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सिंधु नदी घाटी सभ्यता (Indus Valley Civilization), जिसे हड़प्पा सभ्यता (Harappan Civilization) भी कहा जाता है, प्राचीन भारत की एक महत्वपूर्ण और महान सभ्यता थी, जो लगभग 3300 से 1300 ईसा पूर्व तक विकसित हुई थी। इस सभ्यता का केंद्र मुख्य रूप से पाकिस्तान और भारत के पंजाब, सिंध, राजस्थान, गुजरात, हरियाणा, और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में था। सिंधु सभ्यता के अवशेषों से यह स्पष्ट होता है कि इसके लोग अत्यंत उन्नत थे और उनकी सामाजिक, आर्थिक, और धार्मिक संरचनाएँ भी बहुत विकसित थीं। हालांकि इस सभ्यता के धर्म के बारे में पूरी जानकारी प्राप्त नहीं हो सकी है, फिर भी पुरातात्विक साक्ष्य, मूर्तियाँ, और अन्य अवशेषों से हम कुछ महत्वपूर्ण जानकारी निकाल सकते हैं।
सिंधु नदी घाटी सभ्यता में धार्मिक विश्वासों का आकलन करना एक जटिल कार्य है क्योंकि यहां पर लिखित रूप में कोई धर्मशास्त्र या धार्मिक ग्रंथ नहीं मिले हैं। हड़प्पा सभ्यता के लोग विशेष प्रकार की मूर्तियों और प्रतीकों का इस्तेमाल करते थे, जिनसे यह अनुमान लगाया जाता है कि उनका धर्म देवता-पूजा और प्रकृति से जुड़े कुछ तत्वों पर आधारित था।
सिंधु सभ्यता में एक प्रमुख देवता की पूजा के प्रमाण मिलते हैं, जो संभवतः 'मातृ देवी' या 'प्रकृति देवी' हो सकती है। हड़प्पा सभ्यता में विभिन्न प्रकार की मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं, जिनमें से एक प्रमुख मूर्ति "पुरुष या देवी की मूर्ति" है, जो एक स्त्री के रूप में प्रतीत होती है, जिसे कभी-कभी "मातृ देवी" के रूप में पहचाना जाता है। इस मूर्ति का आकार और रूप यह संकेत करते हैं कि इसे प्रजनन शक्ति और प्रकृति के बल के प्रतीक के रूप में पूजा जाता था।
कुछ मूर्तियों में विशेष प्रकार के मुद्रा (postures) दिखाई देते हैं, जो यह संकेत करते हैं कि हड़प्पा सभ्यता के लोग योग या ध्यान की किसी न किसी रूप में प्रैक्टिस करते थे। एक प्रसिद्ध मूर्ति "पुरुष को योग मुद्रा में बैठा हुआ" दिखाती है, जो यह संकेत देती है कि इन लोगों के धार्मिक विश्वासों में आत्म-संयम और आत्मज्ञान का तत्व भी था। इसके अलावा, कुछ संकेतक प्रतीक, जैसे तंत्र-मंत्र के प्रयोग, भी प्राचीन भारत के धार्मिक अभ्यासों से जुड़ी संभावनाओं को दिखाते हैं।
सिंधु सभ्यता में जल का विशेष महत्व था, और यह कई धार्मिक अनुष्ठानों और पूजा के साथ जुड़ा हुआ प्रतीत होता है। सिंधु नदी, जो इस सभ्यता के लिए जीवनदायिनी थी, को एक पवित्र नदी माना जाता था। पुरातात्विक खुदाई में मिले स्नानागार (बाथरूम), जैसे मोहनजोदड़ो और हड़प्पा में पाए गए, यह संकेत करते हैं कि ये लोग न केवल व्यक्तिगत स्वच्छता का ध्यान रखते थे, बल्कि जल के आध्यात्मिक महत्व को भी समझते थे। इन स्नानघरों का प्रयोग धार्मिक अनुष्ठानों के लिए भी किया जाता था।
एक अन्य महत्वपूर्ण धार्मिक प्रतीक हड़प्पा सभ्यता में "पशुपति" देवता की मूर्ति के रूप में मिलता है। यह देवता एक सिंहासन पर बैठा हुआ दिखाया गया है और चारों ओर उसके पास विभिन्न जानवरों की मूर्तियाँ हैं। इसे भारतीय उपमहाद्वीप के सबसे प्रारंभिक भगवान "शिव" के साथ जोड़ा जाता है। इस देवता के साथ विभिन्न जानवरों का जुड़ाव यह संकेत करता है कि इस समय के लोग प्रकृति, विशेष रूप से पशु और वन्यजीवों, के साथ अपने संबंधों को समझते थे और इनका पूजन करते थे। पशुपति देवता की उपासना से यह स्पष्ट होता है कि उनके धार्मिक विश्वासों में प्रजनन शक्ति, प्रकृति और जीवन चक्र का गहरा संबंध था।
हड़प्पा सभ्यता में कई तरह के धार्मिक प्रतीक मिले हैं, जिनमें से एक प्रमुख प्रतीक "स्वास्तिक" है। स्वास्तिक का उपयोग उस समय में शुभता, समृद्धि और आशीर्वाद के प्रतीक के रूप में किया जाता था। इसके अलावा, अन्य प्रतीक जैसे त्रिशूल और सूर्य चिन्ह भी मिलते हैं, जो कि प्रकृति से संबंधित धार्मिक आस्थाओं की पुष्टि करते हैं। यह प्रतीक हड़प्पा सभ्यता के लोगों के बीच आस्था, शुभता और सौम्यता के प्रतीक रहे होंगे।
सिंधु घाटी सभ्यता में धार्मिक अनुष्ठानों और पूजा के आयोजन के लिए निश्चित स्थानों का निर्माण किया गया था। जैसे मोहनजोदड़ो में एक विशाल स्नानागार पाया गया, जो यह दिखाता है कि धार्मिक कार्यों के लिए विशेष स्थानों का चयन किया जाता था। इसके अलावा, हड़प्पा और मोहनजोदड़ो जैसी बस्तियों में सड़कों और गलियों की योजना को ध्यान में रखते हुए यह कहा जा सकता है कि इन बस्तियों में सामाजिक और धार्मिक जीवन को सामूहिक रूप से समन्वित किया गया था।
सिंधु घाटी सभ्यता के धार्मिक आस्थाओं का विश्लेषण करते हुए यह भी प्रतीत होता है कि यह सभ्यता शांतिप्रिय और अकाट्य थी। इस सभ्यता से जुड़े कोई भी युद्ध या रक्तपात के संकेतक नहीं मिले हैं, जो कि इस बात की ओर इशारा करते हैं कि धार्मिक आस्थाएँ अधिकतर शांति, सौहार्द और सहयोग पर आधारित थीं। यहां तक कि इस सभ्यता में कोई भी हथियारों या युद्ध संबंधी अत्यधिक प्रतीक नहीं पाए गए, जो दर्शाता है कि लोग प्रकृति और उनके आस-पास के वातावरण से सामंजस्यपूर्ण जीवन जीने की कोशिश करते थे।
सिंधु नदी घाटी सभ्यता का धर्म एक जटिल और विविधतापूर्ण व्यवस्था प्रतीत होती है। इस सभ्यता के लोग प्रकृति, पशु, और प्रजनन शक्ति से संबंधित देवताओं की पूजा करते थे। इसके अलावा, ध्यान, योग और तंत्र-मंत्र के तत्व भी इस सभ्यता के धार्मिक जीवन का हिस्सा हो सकते हैं। जबकि हम आज के समय में सिंधु सभ्यता के धर्म के बारे में पूरी जानकारी नहीं प्राप्त कर पाए हैं, फिर भी उनके धार्मिक प्रतीक, मूर्तियाँ और अन्य अवशेष यह साबित करते हैं कि उनका धर्म उनके जीवन से गहरे रूप में जुड़ा हुआ था, और यह एक संतुलित, शांति प्रिय और प्रकृति के साथ सामंजस्यपूर्ण जीवन की दिशा में था।
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