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कर कटौती (टीडीएस) वह निश्चित प्रतिशत होता है, जो सैलरी, कमीशन, रेंट, इंट्रेस्ट, प्राइज मनी या डिविडेंड जैसी विभिन्न प्रकार की पे-ऑफ पर काटा जाता है। टीडीएस के विवरण फॉर्म..
अलग-अलग तरह की आमदनी के लिए अलग-अलग टीडीएस दरें लागू की जाती हैं। उदाहरण के तौर पर, अगर फिक्स्ड डिपॉजिट पर मिला ब्याज 10 हजार रुपए से अधिक है, तो उस पर 10 फीसदी की दर से टीडीएस काटा जाता है। लेकिन अगर आपने किसी क्रॉसवर्ड पजल या कार्ड गेम या लॉटरी आदि में इनाम जीता है तो ३०फिसदी कटा जायेगा|
टीडीएस न काटने का अनुरोध किया जा सकता है। उदाहरण के तौर पर, डिविडेंड, ब्याज और म्यूचुअल फंड से होने वाली आमदनी को फॉर्म 15जी और 15एच में केवल सेल्फ डिक्लेयर कर ऐसा किया जा सकता है, यदि उस व्यक्ति की इन मदों से आमदनी टैक्स लगाने के लिए जरूरी राशि से अधिक न हो।
अगर टीडीएस अधिक काट गया हो तो-कई बार ऐसा भी होता है कि कोई व्यक्ति इनकम टैक्स के दायरे में नहीं आता, लेकिन उसके फिक्स्ड डिपॉजिट पर टीडीएस कट गया हो। ऐसी स्थिति में वह व्यक्ति इनकम टैक्स रिटर्न फाइल कर टैक्स रिफंड की मांग कर सकता है। अगर आपका टीडीएस कट गया है, तो भी आप पर टैक्स लाइबिलिटी बाकी रह सकती है। आम धारणा यह है कि यदि टीडीएस कट गया है तो आपको उसके ऊपर अदायगी करने की जरूरत नहीं है।
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टीडीएस (Tax Deducted at Source) एक प्रकार का कर (Tax) है, जिसे भारतीय कर प्रणाली के तहत किसी व्यक्ति या संस्था से उनकी आय के स्रोत से ही काट लिया जाता है। इसे हिंदी में "स्रोत पर कर कटौती" कहा जाता है। यह कर सरकार द्वारा सीधे उस व्यक्ति या संस्था के खाते में जमा कर लिया जाता है, जिसे आय प्राप्त होती है। टीडीएस का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि करदाता द्वारा घोषित आय पर कर सही समय पर और सही तरीके से वसूला जाए। इसे भारतीय आयकर कानून, 1961 के तहत लागू किया गया है। इस प्रणाली के माध्यम से कर कटौती पहले से ही हो जाती है, जिससे करदाता को बाद में अधिक परेशानियों का सामना नहीं करना पड़ता और सरकार को भी नियमित रूप से आयकर प्राप्त होता है।
टीडीएस का मुख्य उद्देश्य कर वसूलने की प्रक्रिया को सरल और प्रभावी बनाना है। इसके तहत, सरकार किसी भी व्यक्ति या संस्था की आय पर पहले ही कर कटौती कर देती है, ताकि उन्हें एक बार में बड़े कर का भुगतान न करना पड़े। इससे सरकार को आयकर वसूलने में भी सहायता मिलती है और करदाता को समय पर कर देने का बोझ भी कम होता है।
टीडीएस के माध्यम से कर एक निश्चित आय से पहले ही काट लिया जाता है और सरकार द्वारा निर्धारित दर के अनुसार इसे वसूला जाता है। इसके अलावा, टीडीएस करदाता को एक प्रमाण पत्र (TDS Certificate) प्रदान किया जाता है, जिसे वह अपनी आयकर रिटर्न भरने के समय दाखिल कर सकता है। इससे यह प्रमाणित होता है कि संबंधित व्यक्ति से कर काट लिया गया है।
टीडीएस की दरें विभिन्न प्रकार की आय पर निर्भर करती हैं, जैसे वेतन, ब्याज, किराया, सेवाएं, आदि। सरकार प्रत्येक श्रेणी के लिए अलग-अलग दर निर्धारित करती है। उदाहरण स्वरूप:
वेतन (Salary): यदि किसी व्यक्ति को वेतन प्राप्त होता है, तो उसका नियोक्ता (employer) टीडीएस काटता है। इस दर को आयकर स्लैब के अनुसार तय किया जाता है। यदि व्यक्ति की आय आयकर स्लैब से अधिक है, तो टीडीएस के रूप में कर कटौती की जाएगी।
ब्याज (Interest): बैंकों या अन्य वित्तीय संस्थाओं से प्राप्त ब्याज पर टीडीएस लगता है। यदि ब्याज का भुगतान ₹40,000 से अधिक हो, तो टीडीएस कटौती की जाएगी। हालांकि, वरिष्ठ नागरिकों (60 वर्ष और उससे अधिक आयु के) के लिए यह सीमा ₹50,000 होती है।
किराया (Rent): यदि किसी व्यक्ति को किराया मिलता है और उस पर एक निश्चित राशि से अधिक का भुगतान होता है, तो टीडीएस काटा जाएगा। यदि भुगतान ₹2.4 लाख से अधिक है, तो टीडीएस की कटौती की जाती है।
प्रोफेशनल शुल्क (Professional Fees): किसी पेशेवर को, जैसे वकील, चार्टर्ड अकाउंटेंट, डॉक्टर, आदि को मिलने वाली फीस पर भी टीडीएस लगाया जाता है। यदि पेशेवर शुल्क ₹30,000 से अधिक है, तो टीडीएस कटौती की जाएगी।
संपत्ति की बिक्री (Sale of Property): जब कोई संपत्ति बेची जाती है, तो उस पर भी टीडीएस कटौती की जाती है। यह दर संपत्ति की बिक्री मूल्य के आधार पर होती है।
उधारी (Loan): जब कोई व्यक्ति किसी से उधारी प्राप्त करता है और वह उधारी ब्याज के साथ चुकता करता है, तो उस पर भी टीडीएस कटौती की जाती है। यह दर उधारी के कुल ब्याज पर निर्भर करती है।
सुरक्षा व पैटर्न्स के अंतर्गत (Under Section 194J): किसी विशेष सेवा या व्यावसायिक सेवा के लिए भुगतान पर भी टीडीएस लगाया जा सकता है, जैसे कि ₹30,000 या उससे अधिक के भुगतान पर पेशेवर सेवाओं के लिए टीडीएस कटौती।
टीडीएस की कटौती की प्रक्रिया सरल होती है। जब कोई भुगतान किया जाता है, तो उससे निर्धारित दर पर कर काट लिया जाता है और इसे सरकारी खजाने में जमा किया जाता है। उदाहरण के तौर पर, यदि किसी व्यक्ति को ₹50,000 का वेतन मिलता है और उस पर 10% टीडीएस की दर है, तो ₹5,000 टीडीएस के रूप में काटे जाएंगे और ₹45,000 व्यक्ति को मिलेंगे।
टीडीएस की कटौती के बाद, संबंधित व्यक्ति को एक टीडीएस प्रमाण पत्र (TDS Certificate) प्रदान किया जाता है। यह प्रमाण पत्र व्यक्ति को यह सुनिश्चित करने में मदद करता है कि कर वसूल लिया गया है और वह इसे अपनी आयकर रिटर्न में दिखा सकता है।
टीडीएस की कटौती के बाद, अगर किसी व्यक्ति को अधिक कर का भुगतान करना पड़ता है, तो वह अपनी वार्षिक आयकर रिटर्न भरते समय इसे समायोजित कर सकता है। अगर किसी व्यक्ति ने टीडीएस के तहत बहुत अधिक कर काटवाया है, तो वह आयकर विभाग से वापसी (refund) भी प्राप्त कर सकता है।
टीडीएस का भुगतान हर माह किया जाता है, और यह सरकार के खजाने में जमा किया जाता है। प्रत्येक माह के अंत तक, टीडीएस की कटौती करने वाले व्यक्ति को टीडीएस का भुगतान करना होता है और संबंधित महीने का टीडीएस रिटर्न भी भरना होता है।
टीडीएस रिटर्न भरने के लिए, Form 24Q (वेतन के लिए), Form 26Q (अन्य भुगतान के लिए) और अन्य संबंधित फॉर्म का उपयोग किया जाता है। इस रिटर्न में टीडीएस की कुल राशि, कटौती किए गए कर की जानकारी, और संबंधित व्यक्तियों का विवरण होता है।
यदि किसी व्यक्ति या संस्था द्वारा टीडीएस की कटौती या भुगतान नहीं किया जाता है, तो उसे आयकर विभाग द्वारा दंड लगाया जा सकता है। इसके अंतर्गत जुर्माना और ब्याज की रकम भी शामिल हो सकती है। यही कारण है कि कंपनियां और नियोक्ता टीडीएस की कटौती के नियमों का पालन करते हैं।
टीडीएस भारतीय कर प्रणाली का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो कर संग्रहण प्रक्रिया को अधिक प्रभावी और सटीक बनाता है। टीडीएस के माध्यम से करदाता को आयकर की एक निश्चित राशि के भुगतान की चिंता नहीं करनी पड़ती है, क्योंकि यह राशि पहले से ही उनकी आय के स्रोत से काट ली जाती है। टीडीएस कराधान के एक महत्वपूर्ण पहलू के रूप में कार्य करता है और सरकार को स्थिर आय का स्रोत प्रदान करता है।
टीडीएस प्रणाली की सही समझ और पालन से न केवल करदाता को किसी भी प्रकार की दिक्कत से बचने में मदद मिलती है, बल्कि सरकार को भी समय पर कर प्राप्त होता है, जो देश की आर्थिक विकास में योगदान करता है।
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