। इसे 1827 में जर्मन वैज्ञानिक जॉर्ज साइमन ओम (Georg Simon Ohm) ने प्रतिपादित किया था। यह नियम बताता है कि किसी चालक (Conductor) में प्रवाहित होने वाली विद्युत धारा उस पर लगाए गए वोल्टेज के समानुपाती होती है और प्रतिरोध के व्युत्क्रमानुपाती होती है।
ओम के नियम को निम्नलिखित गणितीय सूत्र द्वारा व्यक्त किया जाता है:
जहाँ,
V = वोल्टेज (Voltage) या विभवांतर (Potential Difference) (वोल्ट में - Volts)
I = विद्युत धारा (Electric Current) (एम्पीयर में - Amperes)
R = प्रतिरोध (Resistance) (ओम में - Ohms)
इस नियम के अनुसार, यदि किसी चालक में प्रवाहित होने वाली धारा को बढ़ाना है, तो वोल्टेज बढ़ाना होगा या प्रतिरोध को कम करना होगा।
ओम का नियम बताता है कि:
यदि किसी परिपथ में वोल्टेज बढ़ता है, तो धारा भी बढ़ेगी (यदि प्रतिरोध स्थिर हो)।
यदि प्रतिरोध बढ़ता है, तो धारा कम होगी (यदि वोल्टेज स्थिर हो)।
यदि वोल्टेज और प्रतिरोध दोनों को बदला जाए, तो धारा उसी अनुपात में बदलेगी।
ओम के नियम को ग्राफ के माध्यम से भी समझा जा सकता है। यदि हम किसी चालक के लिए वोल्टेज और धारा के बीच संबंध को ग्राफ पर प्लॉट करें, तो हमें एक सीधी रेखा (Straight Line) प्राप्त होगी, जो दर्शाती है कि वोल्टेज और धारा में सीधा संबंध है।
X-अक्ष (Horizontal Axis) → विद्युत धारा (I)
Y-अक्ष (Vertical Axis) → वोल्टेज (V)
सीधी रेखा → दर्शाती है कि वोल्टेज और धारा समानुपाती हैं।
ओम का नियम विद्युत और इलेक्ट्रॉनिक्स के क्षेत्र में अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसके कुछ प्रमुख अनुप्रयोग निम्नलिखित हैं:
ओम का नियम किसी भी विद्युत परिपथ में वोल्टेज, धारा और प्रतिरोध की गणना करने में मदद करता है।
इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों जैसे कि ट्रांजिस्टर, रेजिस्टर, और माइक्रोचिप्स के डिज़ाइन में ओम के नियम का उपयोग किया जाता है।
ओम का नियम यह समझने में मदद करता है कि किसी परिपथ में अधिक धारा प्रवाहित होने पर कौन से सुरक्षा उपाय अपनाने चाहिए।
बैटरी और पावर सप्लाई सिस्टम को डिज़ाइन करने में ओम का नियम महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
हालांकि ओम का नियम अधिकांश विद्युत परिपथों में लागू होता है, लेकिन कुछ परिस्थितियों में यह नियम पूरी तरह से लागू नहीं होता।
ओम का नियम केवल रैखिक (Linear) उपकरणों पर लागू होता है। डायोड (Diode) और ट्रांजिस्टर (Transistor) जैसे गैर-रेखीय उपकरणों में धारा और वोल्टेज का संबंध जटिल होता है।
यदि किसी चालक पर अत्यधिक उच्च वोल्टेज लगाया जाए या उसका तापमान बहुत अधिक बढ़ जाए, तो उसका प्रतिरोध बदल सकता है, जिससे ओम का नियम पूरी तरह से लागू नहीं होता।
कुछ विशेष सामग्रियाँ, जिन्हें सुपरकंडक्टर्स कहा जाता है, अत्यधिक कम तापमान पर शून्य प्रतिरोध (Zero Resistance) प्रदर्शित करती हैं। ऐसे मामलों में ओम का नियम लागू नहीं होता।
यदि किसी परिपथ में 10 वोल्ट का वोल्टेज लगाया जाता है और प्रतिरोध 5 ओम है, तो धारा कितनी होगी?
इसलिए, परिपथ में प्रवाहित होने वाली धारा 2 एम्पीयर होगी।
यदि किसी परिपथ में 3 एम्पीयर की धारा प्रवाहित हो रही है और प्रतिरोध 4 ओम है, तो वोल्टेज कितना होगा?
इसलिए, वोल्टेज 12 वोल्ट होगा।
ओम का नियम विद्युत परिपथों में वोल्टेज, धारा और प्रतिरोध के बीच संबंध को समझने का एक सरल और प्रभावी तरीका प्रदान करता है। यह नियम इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग में अत्यंत महत्वपूर्ण है और विभिन्न उपकरणों के डिज़ाइन, विश्लेषण और सुरक्षा में उपयोग किया जाता है। हालांकि, कुछ सीमाओं के कारण यह सभी परिस्थितियों में लागू नहीं होता, लेकिन फिर भी यह विद्युत परिपथों को समझने के लिए एक मौलिक नियम है।
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