भारत में बंजर भूमि का विस्तार
भारत में लगभग 96.40 मिलियन हेक्टेयर भूमि बंजर है, जो कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का लगभग 30% है। बंजर भूमि की यह स्थिति चिंता का विषय है क्योंकि इससे खेती और पर्यावरण दोनों पर बुरा प्रभाव पड़ता है। विभिन्न कारणों से जैसे अत्यधिक चरागाह, वनों की कटाई, गलत खेती प्रथाएं, अत्यधिक सिंचाई और भूमि नमक आदि से भारत की भूमि बंजर होती जा रही है।
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राजस्थान में सबसे अधिक बंजर भूमि
राजस्थान राज्य में देश की सबसे अधिक बंजर भूमि पाई जाती है। भारत सरकार के आंकड़ों के अनुसार, राजस्थान में कुल 13.74 मिलियन हेक्टेयर भूमि बंजर है, जो कि राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 70% है। यह राज्य मरुस्थलीय और अर्ध-शुष्क क्षेत्र में स्थित है और यहां जलवायु पर्याप्त वर्षा के लिए अनुकूल नहीं है।
बंजर भूमि का प्रभाव
बंजर भूमि का व्यापक प्रभाव पड़ता है। इससे पहले तो कृषि उत्पादन प्रभावित होता है क्योंकि भूमि खेती के लिए उपयुक्त नहीं रहती। इसके अलावा, बंजर भूमि से मिट्टी का कटाव और रेगिस्तान का विस्तार होता है। यह पर्यावरण के लिए भी हानिकारक है क्योंकि इससे जैव विविधता और वन्य जीवन प्रभावित होते हैं। साथ ही, बंजर भूमियां भूमिगत जल स्तर को भी प्रभावित करती हैं।
राजस्थान में बंजर भूमि के कारण
राजस्थान में बंजर भूमि के कई कारण हैं। सबसे बड़ा कारण मरुस्थलीय जलवायु है जहां वर्षा बहुत कम होती है। इसके अलावा अधिक चराई, लकड़ी इकट्ठा करना, अनियंत्रित भूजल का दोहन, विनाशकारी कृषि प्रथाएं और औद्योगिक गतिविधियां भी इसके लिए जिम्मेदार हैं। मरुस्थलीकरण और मिट्टी के नुकसान के कारण भी भूमि बंजर हो रही है।
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बंजर भूमि से निपटना
बंजर भूमि की समस्या से निपटने के लिए सरकार और विभिन्न संगठन काम कर रहे हैं। जैव-मरुस्थलीकरण नियंत्रण कार्यक्रम, मरुभूमि विकास कार्यक्रम और रेगिस्तानी क्षेत्र वनीकरण जैसी पहलें शुरू की गई हैं। स्थानीय जन भागीदारी, जल संरक्षण उपायों और संधारणीय कृषि प्रथाओं को बढ़ावा देने की भी आवश्यकता है।
राज्य सरकार भी राजस्थान में बंजर भूमि से निपटने के लिए विभिन्न कदम उठा रही है। प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण और पुनर्वास के प्रयासों पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। वृक्षारोपण अभियान, जल संरक्षण योजनाएं और भूजल पुनर्भरण जैसी पहलें शुरू की गई हैं।
निष्कर्ष रूप में, भारत खासकर राजस्थान में बंजर भूमि एक गंभीर चुनौती है। राजनीतिक इच्छाशक्ति, निरंतर प्रयास और स्थानीय समुदायों की भागीदारी से ही इस समस्या से निपटा जा सकता है। संधारणीय विकास के लिए हमें वर्तमान और भावी पीढ़ियों के हितों को ध्यान में रखते हुए हमारी निहित मिट्टी और भूमि संसाधनों को संरक्षित करना होगा।