फ़ैज़ के बारे में कहा जाता है कि वह खुद हैं, खुदा हैं और खुदगर्ज भी हैं. उन्हें फ़ैज़ कहना आसान तो है लेकिन फ़ैज़ जैसा बनना बहुत मुश्किल है | फैज़ अहमद फैज़ एक ऐसे शायर है जिन्होंने अपने जीवन के तमाम किस्सों को शदों के अलग - अलग रूप दिए |
जैसे उनकी ये पंक्ति -
1.तुम आए हो
न शब ए इंतिज़ार गुज़री है,
तलाश में है सहर बार बार
गुज़री है,
जुनूं में जितनी भी गुज़री
बकार गुज़री है,
अगरचे दिल पे ख़राबी
हज़ार गुज़री है
हुई है हज़रत ए नासेह से गुफ़्तुगू जिस शब,
वो शब ज़रूर सर ए कूए यार गुज़री है
इन पंक्तियों क ज़रिये वह उन किस्सों को याद कर रहे है जिसके बारें में कभी ज़िक्र ही नहीं हुआ और सब लोग इस बात को जानते थे |
-फ़ैज़ के बारे में कहा जाता है कि वह खुद हैं, खुदा हैं और खुदगर्ज भी हैं | उन्हें फ़ैज़ कहना आसान तो है लेकिन फ़ैज़ जैसा बनना बहुत मुश्किल है | शायरी की दुनिया में अगर फ़ैज़ न हों तो जिंदगी कुछ मायूस सी लगेगी क्योंकि उनका दिया हर शब्द जीने की एक वजह जरूर देता है | पाकिस्तान के लाहौर में 20 नवंबर 1984 को फैज़ अहमद फैज़ ने आखिरी सांस ली और हमें अलविदा कह गए |
-,फ़ैज़ का जन्म पाकिस्तान के सियालकोट में 13 फरवरी 1911 को हुआ था लेकिन उन्होंने अपना कुछ वक्त भारत में भी बिताया और रूसी महिला एलिस फ़ैज़ से शादी करने के बाद उन्होंने दिल्ली में काफी लम्हे व्यतीत किये |
- हमेशा से ही फ़ैज़ को वामपंथी विचारधारा का शायर कहा जाता है लेकिन फ़ैज़ को करीब से जानने वाले लोग हमेशा कहते थे कि विचारधारा कोई भी हो लेकिन फ़ैज़ के दिल में तो इंसानियत धड़कती है जो एक विद्रोही शायर के जरिए लोगों को शब्द देती है | वह लोगों के गमों को अपना समझते हैं, उनके लिए प्यार, क्रांति का दूसरा नाम है |
आज आपको फैज़ अहमद फैज़ की बेहतरीन शायरियां बातएंगे जो पूरी दुनिया में मशहूर हुई |
2.और भी दुख हैं ज़माने में
मोहब्बत के सिवा,
राहतें और भी हैं
वस्ल की राहत के सिवा |
- बहुत कम लोग इस जानते हैं कि फ़ैज़ ब्रिटिश सेना में कर्नल थे और पाकिस्तान के 2 प्रमुख अखबारों के संपादक भी रह चुके है|
- उन्हें हिंदी, अरबी, अंग्रेजी, उर्दू और रूसी भाषा की भी अच्छी जानकारी थी | एक दौर था कि उन्हें पाकिस्तान से बाहर निकाल दिया गया था लेकिन पूरी दुनिया ने उन्हें गले से लगाने के लिए तैयार थी | उन्हें नोबल पुरस्कार के लिए भी नामित किया गया था|
3- अब अपना इख़्तियार है चाहे जहां चलें,
रहबर से अपनी राह जुदा कर चुके हैं हम |
4- आए तो यूँ कि जैसे हमेशा थे मेहरबान
भूले तो यूँ कि गोया कभी आश्ना न थे |
5- दिल ना-उमीद तो नहीं नाकाम ही तो है
लम्बी है ग़म की शाम मगर शाम ही तो है |
यह कुछ मशहूर शायरियां है जिन्होनें आज भी लोगों के दिल में घर कर रखा है और इन्ही शब्दों की वजह से मशहूर शायर फैज़ अहमद फैज़ हमारे दिलों में ज़िंदा है और ज़िंदा रहेंगे |