पैरा स्पेशल फोर्सेज का इतिहास आजादी से पहले का है. भारतीय पैराशूट यूनिट की गिनती दुनिया की सबसे पुरानी पैराशूट यूनिट में होती है. 1941 में 50वीं भारतीय पैराशूट ब्रिगेड का गठन हुआ था. हालांकि पैराशूट रेजीमेंट का गठन 1952 में किया गया. इस रेजीमेंट को सबसे ज्यादा पहचान 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान मिली. उस समय ब्रिगेड ऑफ गार्ड्स के मेजर मेघ सिंह ने सेना की अलग-अलग टुकड़ियों से जवानों को पैराशूट रेजीमेंट के लिए भर्ती किया और प्रशिक्षित किया. बताया जाता है कि शुरू में मेघ सिंह ने अपने स्तर पर पैराशूट रेजीमेंट के लिए जवानों की भर्ती की थी. इन जवानों की टुकड़ी को मेघदूत फोर्स कहा जाता था.
बलिदान निशान पैरा स्पेशल फोर्सेज का सबसे बड़ा सम्मान होता है. इस निशान को हर कोई इस्तेमाल नहीं कर सकता है. यह निशान पैरा कमांडो लगाते हैं. इसे पहनने की योग्यता हासिल करने के लिए कमांडो को पैराशूट रेजीमेंट के हवाई जंप के नियमों पर खरा उतरना होता है. धोनी ने अगस्त 2015 में आगरा में पांच बार छलांग लगाकर बलिदान बैज को पहनने की योग्यता हासिल की थी. इसके बाद जब भी कमांडो अपनी वर्दी में होते हैं तो उनकी कैप पर चांदी से बना बलिदान का निशान लगा होता है.
आईसीसी ने कल अपने फैसले में धोनी के बलिदान वाले ग्लव्स पहनने पर रोक लगा दी है.
