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भगवान विष्णु के दशावतार में से पहला अवतार कौन सा था? जानें!


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amankumarlot@gmail.com | पोस्ट किया


मत्स्य अवतार का वर्णन हमें पुराणों में मिलता है, विशेष रूप से मत्स्य पुराण में। यह कथा सतयुग के अंत और त्रेता युग के प्रारंभ की है। इस समय पृथ्वी पर महाराज मनु का शासन था। वे एक महान राजा थे, जो अपनी प्रजा का पालन बड़े धर्म और न्याय से करते थे।

 

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एक दिन जब राजा मनु कृतमाला नदी (वर्तमान में तमिलनाडु में वैगई नदी के नाम से जानी जाती है) के तट पर संध्या वंदन कर रहे थे, तब उन्होंने देखा कि एक छोटी सी मछली उनकी अंजलि में आ गई। यह मछली बहुत ही सुंदर और चमकदार थी। मनु ने उसे अपने कमंडल में रख लिया।

अगले दिन मनु ने देखा कि मछली का आकार बढ़ गया है। उन्होंने उसे एक बड़े बर्तन में रख दिया। कुछ ही दिनों में मछली इतनी बड़ी हो गई कि उसे एक तालाब में छोड़ना पड़ा। फिर वह इतनी विशाल हो गई कि उसे समुद्र में छोड़ना पड़ा।

तब मछली ने अपना असली रूप प्रकट किया। वह स्वयं भगवान विष्णु थे। उन्होंने मनु को बताया कि सात दिन बाद प्रलय आने वाली है। उन्होंने मनु को एक नाव बनाने का आदेश दिया और कहा कि वे सभी प्रकार के बीज और सप्तऋषियों को इस नाव में रखें।

प्रलय के समय भगवान विष्णु मत्स्य रूप में प्रकट हुए और नाव को अपने सींग से बांधकर खींचते हुए सुमेरु पर्वत पर ले गए। वहां उन्होंने मनु और सप्तऋषियों को वेदों का ज्ञान दिया। प्रलय के बाद जब जल उतर गया, तब नई सृष्टि की रचना हुई।

मत्स्य अवतार की यह कथा कई महत्वपूर्ण संदेश देती है:

1. संरक्षण का महत्व: भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप धारण करके न केवल मनुष्य जाति को बचाया, बल्कि सभी प्रकार के जीवों और वनस्पतियों के बीजों को भी संरक्षित किया। यह हमें प्रकृति के संरक्षण का महत्व सिखाता है।

2. ज्ञान का महत्व: प्रलय के बाद भगवान ने मनु और सप्तऋषियों को वेदों का ज्ञान दिया। यह दर्शाता है कि ज्ञान की रक्षा और प्रसार भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना जीवन की रक्षा।

3. भक्ति का महत्व: मनु ने एक छोटी सी मछली की देखभाल की, जो बाद में भगवान विष्णु निकली। यह सिखाता है कि हमें सभी प्राणियों के प्रति दया और करुणा रखनी चाहिए।

4. प्रकृति के चक्र का ज्ञान: प्रलय और फिर नई सृष्टि की रचना का वर्णन प्रकृति के निरंतर चक्र को दर्शाता है। यह हमें सिखाता है कि परिवर्तन प्रकृति का नियम है।

5. तैयारी का महत्व: भगवान ने मनु को आने वाली आपदा के बारे में पहले ही बता दिया और उसकी तैयारी करने को कहा। यह हमें सिखाता है कि हमें भविष्य की चुनौतियों के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए।

 

भगवान विष्णु के दशावतार में से पहला अवतार कौन सा था?


मत्स्य अवतार की कथा विभिन्न धार्मिक ग्रंथों में थोड़े-थोड़े अंतर के साथ मिलती है। कुछ पुराणों में इसे सतयुग की घटना बताया गया है, जबकि कुछ में त्रेता युग की। कुछ वर्णनों में मत्स्य अवतार को हयग्रीव नामक असुर से वेदों की रक्षा करने वाला भी बताया गया है।

यह कथा केवल हिंदू धर्म तक ही सीमित नहीं है। विश्व के कई अन्य धर्मों और संस्कृतियों में भी इसी तरह की जलप्रलय की कथाएँ मिलती हैं। उदाहरण के लिए, बाइबल में नूह की कहानी बहुत कुछ इसी तरह की है। इस्लाम में भी नूह की कहानी मौजूद है। यह दर्शाता है कि यह कथा मानव जाति की सामूहिक स्मृति का हिस्सा हो सकती है।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें तो पृथ्वी के इतिहास में कई बार बड़े पैमाने पर जलप्रलय आए हैं। इनमें से कुछ का कारण ग्लेशियरों का पिघलना रहा है, तो कुछ का कारण उल्कापिंडों का पृथ्वी से टकराना। ऐसा माना जाता है कि इन घटनाओं की स्मृति ही विभिन्न संस्कृतियों में जलप्रलय की कथाओं के रूप में संरक्षित हो गई।

मत्स्य अवतार की कथा आज भी प्रासंगिक है। यह हमें याद दिलाती है कि प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाकर रहना कितना महत्वपूर्ण है। आज जब हम जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण प्रदूषण जैसी समस्याओं का सामना कर रहे हैं, तब यह कथा हमें प्रकृति के संरक्षण का संदेश देती है।

इसके अलावा, यह कथा हमें सिखाती है कि ज्ञान और संस्कृति का संरक्षण भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना भौतिक जीवन का। आज के डिजिटल युग में, जहां सूचना का प्रवाह इतना तेज है, यह संदेश और भी महत्वपूर्ण हो जाता है।

अंत में, मत्स्य अवतार की कथा हमें याद दिलाती है कि परिवर्तन जीवन का एक अटल नियम है। चाहे वह प्रलय के रूप में हो या फिर नई सृष्टि के रूप में, हमें हमेशा परिवर्तन के लिए तैयार रहना चाहिए और उसे सकारात्मक रूप से स्वीकार करना चाहिए।

इस प्रकार, मत्स्य अवतार की कथा न केवल एक धार्मिक कथा है, बल्कि यह जीवन के कई महत्वपूर्ण सबक भी सिखाती है। यह हमें प्रकृति के साथ सामंजस्य, ज्ञान का महत्व, करुणा, तैयारी, और परिवर्तन को स्वीकार करने जैसे मूल्य सिखाती है।

 

इन मूल्यों को अपने जीवन में उतारकर हम न केवल अपने व्यक्तिगत जीवन को बेहतर बना सकते हैं, बल्कि एक बेहतर समाज और विश्व के निर्माण में भी योगदान दे सकते हैं।

 


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दोस्तों हिंदू धर्मग्रंथ के अनुसार भगवान विष्णु धर्म के प्रतीक है तथा पृथ्वी पर धर्म को जब-जब आहत पहुंचाने की कोशिश की गई है तब तब भगवान विष्णु ने अलग-अलग रूपों में अवतार लेकर पृथ्वी पर धर्म की रक्षा की है। मान्यताओं अगर माने तो भगवान विष्णु इस पृथ्वी पर धर्म की रक्षा के लिए कुल 10 अवतार लेंगे जिनमें से 9 अवतार भगवान विष्णु ने ले लिया है लेकिन दसवां अवतार जिसे कल्कि अवतार के नाम से भी जाना जाता है वह अवतार कलयुग के अंत में भगवान विष्णु लेंगे एवं धरती पर बढ़े सभी अधर्मियों का नाश करके धर्म की रक्षा करेंगें। भगवान विष्णु के दशावतार में से पहला अवतार मत्स्य अवतार है। मत्स्य अवतार भगवान विष्णु का पहला अवतार होने के कारण बहुत खास है इसलिए आज हम इस आर्टिकल में मत्स्य अवतार के बारे में विस्तार पूर्वक चर्चा करेंगे। पूरी जानकारी के लिए आर्टिकल को अंत तक अवश्य पढ़ें।

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भगवान विष्णु के 10 अवतारों के नामः-

भगवान विष्णु ने कल अब तक कुल नौ अवतार लिए हैं और दसवां अवतार कलयुग के अंत होने पर लेंगे। भगवान विष्णु द्वारा लिए गए मत्स्य अवतार के बारे में विस्तारपूर्वक जानने से पहले आपका भगवान विष्णु के दशावतारों के बारे में जानना बेहद आवश्यक है। इन 10 अवतारों के नाम कुछ इस प्रकार हैं:-

 

1) मत्स्य अवतार

2) वराह अवतार

3) कच्छप अवतार

4) नरसिंह अवतार

5) वामन अवतार

6) परशुराम अवतार

7) राम अवतार

8) कृष्ण अवतार

9) बुद्ध अवतार

10)  कल्कि अवतार

 

भगवान विष्णु के दशावतारों में पहला अवतार:-

हिंदू धर्म ग्रंथो के अनुसार भगवान विष्णु के दशावतारों में से पहले अवतार मत्स्य अवतार था। जानकारी के लिए बता दे की मत्स्य एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ होता है मछली। मत्स्य अवतार में भगवान विष्णु ने पृथ्वी को प्रलय से बचने के लिए मछली के रूप में अवतार लिया था। जिसे मत्स्यावतार भी कहते हैं।

 

भगवान विष्णु के मत्स्य अवतार की कहानी कुछ इस प्रकार है:-

भगवान विष्णु ने सतयुग में मत्स्य अवतार लिया था। पुराणों के अनुसार एक बार जब राजा मनु नदी में स्नान कर रहे थे तब उन्हें एक छोटी सी मछली दिखाई दी और मछली ने राजा से विनती की कि उसे इस नदी से निकाल दिया जाए क्योंकि यहां उसे बड़ी मछलियां खा जाएंगी। अतः राजा मनु ने उस मछली को अपने कमंडल में रख लिया। जब मछली बड़ी होने लगी तो राजा मनु ने उसे एक सरोवर में रखा परंतु वह मछली बहुत तेजी से बड़ी होने लगी और सरोवर उसके लिए छोटा पड़ गया तो राजा को समझ आ गया कि यह कोई साधारण मछली नहीं है। अतः राजा मनु ने मछली से हाथ जोड़कर विनती की और उसे उसके वास्तविक रूप में आने की प्रार्थना


की तब भगवान विष्णु अपने असली रूप में प्रकट हुए और बोले कि यह मेरा मत्स्य अवतार है और राजा मनु से बोले की आज से ठीक 7 दिन बाद प्रलय होगी और तब तुम्हारे पास एक विशाल नाव आएगी। तुम सप्तर्षियों, औषधीय, बीजों एवं सभी प्राणियों के सूक्ष्म शरीर को लेकर उसे नाव में बैठ जाना। जब वजन के कारण तुम्हारी नाव हिलने लगेगी तब मैं मत्स्य के रूप में ही तुम्हारी मदद के लिए आऊंगा। उस समय तुम वासुकी नाग द्वारा उसे नाव को मेरे सिंघ में बांध देना। मैं प्रलय से तुम सब की रक्षा करूंगा। तब समय आने पर राजा मनु ने भगवान विष्णु द्वारा दिए गए निर्देश का पालन किया और राजा मनु को भगवान विष्णु द्वारा तत्वज्ञान का उपदेश दिया गया जो अभी मत्स्य पुराण के नाम से भी प्रसिद्ध है। इस प्रकार भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लेकर प्रलय से राजा मनु समेत सभी सप्तर्षियों और जीवो की रक्षा की तथा प्रलय के पश्चात नए सिरे से संसार का निर्माण किया।

 

भगवान विष्णु के दशावतार में से पहला अवतार कौन सा था?

मत्स्य अवतार का महत्व क्या है?

भगवान विष्णु के मत्स्य अवतार की कथा यह बताती है कि भगवान विष्णु अपने भक्तों के लिए किसी भी अवतार में इस पृथ्वी पर अवतरित हो सकते हैं एवं धर्म की सुरक्षा और धर्म की स्थापना के लिए अगर संसार का प्रलय होता है तो भगवान विष्णु पुनः संसार सृजन करने के लिए सदैव पृथ्वी पर अवतरित होंगे। भगवान विष्णु के मत्स्य अवतार की कथा केवल हिंदुओं के लिए ही नहीं बल्कि भारतीय समाज के हर नागरिक के लिए बहुत ही प्रेरणादायक है तथा मत्स्य पुराण पढ़कर ही लोग न्याय की शिक्षा प्राप्त करते हैं।


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