वैसे तो ज्ञान और अनुभव दोनों एक नाव पर सवार दो ऐसे यात्री हैं, जो मनुष्य के जीवन को सवारने की पूरी-पूरी कोशिश करते हैं | जब बच्चा छोटा है तो उसकी पहले शिक्षक उसकी माँ होती है | उसकी माँ ही उसको हर उन बातों का बोध कराती है, जिससे बच्चे को सही और ग़लत में फ़र्क समझ आता है |
किताबी ज्ञान और अनुभव में क्या जरुरी है इस बात को समझने के लिए आपको एक छोटी सी कहानी बताते हैं शायद आपके प्रश्न का उत्तर उसमें ही मिल जायें |
एक नाविक था जो अपनी नाव से अपनी जीविका चलाता था | नाव चलाने में उसको काफी अनुभव था जिसके चलते वो नाव चलाते वक़्त आने वाली सभी परेशानी का सामना अपने अनुभव के हिसाब से कर लेता था | वही एक विद्वान् ब्राह्मण था जो सभी ग्रंथों का ज्ञाता और वेदों का ज्ञानी था | ब्राह्मण हर रोज नाविक की नाव में बैठकर नदी पार करता और नाविक को कुछ न कुछ ज्ञान की बात बताता था |
एक दिन ब्राह्मण ने नाविक से पूछा तुम इस प्रकर्ति के बारें में क्या जानते हो, जिस नदी या समुद्र पर तुम नाव चलाते हो क्या तुम इस समुद्र शास्त्र के बारें में जानते हो ? नाविक ने कहा नहीं तो ब्राह्मण बोला कैसे इंसान हो जिस नहीं में तुम अपना सारा दिन बिताते हो तुम्हे उसका ही ज्ञान नहीं तुम्हारी तो आधी ज़िंदगी बेकार है | नाविक सोच में पड़ गया और उसको लगा शायद ब्राह्मण सही कह रहा है |
फिर अगले दिन फिर ब्राह्मण ने नाविक से पूछा तुमने "मीटिओरोलॉजी" पढ़ी है , तो नाविक ने कहा मैं अनपढ़ हूँ मुझे किताबों का कोई ज्ञान नहीं है | तो ब्राह्मण ने कहा तुम्हारी एक चौथाई ज़िंदगी ख़राब हो गई | ये किताबों का ज्ञान है जिसमें हवा, बारिश इन सब की जानकारी होती है |
अब कुछ देर बात नाविक ने ब्राह्मण से पूछा आपको तैरना आता है, तो ब्राह्मण ने कहा नहीं तो नाविक बोला इतनी पढ़ाई की आपने पर आपको किसी किताब ने तैरने की विद्या नहीं सिखाई | क्योंकि हमारी नाव चट्टान से टकरा गई है और इससे इसमें छेद हो गया है, जिसके कारण नाव डूब जाएगी |
इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि किताबी ज्ञान मानव जीवन के लिए इंसान को किताबी ज्ञान सिर्फ उतना ही सीखती है, जितना उस किताब में पन्ने होते हैं परन्तु अनुभव मनुष्य के जीवन में घाट रही घटनाओं से प्राप्त होता है, जो कि किसी किताब में नहीं होता |
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