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हमारे कानून में कुछ मानवीय वज़हों से कैदियों को कुछ समय के लिये कैद से छूट देने का प्रावधान भी है। ऐसा पैरोल और फरलो के नियमों के अंतर्गत किया जाता है। पर अक्सर हम पैरोल और फरलो को एक ही समझ लेते हैं। लेकिन पैरोल और फरलो दोनों अलग-अलग चीजें हैं।
दरअसल पैरोल और फरलो दोनों ही प्रावधान जेल से किसी बंदी या दोषी व्यक्ति को मिलने वाली अनुपस्थिति की छूट से संबंधित हैं। देखें तो दोनों एक ही प्रकृति का कानून संप्रेषित करते हैं; हालांकि प्रतिक्रियात्मक तौर पर एक दूसरे से बिलकुल भिन्न हैं।
फरलो का अवकाश एक सजायाफ़्ता कैदी का अधिकार है जो अकारण भी मिल सकता है। जबकि पैरोल सजायाफ़्ता अथवा विचाराधीन किसी भी तरह के बंदी को किसी जरूरी कारण से कुछ समय के लिये कैद से मिलने वाली छूट है। पैरोल और फरलो चूंकि कारागार यानी जेल प्रशासन को संदर्भित कानून हैं, जो राज्य सरकार के अधीन है। इसलिये पैरोल और फरलो से संबंधित हर सूबे के अपने-अपने नियम भी हैं। हालांकि इसकी व्यापक अवधारणा हर जगह समान है।
पैरोल और फरलो में मुख्य अंतर इस प्रकार हैं --
उम्मीद है कि अब तक अपराधियों को मानवीय आधार पर कैद से मिलने वाली छुट्टियों के संबंध में पैरोल और फरलो का फ़र्क हमारे सामने काफी-कुछ साफ हो गया होगा।
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पैरोल और फैरलो के बीच अंतर :-
फरलो जेल के एक निश्चित समय अवधि के लिए दी गई छुट्टी होती है और वही पैरलो शर्तों पर जेल की सजा का निलंबन है। फरलो एक कैदी का अधिकार होता है इसलिए उसे समय-समय पर इस अधिकार को दिया जाता है और कभी-कभी यह बिना किसी कारण के भी उसे अपने परिवार के साथ संबंध बनाए रखने के लिए प्रदान किया जाता है। और पैरलो कैदी का अधिकार नहीं होता है। पैरलो की समय अवधि अधिकतम 1 महीने की होती है लेकिन फैरलो का समय 14 दिन के लिए होता है।
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