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हाथ कंगन को आरसी क्या - अर्थात हाथ में कंगन पहने हैं, तो उसके लिए आईने की क्या जरूरत है, अर्थात प्रत्यक्ष रूप से देखने के बाद किसी भी प्रमाण की जरूरत नहीं होती है।
पढ़े लिखे को फारसी क्या - अर्थात फारसी लैंग्वेज बहुत टफ होने के कारण हर व्यक्ति इसे नहीं पढ़ पाता है!
किसकी उत्पत्ति इस प्रकार से हुई :
इस शब्द में आरसी का मतलब शीशा या दर्पण होता है।
1. यह कहावत उस समय की है, जबहमारे देश मे आइने बहुत महंगे होते थे इसलिए बहुत कम लोगों के पास पाए जाते थे!
एक शीशे को उस ज़माने के अनुसार मुहावरे मे आरसी कहा जाता था। उस जमाने में हाथ में पहने गए कंगन में आरसी से भी छोटे छोटे शीशे जड़े जाते थे, जो बहुत कीमती होते थे।
" जो व्यक्ति अपने हाथ में शीशे से जड़े कंगन पहन सकता है , तो उनके लिए आरसी लेना कौन सी बड़ी बात है ?"
मतलब जो व्यक्ति अपने हाथ में शीश से जड़े कंगन पहन सकता है , उनको अपनी कामयाबी दिखाने के लिए आरसी की जरुरत नहीं पढ़ती है।
इसलिए कहा जाता था - "हाथ कंगन को आरसी क्या"।
2. औरते ज़ब अपना शृंगार करती है तो उसके लिए उनको दर्पण की आवश्यकता होती है।
जैसे: अपने चेहरे को सजाने के लिए किसी दर्पण की जरूरत होती है ताकि उस दर्पण को देखकर चेहरे का सही शृंगार कर सके।
किसी को भी कंगना पहनने के लिए दर्पण की जरूरत नहीं होती है, या ऐसा कह सकते हैं कि हाथ में कंगन को पहनने के लिए किसी भी आइने की क्या जरूरत नहीं होती है?
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एक 'आरसी' एक आभूषण है जो महिलाओं द्वारा अपने अंगूठे पर पहना जाता है जिसमें एक छोटा उत्तल दर्पण होता है जिसका उपयोग वे अपने चेहरे को देखने के लिए कर सकती हैं कि क्या उनके बाल / मेकअप ठीक लग रहे हैं।
अब जाहिर सी बात है कि आपको अपनी बांह पर कंगना दिखने के लिए अर्शी की जरूरत क्यों पड़ेगी?
इस कहावत का मूल रूप से मतलब है कि जिनके पास वास्तविक कौशल या उपलब्धि है, उन्हें अपने व्यवसाय के बारे में जाने के लिए सतही प्रशंसा की आवश्यकता नहीं है।
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मैं दोस्तों द्वारा दिए गए हिंदी मुहावरे की उलटी व्याख्या से हैरान हूं।
वैसे मुहावरे का वास्तविक अर्थ है-
सबूत के लिए सबूत की जरूरत नहीं होती।
दूसरे शब्दों में,
जब कोई बात पूरी तरह से स्पष्ट होती है, तो आप बिना सबूत मांगे उस पर विश्वास कर लेते हैं।
हिंदी में समझाने के लिए...
प्रत्यक्ष (सबूत) को प्रमाण (सबूत) की जरुरत (आवश्यकता) न्ही (नहीं) = (प्रत्यक्ष को प्रमाणिक की पहचान नहीं)।
नोट - हिंदी में अनगिनत मुहावरे हैं जो अपने-अपने दार्शनिक अर्थ को व्यक्त करते हैं लेकिन उनके दिए गए संदर्भ में समझना बहुत मुश्किल है। इसलिए, किताबों, इंटरनेट या हिंदी मुहावरों को समझने वाले लोगों से उनके छिपे हुए ज्ञान को जानें।
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भाषा विचारों और भावों को अभिव्यक्त करने का साधन है। हम अपनी बात को कभी सीधे - सादे ढंग से कहना चाहते हैं और कभी प्रभावशाली ढंग से। मुहावरों और लोकोक्तियों का प्रयोग उसे प्रभावशाली बनाने के लिए किया जाता है।
मुहावरा अर्थात अभ्यासः
अभ्यासवश एक अभिव्यक्ति कभी-कभी एक विशेष अर्थ देने लगती है। ऐसा वाक्यांश जो अपने साधारण अर्थ को छोड़ कर किसी विशेष अर्थ को व्यक्त करें, मुहावरा कहलाता है। इसे वाग्धारा भी कहते हैं।
लोकोक्तियां या कहावतें लोक - अनुभव का परिणाम होती हैं। किसी समाज ने लंबे अनुभव से जो कुछ सीखा है उसे एक वाक्य में बांध दिया, कुछ कवियों ने, कुछ प्रबुद्ध लोगों ने। उसकी सच्चाई सभी स्वीकार करते हैं। कविताबद्द लोकोक्तियों को सूक्ति भी कहते हैं।
मुहावरे के शब्द अपने कोषगत अर्थों को छोड़कर कुछ भिन्न अर्थ देते हैं, जबकि लोकोक्ति अपने मूल अर्थ से जुड़ी रहती है। इसके अतिरिक्त मुहावरा पूर्ण वाक्य न होकर वाक्यांश होता है परंतु लोकोक्ति पूर्णतया वाक्य में बंधी होती है। अतः वाक्य के भीतर आते हैं मुहावरा तो वाक्य का अंग बन जाता है परंतु लोकोक्ति एक उपवाक्य के रूप में ही रहती है।
वाक्य - प्रयोग के समय मुहावरे में आए शब्दों के रूप लिंग, वचन, पुरुष, काल आदि के कारण बदलते रहते हैं, लोकोक्ति ज्यों की त्यों रहती हैं।
लोकोक्ति के जो शब्द रहते हैं उसका अर्थ बहुत गुढ़ (गहरा) होता है। अपनी अपनी समझ के अनुसार उस शब्द का अर्थ समझते हैं।
हाथ कंगन को आरसी क्या, पढ़े लिखे को फारसी क्या।
दो अलग-अलग वाक्यों को यहां पर जोड़ा गया हैः-
हाथ कंगन को आरसी क्या - अर्थात हाथ में कंगन पहने हैं, तो उसके लिए आईने की क्या आवश्यकता है, अर्थात प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती है।
पढ़े लिखे को फारसी क्या - अर्थात फारसी भाषा बहुत कठिन होने के कारण हर व्यक्ति इसे नहीं पढ़ सकता। अर्थात ज्ञानी व्यक्ति के लिए कोई भी कार्य कठिन नहीं है।
उदाहरणः इस दवाई को पाँच दिन खाकर देख लीजिए कितना लाभ पहुंचाती है।
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